“महर्षि का वेद-भाष्य तर्कव विज्ञान पर आधारित है"

“महर्षि का वेद-भाष्य तर्कव विज्ञान पर आधारित है"


       यह लेख मैने आदरणीय डॉ. सोमदेव जी शास्त्री द्वारा लिखित “यजुर्वेद सन्देश" पुस्तिका से उद्धृत किया है। डॉ.साहब आर्य जगत् के एक उच्चकोटि के प्रतिष्ठित वैदिक विद्वान है। सभी आर्यजन इनको श्रद्धा व सम्मान की दृष्टि से देखते है। प्रसन्नता की बात यह है कि डॉ. साहब मेरे परिवार स विशेष रुप से जुड़े हुए हैं। मेरे परिवार वालों ने मेरे स्व. पिता गोविन्दराम आर्य (प्रधान जी) की पुण्य स्मृति में "आदर्श आर्य प्रवर” शीर्षक की पुस्तक छपवाई थी। उसका सम्पादन डॉ. साहब ने ही किया था, जिसकी सभी लोगों ने बड़ी प्रशंसा की थी। इसी पुस्तक के लोकार्पण के समय सोमदेव जी मेरे गांव देवराला (हरियाणा) भी गये थे। मेरे पूरे परिवार से इनका घनिष्ठ सम्बन्ध है। कलकत्ता में मेरे घर को भी इन्होंने कई बार पवित्र किया है। इस प्रकार ये मेरे पूरे परिवार से पूर्ण परिचित हैं


       इनकी पुस्तक “यजुर्वेद सन्देश" को पढ़ने से इनकी प्रकाण्ड विद्वता का परिचय मिल जाता है। इस पुस्तक के स सुस्पष्ट हो जाता है कि महर्षि देव दयानन्द का वेद भाष्य, अन्य भाष्यकारों से कहीं अधिक सार्थक और सही है जो तर्क और विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरता है। पहले से भाष्यकार वेदों में हिंसा, इतिहास तथा केवल कर्मकाण्ड के ही मानते थे। परन्तु महर्षि ने वेदों के सही अर्थ लगाकर यह बतला दिया कि वेदों में कहीं पर भी हिंसा नहीं है और न ही इनमें इतिहास है और वेद केवल कर्मकाण्ड के ही नहीं बल्कि सब सत्य विद्याओं के ग्रन्थ है। महर्षि ने यह सिद्ध करके मानव मात्र का बड़ा उपकार व कल्याण किया है। इसी भावना से प्रेरित होकर मैने भी जो लेख लिखा है, इसे पढ़कर मैं आशा करता हूं कि सुधि पाठकगण वेदों के सही स्वरुप को समझ पायेंगे। यही मेरी उपलब्धि होगी। लेख इसी भांति है।


      १. मध्यकालीन वेद भाष्यकार:- मध्यकाल में अनेक वेद भाष्यकार हुए हैं, जिन्होंने वेदों का या वेद के कुछ हिस्सों का भाय किया है। विक्रम संवत ६८७ में स्कन्द स्वामी ने ऋग्वेदके प्रथम अष्टक के ४-५ सूत्रों का आधियाज्ञिक प्रक्रिया (कर्मकाण्ड परक) वेदभाष्य किया। स्कन्द स्वामी के समय ही उद्गीथ हुए हैं, उन्होंने ऋग्वेद के दसवें मण्डल के पांचवे सूक्त के चौथे मन्त्र से ८६ सूक्त के ६ मन्त्र तक वेद भाष्य किया। यह भाष्य भी कर्मकाण्ड परक ही है। विक्रम संवत् की १२वीं शताब्दी में वेंकट माधव ने ऋग्वेद का आधियाज्ञिक प्रक्रिया के अनुसार भाष्य किया। विक्रम संवत् की १३वीं शताब्दी में आत्मानन्द ने ऋग्वेद के अस्यवामीय सूक्त (ऋग्वेद के पहले मण्डल के १६४ सूक्त) का आध्यात्मिक प्रक्रियानुसार भाष्य किया। आनन्द तीर्थ ने (विक्रम संवत् १२५५-१३३५) ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के चालीस सूक्तों का आध्यात्मिक भाष्य किया। सायणाचार्य (विक्रम संवत् १३७२-१४४२) ने सम्पूर्ण ऋग्वेद का (बालखिल्य सूक्तों को छोड़कर) आधियाज्ञिक प्रक्रिया परक भाष्य किया। कहीं-कहीं आध्यात्मिक प्रक्रियानुसार अर्थ भी दिये हैं।


       उव्वट (विक्रम संवत ११००) ने यजुर्वेद का भाष्य किया जो कर्मकाण्ड परक भाष्य है। महीधर (विक्रम संवत् १६४५) ने भी यजुर्वेद का भाष्य याज्ञिक प्रक्रियानुसार दिया। इन दोनों भाष्यकारों ने यजुर्वेद के प्रत्येक मन्त्र को यज्ञ में होने वाली प्रक्रियाओं के साथ जोड़ा। गोमेध, अश्वमेधादि शब्दादि का अनर्थ करके पशु हिंसा जैसे जघन्य कृत्य को यजुर्वेद के मन्त्रों द्वारा प्रतिपादित किया। यजुर्वेद की तैतिरीय शाखा का भाष्य भट्ट भास्कर ने विक्रम संवत् ११०० में किया तथा इसी शाखा का सायण ने भी भाष्य किया।


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