“महर्षि का वेद-भाष्य तर्कव विज्ञान पर आधारित है" 1

सामवेद का भाष्य भरत स्वामी ने विक्रम संवत् १३६० के लगभग किया. कर्मकाण्ड परक अर्थों के साथसाथ कहीं-कहीं अध्यात्म परकअर्थ भी किये । माधव जो विक्रम संवत शताब्दी में हुए, उन्होंने भी सामवेद का भाष्य किया । आधियाज्ञिक प्रक्रिया के अतिरिक्त कुछ मन्त्रों का , आध्यात्मिक अर्थ भी किया। अपने भाष्य में ब्राह्मण ग्रान्थों के प्रमाण भी उद्धृत किये । भरत स्वामी और माधव के अतिरिक्त सायण ने भी सामवेद का भाष्य किया। अथर्ववेद का मध्यकालीन आचार्यों में केवल सायण ने ही भष्य किया। इसमें भी उन्होंने मन्त्र-तन्त्र, जादू-टोना कृत्य, अभिचार (हिंसा) आदि ग्रन्थों का वर्णन भाष्य करते हुए किया।


मध्यकालीन सभी आचार्यों ने अपने भाष्यों में मुख्य रुप से याज्ञिक कर्मकाण्ड का वर्णन किया। इनमें भी पशु . हिंसा, मांस-भक्षण, जादू-टोना, मारम-उच्चाटन, अग्निइन्द्रादिदेवताओं का शरीर स्वर्ग में निवास, उनका परिवार सहित सुख, ऐश्वयों को भोगना, यज्ञ की हानि (आहूति) का भक्षण करने के लिए स्वर्ग से अदृष्य रुप में यज्ञ स्थल पर अपना और यजमान को आशीर्वाद देना, मरने के बाद यजमान को स्वर्ग में ले जाना आदि अनेक मिध्या विचार धारा वेद के नाम पर प्रचलित करने का कार्य भी किया, जिससे सामान्य जनता वेदों से विमुख हो गई। वेद केवल कुछ व्यक्ति विशेष (ब्राह्मणों) के लिये ही हैं जो याज्ञिक कर्मकाण्ड कराते हैं, इसी प्रकार वेद केवल याज्ञिक कर्मकाण्ड के लिये ही उपयोगी है। यह प्रसिद्ध कर दिया गया। इस प्रकार जन सामान्य की वेद से रुचि हट गई। वेद कथा, वेद प्रवचन प्रचारादि के स्थान पर भगवत गीता, उपनिषद् और सत्यनारायण आदि की कथा तथा प्रवचनादि प्रचलित हो गये।


पाश्चात्य विद्वान:-आधुनिक युग (१८वीं, १९वीं शताब्दी) में वेदों पर भारत के अतिरित्त पाश्चात्य देशों के ." विद्वानों ने भी कार्य किया। सन् १८५० में डॉ. एच.एच विल्सन ने सायण भाष्य के आधार पर ऋग्वेद का अंग्रेजी में अनुवाद किया। प्रो. मेक्समूलर ने रुद्र, मारुत, वायु आदि देवताओं के सूक्तों का कार्य किया । जर्मन भाषा में ऋग्वेद का पद्यानुवाद जर्मन विद्वान् ग्रासमान ने सन् १८७६-१८७७ में किया। इसी प्रकार जर्मन विद्वान ए. लुडविग, एच. ओल्डनवर्ग ने ऋग्वेद का जर्मन अनुवाद किया। आर.टी.एच. विद्वान् ने फ्रेंच भाषा में ऋग्वेद का अनुवाद किया। डॉ. कीथ ने तैत्तिरीय संहिता का का अंग्रेजी में अनुवाद किया। थियोडोर बेन्फे ने (सन् १८४८ में) सामवेद (कौथुम शाखा) का जर्मन . अनुवाद किया। अथर्ववेद (शौनक संहिता) का डब्लू. एच. -----ने तथा अथर्ववेद (पैप्सलादशाखा) का ब्लूमफील्ड ने अंग्रेजी अनुवाद करके सन् १९०१ में प्रकाशित कियाइस प्रकार विदेश में वेदों पर विगत दो सौ वर्षों से बहुत कार्य हुआ।


महर्षि दयानन्द:- महर्षि दयानन्द ने बहुत थोड़े समय में वेदों का प्रचार-प्रसार करना, ईश्वर, धर्म और वेदों के नाम पर प्रचलित पाखण्ड और अन्धविश्वास का खण्डना करना, शंका-समाधान करना, शास्त्रार्थ करना, स्वार्थी लोगों द्वारा उपस्थित विघ्न-बाधाओं का सहन करना, दिन-रात प्रचार यात्रा करना, छोटे-बड़े ४३ ग्रन्थों को लिखना, अपने आप में एक अद्भुत कार्य उन्होंने किया। स्वार्थी और मूर्ख व्यक्तियों ने इन पर ईंट-पत्थर फेंके, खाने में विष मिलाया, कुटिया में आग लगाई, ध्यान में बैठे हुए को नदी में फेंका आदि दुष्कृत्य किये, किन्तु गुरु भक्त एवं प्रभु विश्वासी देव दयानन्द अपने लक्ष्य से कभी विचलित नहीं हुए और गुरु को दिया वचन उन्होंने आजीवन निभाया।


मध्यकालीन आचार्यों ने यजुर्वेद का भाष्य करते हुए उत्वर और महीधर ने गो मेध, अश्वमेध, नरमेधादिशब्दों को लेकर गाय, घोड़ा, नर आदि की हिंसा का विस्तार से वर्णन किया। यजुर्वेद के छठे अध्याय के ७ से २२वें मन्त्र तक पशु को बांधना, देवता के लिये उसका वध करना, आहुति देने का भयानक चित्रण किया है। साथ ही यह भी प्रचलित कर दिया कि यज्ञ के लिये की गयी हिंसा, हिंसा नहीं होती । ऐसा कुकृत्य वेदों के साथ किया गया, जिसे पढ़कर विवेकशील व्यक्ति वेदों से विमुख हो गये। महर्षि दयानन्द ने पशुओं की रक्षा करने का उपदेश दिया। गौ को अध्या अर्थात् हिंसा के अयोग्य बताया और गो मेध का अर्थ गाय की हिंसा नहीं, अपितु इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखना है, अश्वमेध का अर्थ घोड़े को मारना नहीं अपितु प्रजा का पालन करना है। मृतक शरीर अर्थात् शब का अन्त्येष्टि संस्कार को नर मेध बताया। साथ ही यह भी बताया कि इनकी हिंसा करने वाले को सीसे की गोली से मार देना चाहिए। वेदों के नाम पर पशु हिंसा के कलंक को समाप्त करने का अद्भुत कार्य महर्षि ने अपने वेद भाष्य के द्वारा किया। साथ ही वेदों को ईश्वरीय ज्ञान तथा सब सत्य विद्याओं की पुस्तक बतलाकर वेदों के महत्व को बढ़ाया और वेदों को केवल कर्मकाण्ड तक ही सीमित नहीं रखा।


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