ऐतरेयापनिषद्

ऐतरेयापनिषद्


14. आत्मा जागृतावस्था में नेत्रों में, स्वप्नावस्था में कंठ में और सुषुप्तावस्था में हृदय में रहता हैआत्मा के विषय में ऐसा ही बृहदारण्यकोपनिषद् में भी लिखा है। इसके अतिरिक्त इसमें आत्मा के चौथे रूप को तुरीयरूप, अनिवर्चनीय रूप और नेति-नेति भी कहा गया है जोकि अग्राह्य है। 


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