मोदी सरकार का अभिनन्दनीय ऐतिहासिक निर्णय

मोदी सरकार का अभिनन्दनीय ऐतिहासिक निर्णय


श्री नरेन्द्र मोदी सरकार ने ५ अगस्त २०१९ को जम्मू- कश्मीर प्रान्त से धारा ३७० हटाने का एक साहसिक, राष्ट्रवादी और ऐतिहासिक निर्णय लिया है। इस निर्णय से सरकार ने अपने घोषित कार्यक्रम को क्रियान्वित कर दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय दिया है और यह सिद्ध कर दिया है कि देश सुरक्षित नेतृत्व के हाथों में है। सारा देश इस निर्णय से गद्गद है। इसके लिए श्री मोदी, गृहमन्त्री अमित शाह एवं उनकी सरकार बधाई की पात्र है। श्री नेहरू की अदूरदर्शितापूर्ण नीति को श्री मोदी ने दूरदर्शी बना दिया है। _ विश्व में शायद ही कोई ऐसा देश होगा कि किसी स्वायत्त देश में कोई स्वायत्त प्रदेश हो और जो अपना पृथक् अस्तित्व रखते हुए अपने देश के ही विरुद्ध गतिविधियों में संलिप्त रहकर मनमानी करता हो। उसी देश का लगभग मुफ्त खाता हो और उसी की ओर गुर्राता हो। अस्थायी शासन-व्यवस्था के रूप में लागू की गई धारा ३७० सम्पूर्ण भारत की स्वायत्तता पर कलंक बन गई थी, शासन-तन्त्र की कायरता की प्रतीक हो गई थी, देश की अन्य जनता के साथ अन्याय का उदाहरण बन गई थी, विश्व में भारत के उपहास का दृष्टान्त बन गई थी, सरकार की विवशता की कहानी हो गई थी। सत्तर वर्षों से पला- बढ़ा उनका अहंकार विस्फोटों की शक्ल में लोगों पर विस्फोट, गोली और पत्थर बनकर बरसने लगा था। भ्रम इतना पाल बैठे थे जैसे अब उनका कोई कुछ बिगाड़ सकने वाला नहीं है और वे अब सारे देश का बिगाड़ेंगे। पूरे देश में एक व्यक्ति पर यदि चार हजार का व्यय सरकार करती थी तो जम्म-कश्मीर में वह प्रति व्यक्ति बढ़कर लगभग पन्द्रह हजार रुपये प्रति माह खर्च होता था। देश में कोई भोज्य पदार्थ २०-२५ रुपये प्रति किलो है तो सरकार तुष्टीकरण करने के लिए कश्मीरियों को दो रुपये प्रति किलो के भाव से बाँट रही थी, लगभग मुफ्त । इतनी सख-सविधाएँ देने के बावजूद कश्मीरी लोग भारत को गालियाँ देते हैं, सेना को गालियों के साथ पत्थर मारते हैं, 'पाकिस्तान जिन्दाबाद' का नारा लगाते हुए उसका झण्डा फहराते हैं, भारतीय ध्वज का अपमान करते हैं। आतंकवाद, अलगाववाद को भड़काते हैं। आई.एस. आई.एस. जैसे बर्बर संगठन के कुख्यात ध्वज शासन को चिढ़ा-चिढ़ा कर फहराते हैं। बलात्कार, हत्याओं के द्वारा जनता में आतंक फैलाते हैं। सरकार द्वारा खान-पान, उदार व्यवहार करके जितना तुष्टीकरण किया जाता है उतना ही ये लोग भारत का विरोध एवं षड्यन्त्र करते हैं, उत्पात-मारपीट करते हैं। कश्मीर के शासन की शिथिलता का लाभ उठाकर . पाकिस्तानी घुसपैठ करके आते हैं और बलात्कार तथा हत्याएँ करते हैं, आतंक फैलाते हैं। सेनाओं पर आक्रमण करते हैं। पुलिसजनों की उनके घर में घुसकर हत्याएँ करते हैं।


