रक्त्साक्षी पंडित लेखराम ने क्या किया




      मूलराज के पश्चात् पंडित लेखराम आर्य जाति के ऐसे पहले महापुरुष थे जिन्हें धर्म की बलिवेदी पर इस्लामी तलवार कटार के कारण शीश चढाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वे आर्य जाति के एक ऐसे सपूत थे जो धर्म प्रचार व जाती रक्षा के लिए प्रतिक्षण सर तली पर धरकर प्रतिपल तत्पर रहते थे . उन्हीं के लिए कुंवर सुखलाल जी ने यह लिखा था।


हथेली पे सर जो लिए फिर रहा हो


वे सर उसका धड से जुदा क्या करेंगे


    पंडित लेखराम ने लेखनी व वाणी से प्रचार तो किया ही, आपने एक इतिहास रचा। आपको आर्यसमाज तथा भारतीय पुनर्जागरण के इतिहास में नई -२ परम्पराओं का जनक होने का गौरव प्राप्त हुआ। श्री पंडित रामचन्द्र जी देहलवी के शब्दों उनका नाम नामी आर्योपदेशकों के लिए एक गौरवपूर्ण उपाधि बन गया। वे आर्य पथिक अथवा आर्यामुसाफिर बने तो उनके इतिहास व बलिदान से अनुप्राणित होकर आर्यसमाज के अनेक दिलजले आर्य मुसाफिर पैदा हो गए . किस किस का नाम लिया जाए। मुसाफिर विद्यालय पंडित भोजदत्त से लेकर ठाकुर अमरसिंह कुंवर सुखलाल डॉक्टर लक्ष्मीदत्त पंडित रामचंद्र अजमेर जैसे अनेक आर्यमुसाफिर उत्पन्न किये।


      धर्म पर जब जब वार हुआ पंडित लेखराम प्रतिकार के लिए आगे निकले। विरोधियों के हर लेख का उत्तर दिया। उनके साहित्य को पढ़कर असंख्य जन उस युग में व बाद में भी धर्मच्युत होने से बचे। श्री महात्मा विष्णुदास जी लताला वाले पंडित लेखराम का साहित्य पढ़कर पक्के वैदिक धर्मी बने । आप ही की कृपा से स्वामी स्वतान्त्रतानंद जी महाराज के रूप में नवरत्न आर्य समाज को दिया।


     बक्षी रामरत्न तथा देवीचंद जी आप को पढ़ सुनकर आर्यसमाज के रंग में रंगे  गए। सियालकोट छावनी में दो सिख युवक विधर्मी बनने लगे । वे मुसलमानी साहित्य पढकर  सिखमत  को छोड़ने का निश्चय कर चुके थे। सिखों की शिरोमणि संस्था सिख सभा की विनती पर एक विशेष व्यक्ति को महात्मा मुंशी राम जी के पास भेजा गया की शीघ्र आप सिविल सर्जन पंडित लेखराम को सियालकोट भेजें . जाती के दो लाल बचाने  का प्रश्न है। पंडित लेखराम महात्मा जी का तार पाकर सियालकोट आये . सियालकोट के हिन्दू सिखों की भारी भीड़ समाज मंदिर में उन्हें सुनने  को उमड़ पड़ी . टिल धरने को भी वहां स्थान नहीं था।


दोनों युवकों को धर्म पर दृढ कर दिया गया। इनमें एक श्री सुन्दरसिंह ने आजीवन आर्यसमाज की सेवा की सेना छोड़कर वह समाज सेवा के लिए समर्पित हो गया।


      मिर्जा काद्यानी ने सत्बचन ( सिखमत  खण्डन ) पुस्तक लिखकर सिखों में रोष व निराशा उत्पन्न कर दी । उत्तर कौन दे ? सिखों ने पंडित जी की और से रक्षा करने के लिए निहारा। धर्मवीर लेखराम ने जालंधर में मुनादी करवा कर गुरु नानक जी के विषय में भारी सभा की जालंधर छावनी के अनेक सिख जवान उनको सुनने के लिए आये पंडित जी ने प्रमाणों की झडी  लगाकर मिर्जा की भ्रामक व विषैली पुस्तक का जो उत्तर दिया तो श्रोता वाह ! वाह ! कर उठे ! व्याख्यान की समाप्ति पर पंडित लेखराम जी को कन्धों पर उठाने की स्पर्धा आरम्भ हो गयी। मल्लयुद्ध के विजेता को अखाड़े में कन्धों पर उठाकर जैसे पहलवान घूमते  हैं वैसे ही पंडित जो उठाया गया।


