क्या ईश्वर की मर्जी के बिना पता भी नहीं हिलता ??

क्या ईश्वर की मर्जी के बिना पता भी नहीं हिलता ??


कल शाम को खेत में भ्रमण के लिऐ गया तो गांव के दो व्यक्ति शराब पी रहे थे और बात कर रहे थे ,ईश्वर की मर्जी के बिना तो पता भी नहीं हिलता ,जो करता है ईश्वर ही करता है ,,


तो मैंने उनसे प्रश्न किया कि जो बलत्कारी बल्तकार करता है ,तो उसे कानून सजा क्यों देता है क्योंकि वह बल्तकार भी बल्तकारी ने ईश्वर की मर्जी से किया है ।जब उसने ईश्वर की मर्जी से किया है तो दोषी भी ईश्वर होना चाहिऐ ,बल्तकारी को सजा क्योंं मिलती है ??


इसी प्रकार पिछले दिनों चिदंबरम भ्रष्टाचार के कारण जेल गये थे ,जब उसने सब ईश्वर की मर्जी से किया था तो चिदंबरम को जेल क्यों हुई ।


इसलिऐ कोई चोरी ,हिंसा हत्या ,बल्तकार सब काम भी ईश्वर की मर्जी से होते है तो दोषी भी ईश्वर होना चाहिऐ ,तो संविधान की क्या आवश्यकता है ??


लेकिन ये सिद्धांत गलत है और मूर्ख लालची धर्मगुरुओं ने अपना उल्लू सीधा करने के लिऐ प्रचारित किया है ।


परमात्मा ने जीवात्मा को स्वतंत्रता दी है ,कर्तुं न कर्तुं अन्यथा कर्तुं अर्थात् करे न करे अन्यथा करे ...


सब जीवात्मा की इच्छा पर निर्भर करता है ।और आत्मा का लिंड्ग है -


इच्छाद्वेषप्रयत्नसुखदुखज्ञानानि आत्मनिलिङ्गानि ... 


जैसे आपके पास खेत है और बीज भी हैं मूंग ,गेहूं ,बाजरा आदि का ..अब आपकी इच्छा है आप गेहूं बोयें ,मूंग बोएं या कुछ ओर ..


लेकिन उसका फल आपके हाथ नहीं है ,क्योंकि किया कर्म कभी निष्फल नहीं जाता ..इसलिऐ आम बोलचाल की भाषा में कहा जाता है जैसा करोगे वैसा बरोगे ।


गीता भी कहती है 
कर्मन्यवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
कर्म का अधिकार आपके पास है ,फल का नहीं ।


परमात्मा तो एक राजा की भांति है जो जीवों को उनके अच्छे बूरे कर्मों के आधार पर फल देता है ।आत्मा एक नित्य वस्तु है उसे परमात्मा भी नहीं बनाता ।


इसलिऐ गीता कहती हैं ...
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैंन दहति पावकः 
न चैनं कलेद्यन्त्यापो न शोषयति मारुतः ।


योग दर्शन का ऋषि पतंजली कर्म के फल के विषय में कहते हैं ।
सति मूले तद् विपाको जातिर्आयुभोग ...


अर्थात् कर्मों का फल जाति आयु भोग के रुप में मिलता है ।
जैसे आपने मनुष्य बनने के कर्म किये हैं तो आपको मनुष्य जन्म ,उसके अनुसार आयु और उसके अनुसार ही भोग मिलता है ।कर्मों के अनुसार ही हमारा जन्म गरीब अमीर आदि भोग के रुप में होता है ।


परमात्मा तो न्यायधीश की तरह न्यायकर्ता है ।


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