                  जम्मू-कश्मीर प्रान्त में मुसलमानों के अतिरिक्त जम्मू हिन्दू बहुल है और लद्दाख बौद्ध-हिन्दू बहुल, किन्तु मुसलमान इस प्रान्त को अपनी पैतृक सम्पत्ति मानकर उनके अधिकारों का हनन करते हैं और उन पर अवसर पाकर अत्याचार करते रहते हैं। अत्याचार की पराकाष्ठा १९८९ में तब हो गई जब एकाएक रात में मस्जिदों से घोषणा की गई कि सुबह तक सभी हिन्दू-सिख कश्मीर को छोड़कर चले जायें। जो नहीं जायेंगे उनका कत्ल कर दिया जायेगा। लगभग साढ़े पाँच लाख पंडितों-सिखों को जान बचाने के लिए रातों-रात अपना घर छोड़कर, कश्मीर छोड़ कर भागना पड़ा। जो नहीं भागे आंतकियों ने उनका सामूहिक कत्ल कर दिया। तत्कालीन सरकार चुपचाप तमाशा देखती रही। घर-सामान छोड़ कर आये हिन्दुओं को न किसी ने काननी संरक्षण दिया और न सन्तोषजनक जीवन सुविधाएँ। सारे देश में वे दर-दर, सड़क-सड़क भटकते रहे। ऐसा लगा जैसे सरकार के संरक्षण में दूसरा भारत-पाकिस्तान का विभाजन हुआ है। कथित सेक्युलरवादी भी दुम दबाकर अपने घरों में बैठे रहे, जो वर्ग-विशेष के लोगों को जरा-सा कुछ होने पर हाय-तौबा मचा देते हैं। राजनीति की निकृष्ट और पक्षपातपूर्ण मानसिकता का खुला तांडव कश्मीर में मचता रहा है।


            प्यार और तुष्टीकरण से हालात संभलते न देख इस सरकार ने कठोर कदम उठाने का निर्णय लियाअब स्थिति पहले से अधिक नियन्त्रण में है। भारत से छिटककर अलगाववाद के कगार पर पहुँचा एक प्रदेश भारत की मजबूत पकड़ में आ गया है।


            जम्मू-कश्मीर पर धारा ३७० लागू करने से वहाँ के शासन-तन्त्र द्वारा शेष भारत से क्या-क्या अन्याय और पक्षपात होता रहा है, उसकी जानकारी हमें कश्मीर के इतिहास का सिंहावलोकन करने से मिलेगी। सन् १९४७ में भारत के आजाद होते समय जब सभी राज्यों का भारत में विलय हो रहा था तो जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राजा हरिसिंह ने अपने राज्य का विलय नहीं किया। राजा किसी आक्रमण से अपने राज्य की सुरक्षा करने में सक्षम नहीं था। अनुकूल परिस्थिति भाँपकर पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया और उसकी सेनाएँ आधे कश्मीर को हस्तगत कर चुकी थीं। तब राजा घबरा गया। उसने भारत के साथ विलय के पत्र पर हस्ताक्षर २७ अक्टूबर १९४७ को कर दिये। भारत के गृहमन्त्री सरदार पटेल ने सेनाएँ भेजी और काफी इलाका वापिस ले लिया। इसी बीच अपनी अदूरदर्शिता का परिचय देते हुए प्रधानमन्त्री नेहरू इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्रसंघ ले गये। संयुक्त राष्ट्र संघ ने युद्ध को रोककर, जो क्षेत्र जिसके अधिकार में उस समय था, निर्णय होने तक वहाँ उसकी उपस्थिति को बनाये रखने को स्वीकार कया। यह निर्णय भारत के लिये दुर्भाग्यपूर्ण था। पं. नेहरू की भूल से भारत को पहला नुकसान यह हुआ कि राजा हरिसिंह ने जो पूरा राज्य भारत को दिया था, उसका आधा हिस्सा पाक के अधिकार में रह गया और शेष बचा आधा भारत के अधिकार में। भारत के जम्मू-कश्मीर क्षेत्र को भारत का प्रदेश कहा जाता है और पाकिस्तान के कश्मीर को 'पाक अधिकृत कश्मीर' कहा जाता है। राज हरिसिंह ने क्योंकि सारा जम्मू-कश्मीर राज्य भारत को दिया था, अत: उस सम्पूर्ण क्षेत्र पर कानूनी और नैतिक दृष्टि से भारत का ही अधिकार है। पाक ने भारत के क्षेत्र पर अवैध कब्जा किया है।


