परमात्मा की भक्ति

 


स नो बन्धुर्जनिता स विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा।
यत्र देवा अमृतमानशाना स्तृतीये धामन्नध्यैरयन्त ॥  यजुर्वेद॥
मंत्रार्थ – हे बंधुओं! वह परमात्मा अपने लोगों का भ्राता के समान सुखदायक, सकल जगत का उत्पादक, वह सब कामों का पूर्ण करनेहारा, संपूर्ण लोकमात्र और नाम, स्थान, जन्मों को जानता है, और जिस सांसारिक सुख दु:ख से रहित नित्यानंदयुक्त मोक्षस्वरूप धारण करनेहारे परमात्मा में मोक्ष को प्राप्त होकर विद्वान् लोग स्वेच्छा पूर्वक विचरते हैं, वही परमात्मा अपना गुरु, आचार्य, राजा और न्यायाधीश है अपने लोग मिलकर सदा उसकी भक्ति किया करें ।


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।