पांडुरंग महादेव बापट

पांडुरंग महादेव बापट



       28 नवम्बर स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी पांडुरंग महादेव बापट का निर्वाण दिवस है जो 'सेनापति बापट' के नाम से जाने जाते हैं। 12 नवम्बर,1880 को महादेव व गंगाबाई के घर पारनेर, महाराष्ट्र में में जन्में बापट उच्च शिक्षा हेतु मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने स्काटलैण्ड गये जहाँ वह भारतीय क्रान्ति के प्रेरणाश्रोत श्री श्यामजी कृष्ण वर्मा और वीर सावरकर के सम्पर्क में आये। मजदूरों-मेहनतकशों-आम जनों को एकता के सूत्र में बांघने तथा क्रांति की ज्वाला को तेज करने के उद्देश्य से श्यामजी कृष्ण वर्मा व सावरकर की सलाह पर बापट भारत वापस आये।


       शीव बन्दरगाह पर उतरने के पश्चात् धुले-भुसावल होते हुए कलकत्ता के हेमचन्द्र दास के घर माणिकतल्ला में पहुँचे। यहां कई क्रांतिकारियों के साथ आपकी बैठक हुई। इन्ही क्रान्तिकारियों में से एक क्रान्तिकारी बम प्रकरण में दो माह बाद गिरफतार हो गया, जो मुखबिर बन गया। बापट की भी तलाश प्रारम्भ हो गई और साढ़े चार वर्ष बाद इन्दौर में वो गिरफ्तार हो गए। इसी बीच मुखबिर बने नरेन्द्र गोस्वामी को क्रान्तिकारी चारू चन्द्र गुहा ने मार गिराया फलतः बापट पर कोई अभियोग सिद्ध नहीं हो सका।


       पांच हजार की जमानत पर छूटकर बापट पारनेर अपने घर आकर सामाजिक सेवा, स्वच्छता जागरूकता, महारों के बच्चों की शिक्षा, धार्मिक प्रवचन आदि कार्यों में जुट गये।इसके पश्चात् अण्ड़मान में कालेपानी की सजा भोग रहे क्रान्तिकारियों की मुक्ति के लिए स्वातंत्र्य वीर सावरकर के छोटे भाई डा. नारायण दामोदर सावरकर के साथ मिलकर आन्दोलन किया। इसी बीच टाटा कम्पनी ने महाराष्ट में सह्याद्रि पर्वत की विभिन्न चोटियों पर बाँध बाँधने की योजना बनायी। मुलशी के निकट मुला व निला नदियों के संगम पर प्रस्तावित बाँध से 54 गाँव और खेती डूब रही थी।इसके विरोध में हुए सत्याग्रहों में बापट कई बार गिरफ्तार हुए।


       रिहाई के बाद रेल रोको आन्दोलन किया जिसमें गिरफतारी के बाद 7 वर्ष तक सिंध प्रांत की हैदराबाद जेल में बापट अकेले कैद रहे। मुलसी आन्दोलन से ही बापट को सेनापति का खिताब मिला। रिहाई के बाद 28 जून 1931को महाराष्ट कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये। विदेशी बहिष्कार के आन्दोलन में अपने भाषणों के कारण बापट फिर जेल पहुँच गये और उन्हें 7 वर्ष के काले पानी तथा 3 वर्ष की दूसरे कारावास में रहने की दूसरी सजा मिली।


       सुभाष चन्द्र बोस के द्वारा फारवर्ड ब्लाक की स्थापना करने पर बापट को महाराष्ट शाखा का अध्यक्ष बनाया गया। फारवर्ड ब्लाक ने द्वितीय विश्व युद्ध में भारत को शामिल करने का विरोध किया। इसके विरोध में किये गये आन्दोलनों में बापट को कई बार गिरफ्तार किया गया पर इससे उनके जज्बे में कोई कमी नहीं आई। मातृभूमि की सेवा करने की जो शपथ 1902 में छात्र जीवन में बापट ने ली थी, आजन्म उसका अक्षरशः पालन किया। देश के लिए पूरा जीवन व्यतीत कर देने वाले इस सेनापति का अधिकांश समय जेल में ही बीता। 28 नवम्बर 1967 को उनका शरीरांत हो गया।


       संयुक्त महाराष्ट की स्थापना व गोवा मुक्ति आन्दोलन के योद्धा बापट सदैव हमारे मध्य सदैव प्रेरणा बन करके रहेंगे। इनके विषय में साने गुरू जी ने कहा था – 'सेनापति में मुझे छत्रपति शिवाजी महाराज, समर्थ गुरू रामदास तथा सन्त तुकाराम की त्रिमूर्ति दिखायी पड़ती है। साने गुरू जी बापट को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गाँधी तथा वीर सावरकर का अपूर्व व मधुर मिश्रण भी कहते थे। बापट को भक्ति, ज्ञान व सेवा की निर्मल गायत्री की संज्ञा देते थे-साने गुरू जी। ऐसे सेनापति बापट के निर्वाण दिवस पर उन्हें कोटिशः नमन ।



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