पं. नेहरू ने दूसरी महान् भूल यह की कि शेख अब्दुल्ला से मिलकर जम्मू-कश्मीर में धारा ३७० की सुविधा दे दी और असंवैधानिक तरीके से ३५ ए धारा भी लागू कर दी। इन धाराओं के अन्तर्गत इस प्रान्त को असीमित पक्षपातपूर्ण अधिकार दे दिये गये और यह राज्य उन अधिकारों की आड़ में एक स्वतन्त्र देश बनने की तैयारियों की ओर बढ़ चला। दो-तीन परिवारों ने यहाँ शासन किया और वोटों के स्वार्थ में जनता को बहकातेभड़काते रहे। आतंकवादियों तथा अलगाववादियों को हवा देते रहे और यह प्रदेश आतंकवादियों तथा अलगाववादियों का अड्डा बनता गया। उक्त-धाराओं के लगने से और हटने से प्रान्त की स्थिति में क्या परिवर्तन आया है, उसका विवरण पढ़कर भारत के राष्ट्रवादी जन अचम्भित हो जायेंगे


- १. जम्मू-कश्मीर को एक विशेष दर्जा दिया गया जिसमें उसके लिए शेष भारत से विशेष अधिकारों और सुविधाओं का प्रावधान था। अब वह समाप्त हो गया है और सभी प्रान्त एक संविधान के अन्तर्गत समान भाव से आ गये हैं। आश्चर्य की बात यह है कि उक्त धाराओं की व्यवस्था अस्थायी रूप में की गई थी, किन्तु सत्तर वर्ष से जड़ जमाकर वह स्वतः स्थायी बन गई थी। उसको हटाने की किसी की हिम्मत नहीं हुई जबकि उसकी आड़ में अन्याय-अत्याचार खुलकर निरन्तर होते रहे।


. २. रक्षा, विदेशनीति, वित्त और संचार मामलों को छोड़कर वहाँ भारत का संविधान लागू नहीं होता था। उनका अपना स्वतन्त्र संविधान था। यहाँ तक कि अपराधों पर भी 'भारतीय अपराध कानून' लागू नहीं था। उनका अपना स्वतन्त्र, पृथक् कानून था। अब भारत का ही कानून वहाँ लागू होगा। आप कल्पना कर सकते हैं कि देश का कैसा मजाक बना रखा था।


३. भारत के किसी भी अन्य प्रदेश के नागरिक को वहाँ की नागरिकता का अधिकार नहीं था, अतः वह न वहाँ जमीन खरीद सकता था, न घर बना सकता था, न नौकरी कर सकता था, न व्यापार कर सकता था। मुगल बादशाहों से भी अन्यायपूर्ण व्यवस्था वहाँ बना रखी थी। अब वहाँ देश के अन्य भागों के समान सबको सारे अधिकार प्राप्त होंगे।


