मातृ-पितृ श्लोक

त्वमेव माता ममता त्वमेव, त्वमेव वन्धा सुखदा त्वमेव। त्वमेव धनदा बलदा, त्वमेव, त्वमेव सर्व मम मातृदेवि॥


अर्थः- अरि माँ! तुम ही मेरा निर्माण करने वाली हो। तुम्हीं मेरी सच्ची ममता हो। तुम ही वन्दनीया और सुख देने वाली हो। धन तथा बल के देने वाली आप ही होऔर क्या कहूँ मातातुम ही मेरे लिये सब कुछ हो।


प्रातर् नमामि जननीचरणाररविन्दम् , नित्यं स्मरामि तव चेह परोपकार्यम्। नूनं सदा तव वदामि सुकीर्तिजातम्, गीतं नु देवजनवृन्दवरैः सुगीतम्॥


अर्थः- मैं शुभ ब्राह्ममुहूर्त में सर्वप्रथम जननी न माँ के चरण कमलों में नमन करता हूं। हमेशा ही तेरे परोपकार कार्यों का स्मरण करता हूं। सदैव तेरी बड़ाई के गीत गाता हूँ। तेरे जिन सुन्दर गीतों का गायन देवताओं ने किया है। उनका कीर्तन मैं भी करता रहता हूं। 


माता भवति निर्माता माता न्यायनियामिनी। आराध्य मातैव नु सुधर्मा च माता च कुलवर्धिनी॥


अर्थः- माता वह है जो संतान का अच्छी प्रकार निर्माण करना जानती है। माता ही न्याय नियमों को धारण करने वाली है। संसार में माता ही धर्मरूपा है और माता ही कुल बढ़ाने वाली है।


निर्वासनः स प्रददाति वस्त्रमूढ़वाऽपि भारं च भारकर्ता। दुःखस्यहर्ता च सुखस्य दाता लोके नु मान्यः स पिता सदा में।


अर्थ:- स्वयं वस्त्रहीन होकर भी सन्तान को वस्त्र देता है। दायित्व का बोझ उठाता है। परन्तु किसी के लिए भार नहीं बनता। परिवार के दु:खों का हर्ता परन्तु सुखप्रदाता है। इस प्रकार के मेरे आराध्य पिता सम्मान के पात्र है।


पित्रा नु सर्व खलु निमितं मे, पुष्टं शरीरं हि शुभं च चेतः। शुद्ध चरित्रं ननु येन जातम् , स्वर्गश्च मोक्षश्च पितस्सगेहे॥


अर्थः- पिता सन्तान के लिए सब कुछ बनाता है। हष्ट-पुष्ट, तन, निर्मल, मन, पवित्र, चरित्र उसकी देन है। यदि माना जाय तो पिता के घर में स्वर्ग और मोक्ष है।


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