ऋषिवर ना अपनी मुसीबत पे रोये
विषय :- महर्षि दयानंद की तड़फ
कवि :- वीरेन्द्र वीरशामली जी
ऋषिवर ना अपनी मुसीबत पे रोये।
जो रोये तो भारत की हालत पे रोये।।
ऋषियों का भारत कहां जा रहा है।
सभ्यता पुरानी को बिसरा रहा है।।
करा जो रहा है हिमाकत पे रोये।। 1।।
ना एक ईश्वरवाद की बात सुझे।
कबर ताजिये ईंट पत्थरों के पूजे।।
कौम की मूर्खता व जहालत पे रोये।। 2।।
अनाथ और बेवाएं देखी बिलखती।
रोटी के बदले में चोटियां कटती।।
लुटे लाल जाति के गुरबत पे रोये।। 3।।
घृणा द्वेष अपनो से गेरों से प्रिति।
बचेगी ना वह कौम जिसकी यह नीति।।
कवि "वीर" थोती सखावत पे रोये।। 4।।