४. यह छूट दी गई थी कि कश्मीर में भारत से भिन्न वहाँ का अलग राष्ट्रप्रमुख (राष्ट्रपति) होगा जिसे 'सदरए-रियासत' कहा जायेगा और वहाँ के मुख्यमन्त्री को 'प्रधानमन्त्री' कहा जायेगा। वहाँ का भारतीय तिरंगा ध्वज नहीं होगा अपितु स्वतन्त्र, पृथक् ध्वज होगा। इसी कारण वे भारतीय ध्वज और अन्य राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान किया करते थे। फिर भी उनके विरुद्ध भारत में कोई कानूनी कार्यवाही नहीं हो पाती थी। अब उनको भारतीय कानून के अन्तर्गत रहना अनिवार्य है। भारत का राष्ट्रपति वहाँ का राष्ट्रपति होगा। प्रमुख मन्त्री का मुख्यमन्त्री नाम होगा। भारत का तिरंगा वहाँ का ध्वज होगा। एक ही देश में दो 'राष्ट्रपति', दो 'प्रधानमन्त्री' ऐसा विचित्र देश रहा है हमारा!!


५. जैसे किसी पराये देश में जाने के लिए 'वीजा' लेना पड़ता है, ठीक वैसे ही पहले किसी भी भारतवासी को कश्मीर में प्रवेश के लिए वहाँ की सरकार से अनुमति लेनी पड़ती थी। बिना अनुमति के प्रवेश करना दण्डनीय अपराध थाभारत की प्रथम सरकार में श्री नेहरू के मन्त्रिमण्डल में मन्त्री रहे श्री श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने मन्त्री पद से त्यागपत्र देकर, उक्त अन्यायों के विरुद्ध, बिना अनुमति के कश्मीर में प्रवेश किया था। शेख अब्दुल्ला सरकार ने उनको जेल में डाल दिया। कुछ दिन बाद रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। उनके और कुछ अन्य राष्ट्रभक्तों के बलिदान के बाद यह प्रतिबन्ध हट गया।


६. यदि कोई जम्मू-कश्मीर की लड़की प्रदेश से बाहर विवाह कर लेती थी तो उसके वहाँ की सम्पत्ति के अधिकार समाप्त हो जाते थे। अब भारत के नियमों के अनुसार उसके अधिकार सुरक्षित रहेंगे।


७. वहाँ अल्पसंख्यक वर्ग को आरक्षण नहीं मिलता था। अब मिलेगा।


८. जम्मू-कश्मीर के साढ़े सात लाख हिन्दुओं को लोकसभा में वोट देने का अधिकार तो है किन्तु वहाँ की विधानसभा और पंचायत में वोट देने का अधिकार नहीं दिया है, ताकि वहाँ के ठेकेदारों की कुर्सी बची रहे। उन्हें नागरिकता भी नहीं मिली है और उसके कारण नौकरी, व्यापार, मकान, जमीन नहीं है। क्या इतने घोर अन्याय की कल्पना पाठक कर सकते हैं? वह भी स्वतन्त्र कहे जाने वाले स्वायत्त भारत में! और यह घोर अन्याय सत्तर साल से चल रहा है। कोई कथित सेक्युलर कभी इतने अन्याय के विरुद्ध नहीं बोला? क्या इससे बड़ा उनका पाखण्ड हो सकता है?


                                वस्तुतः अब कश्मीर आजाद हुआ है और सही मायनों में भारत स्वायत्तशासी, स्वतन्त्र देश बना है। भारत सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के निर्णय से अब कश्मीर की स्थिति नियन्त्रित और सुदृढ़ बन जायेगी। अब 'टुकड़ेटुकड़े' गैंग आजादी नहीं मांगेगा, क्योंकि मोदी जी ने दे दी है!! अब -


-जम्मू-कश्मीर दो प्रान्तों में विभक्त हो गया है, लद्दाख और जम्मू-कश्मीर। जम्मू-कश्मीर


-जम्मू-कश्मीर दिल्ली के समान केन्द्रशासित प्रदेश होगा जिसकी अपनी विधानसभा रहेगी। इसका कार्यकाल अब छह वर्ष के स्थान पर पाँच वर्ष का होगा।


-लद्दाख पृथक् केन्द्रशासित प्रदेश होगा। दोनों राष्ट्रपति के अधीन रहेंगे। मोदी सरकार का शतशः अभिनन्दन!!


डॉ. सुरेन्द्र कुमार


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