संध्या के मंत्र

 


सभी को नमस्ते जी।
 संध्या के मंत्रों में अब तक हमने उपस्थान मंत्रों में तीन मंत्रों का अवलोकन किया। आज हम उपस्थान मंत्र के चौथे मंत्र का अवलोकन करते हैं।
तच्चक्षुर्देवहितं पुरास्ताच्छुक्रमुच्चरत्। पश्येम शरद: शतं जीवेम शरद: शतं  शृणुयाम शरद: शतं प्रब्रवाम शरद: शतम दीना: स्याम शरद: शतं भुयश्च शरद: शतात्।
भावार्थ - 
तत् - उस ब्रह्म को
चक्षु: - सब का दृष्टा
देवहितम् - विद्वानों को धर्मात्माओं का हितकारी
पुरस्तात् - सृष्टि से पूर्व
शुक्रम् - शुद्ध स्वरूप
उच्चरत् - प्रलय के बाद भी
पश्येम - हम देखें (ईश्वर को)
शरद: शतम् - सौ वर्ष तक
जीवेम - हम जीवें
शरद: शतम् - सौ वर्ष तक
प्रब्रवाम - उपदेश करें ( ब्रह्म का )
शरद: शतम् - सौ वर्ष तक
अदीना: - दीनता और अधीनता से रहित (स्वतंत्र)
स्याम - रहें
शरद: शतम् - सौ वर्ष तक
भुयश्च - अधिक भी
शरद: शतात् - सौ वर्ष से ( अधिक भी जीते हुए ईश्वर को देखें, सुनें, सुनावें)
व्याख्या - 
वह ब्रह्म सबका दृष्टा, सबका मार्गदर्शक, धर्मात्मा का परम हित कारक तथा अनादि काल से सृष्टि के पूर्व से वर्तमान रहने वाला है। तथा उत्कृष्टता से सब का ज्ञाता है। उस ब्रह्म को हम सौ वर्ष तक देखें, सौ वर्ष तक प्राणों को धारण करें, अर्थात जीवें। सौ वर्ष तक वेद आदि शास्त्रों को व मंगलकारी आप्त वचनों को सुनें। सौ वर्ष तक उसी के सदुपदेशों का, वेदोक्त आधारित ज्ञान का उपदेश करें। सौ वर्ष तक दीनता रहित हों और सौ वर्ष से भी अधिक जीवें, देखें, सुनें, पढ़ें, उपदेश करें और स्वतंत्र रहें।
 उस परमपिता परमात्मा की सर्वज्ञता, सत्ता, और सर्वशक्तिमत्ता का, तथा प्रतिपल हम पर हो रहे उसके उपकार ओं का यथार्थ निरीक्षण कर लेने और उसके सानिध्य का सुख प्राप्त कर लेने के बाद अब तो यही उत्कृष्ट अभिलाषा बनी रहती है, कि हम प्रभु के सानिध्य में उसके उप-आसन में सदा बने रहें। सदा उसको देखते रहे, और उसे उपस्थित समझकर सदा शुभ कर्मों में ही रत रहें, ताकि यही कर्म हम उसे भेंट कर सकें। अतः मंत्र में प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु! हम आपके संरक्षण में रहते हुए आपके सुखद सानिध्य का सुख भोगते हुए सौ वर्ष तक आपको ज्ञान चक्षु से देखते रहे। अर्थात आपके अनंत गुणों व महान उपकार ओं का चिंतन मनन करते रहें। आपके दिए हुए वेदों के ज्ञान को ठीक से समझें और बार-बार उसका हम अध्ययन करें तभी हम ज्ञान के साथ शुभ कर्म करने में समर्थ हो सकते हैं। शुभ कर्म करते हुए ही हम सौ वर्ष तक जी सकते हैं। पशु वत जीवन नि:श्रेयस प्राप्ति नहीं करा सकता। अतः मानवीय जीवन जीवें। हे प्रभु! हम अपाहिज होकर दूसरों के आश्रित होकर ना पड़े रहें। ऐसी हम पर कृपा करो। अभाव व अपाहिजता दीनता की जननी है। अतः इन सब से हम सदा बचे रहें। ऐसी हम पर अनुकंपा कीजिए, ऐसी हम पर दया कीजिए, ऐसी हम पर कृपा कीजिए।
 ओ३म्।
  आर्य कृष्ण 'निवाड़ी'
          अध्यक्ष 
राष्ट्रीय आर्य निर्मात्री सभा
     जनपद गाजियाबाद


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