      जाती के लाल बचाने के लिए वे चावापायल में चलती गाडी से कूद पड़े जवान भाई घर पर मर गया।  वह सूचना पाकर घर न जाकर दीनानगर से मुरादाबाद मुंशी इन्द्रमणि जी के एक भांजे को इसाई मत से वापिस लाने पहुँच गए। मौलाना अब्दुल अजीज उस युग के एक्स्ट्रा असिस्टेंट कमिश्नर थे। इससे बड़ा पद कोई भारतीय पा ही नहीं सकता था। पंडित लेखराम का साहित्य पड़कर अरबी भाषा का इसलाम का मर्मग्य यह मौलाना पंजाब से अजमेर पहुंचा और परोपकारिणी सभा से शुद्ध करने की प्रार्थना की ”देश हितैषी “ अजमेर में छपा यह समाचार मेरे पास है। यह ऋषी जी के बलिदान के पश्चात् सबसे बड़ी शुद्धी थी।


     स्वयं पंडित लेखराम ने इसकी चर्चा की है .यह भी बता दूँ की इसरो के महान भारतीय वैज्ञानिक डॉक्टर सतीश धवन मौलाना के सगे सम्बन्धियों में से थे। आपको लाला हरजसराय नाम दिया गया। इन्हें सभा ने लाहौर में शुद्ध किया तब आर्यसमाज का कडा विरोध किया गया। अमृतसर के कुछ हिन्दुओं ने आर्य समाज का साथ भी दिया था। स्वामी दर्शनानंद तब पंडित लेखराम की सेना में थे तो उनके पिता पंडित रामप्रताप पोपमंडल  के साथ शुद्धि का विरोध कर रहे थे। आज घर वापस की रट  लगाने वाले शुद्धि के कर्णधार का नाम लेते घबराते व कतराते हैं । क्या वे बता सकते हैं की स्वामी विवेकानन्द जी ने किस किस की घर वापसी करवाई  कांग्रेस का तो आदि काल का बंगाली ब्राहमण बनर्जी ही इसाई बन चूका था।


     मौलाना अब्दुल्ला मेमार ने पंडित लेखराम जी के लिए “गौरव गिरि “ विशेषण का प्रयोग किया है। केवल एक ही गैर मुसलमान के लिए यह विशेषण अब तक प्रयुक्त हो हुआ है। यह है प्राणवीर पंडित लेखराम का इतिहास में स्थान व सम्मान।


     सिखों की एक “सिख सभा “ नाम की पत्रिका निकाली गयी  इसका सम्पादक पंडित लेखराम जी का दीवाना था। पंडित लेखराम जी का भक्त व प्रशंषक था। उसका कुछ दुर्लभ साहित्य में खोज पाया  पंडित लेखराम जी जब धर्म रक्षा के लिए मिर्जा गुलाम अहमद की चुनौती स्वीकार कर उसका दुष्प्रचार रोकने कादियान पहुंचे तो मिर्जा घर से निकला ही नहीं।


     आप उसके इल्हामी कोठे पर साथियों सहित पहुँच गए  मिर्जा चमत्कार दिखाने की डींगे मारा करता था। पंडित जी ने कहा कुरआन में तो “खारिक आदात “ शब्द ही नहीं . उसने कहा  है “ पंडित जी ने अपने झोले में से कुरान निकाल कर कहा  “ दिखाओ कहाँ है ?”


     वहां यह शब्द हो तो वह दिखाए  मौलवियों ने इस पर मिर्जा को फटकार लगाईं हिया  पंडित जी ने अपनी ताली पर “ओम “ शब्द लिखकर मुट्ठी बंदकर के कहा “ खुदा से पूछकर  बताओ मैने क्या लिखा है ?. सिख सभा के सम्पादक ने लिखा है कि  मिर्जा की बोलती बंद  हो गयी , वह नहीं बता सका कि  पंडित जी ने अपनी तली पर क्या लिखा हिया। अल्लाह ने कोई सहायता न की  पंडित लेखराम जी के तर्क व प्रमाण दे कर देहलवी के प्रधान मंत्री राजा सर किशन प्रसाद को मुसलमान बनने  से बचाया था।



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