कर्नाटक और तमिलनाडु में सोने के मंदिर तबाह

कर्नाटक और तमिलनाडु में सोने के मंदिर तबाह



       तेलंगाना को तबाह करने के बाद अलाउद्दीन खिलजी की बुरी नज़र कर्नाटक और तमिलनाडू पर गई। ये वो इलाके थे, जहाँ दिल्ली पर कब्ज़े के बाद पहली बार इन इस्लामी लुटेरों ने धावे बोले। सन् 1311। एक बार फिर मलिक काफूर को इस लंबी  यात्रा में लुटेरी फौज के नेतृत्व की कमान सौंपी जाती है।


       लगातार लूट में हासिल बेहिसाब दौलत ने दिल्ली के इन बेरहम तुर्क लुटेरों में गजब का जोश भर दिया था। खुद को इस्लाम का झंडाबरदार मानने वालों के लिए यह एक अलग तरह का एडवेंचर था। एक बार फिर दिल्ली से चली फौजें देवगिरि आती हैं, जहाँ राजा रामदेव की मृत्यु हो चुकी थी।


       कर्नाटक में राजा बल्लाल देव तृतीय हैं। इनकी राजधानी है द्वार समुद्र (या घोर समुद्र), जो आज मैसूर के पास होलेबिडु के नाम से मशहूर ऐतिहासिक मंदिरों की शानदार विरासत वाली जगह है। देवगिरि के यादवों की तरह यहाँ भी 300 सालों से स्थापित होयसाला राजाओं की पीढ़ियों से संचित दौलत और राज्य इस हमले के शिकार होते हैं। सबसे पहले जियाउद्दीन बरनी की रिपोर्ट–


       “देवगिरि पहुँचने के बाद मलिक नायब कूच करता हुआ घोर समुद्र की सीमा पर जा पहुँचा। पहले ही हमले में बल्लाल राय इस्लामी हमले में हार गया। घोर समुद्र पर फतह हासिल हुई। 36 हाथी और पूरे खजाने पर कब्जा कर लिया गया। जीत की खबरें दिल्ली भेजी गईं।”


      मुहम्मद कासिम हिंदू शाह फिरिश्ता की ज़िंदगी दक्षिण में ही गुज़री थी। वह सबसे पहले अहमदनगर के निज़ामशाह की नौकरी में था और फिर बीजापुर के इब्राहिम आदिलशाह द्वितीय के यहाँ रहा। दूर दक्षिण भारत में खिलजी की इस महालूट पर उसका ब्यौरा वहीं से सुनिए–


      “मलिक नायब ने बिलाल देव को बंदी बना लिया। उसके राज्य का विध्वंस कर दिया गया। मंदिरों को तुड़वा डाला है। समस्त जड़ाऊ मूर्तियों पर कब्ज़ा हो चुका है। चूने की एक छोटी मस्जिद बनाई गई, जहाँ से अजान दी गई। अलाउद्दीन के नाम का खुत्बा पढ़ा गया।”


      कर्नाटक के द्वार समुद्र और तमिलनाडु में माबर (प्रसिद्ध पुरातत्वविद् केके मोहम्मद के अनुसार द्वार समुद्र वर्तमान मैसूर के पास होयसला राजाओं की राजधानी आज होलेबिडु है और माबर तमिलनाडु में चेन्नई के आसपास का राज्य था)। मलिक काफूर के इस हमले में पहले द्वार समुद्र को लूटा गया। फिर माबर की तरफ ये लुटेरे झपटे। फरिश्ता ने इस लूट से चौंधियाई दिल्ली की आँखों का ब्यौरा इस प्रकार लिखा-


     “मलिक नायब सारी लूट की दौलत को हाथियों पर लदवाकर माबर पहुँचा। वहाँ के मंदिरों को भी मटियामेट कर दिया गया। इस इलाके से लूटमार के बाद वह दिल्ली पहुँचा। 312 हाथी, 20,000 घोड़े, 96 मन सोना, जो करीब 10 करोड़ तनकों के बराबर था, सोने और मोती से भरे अनगिनत संदूक सीरी के हजार सुतून के महल में सुलतान के सामने पेश किए गए।


      लूट की यह दौलत देखकर वह बहुत खुश हुआ। उसने अपने अमीरों को दस-दस और पाँच-पाँच मन सोना दिया। आलिमों और सूफियों को भी उनकी श्रेणी के अनुसार एक-एक और आधा-आधा मन सोना दिया। बचे हुए सोने की मोहरे ढलवाई गईं।”


     गौरतलब बात यह है कि तेलगांना के बाद दक्षिण की इस दूसरी महालूट के सामान में चांदी का जिक्र तक कहीं नहीं है। सिर्फ सोना या कीमती जवाहरात और उनसे भरे संदूकों की ही खटपट दिल्ली में सुनाई दे रही है। चर्चा भी हिंदुस्तान के इस सबसे मालामाल इलाके की है, जिसकी मिल्कियत की एक झलक इन दो लूटों में खिलजी के कारण मिली।


      इससे दिल्ली में दक्षिण की समृद्धि को लेकर छवि यह बनी कि उस इलाके में चांदी की कोई हैसियत ही नहीं है। लोग सोने का ही इस्तेमाल करते हैं। वहाँ के फकीर भी चांदी के आभूषण पहनने में अपनी बेइज्ज़ती समझते हैं। लाेग अधिकतर सोने के ही बर्तनों में भोजन करते हैं। अब हमें बरनी माबर के बारे में बता रहा है और वहाँ भी सोने के चमचमाते मंदिर देखे गए हैं–


     “माबर के सोने के मंदिर तोड़ दिए गए हैं। सोने की मूर्तियाँ, जिन्हें बरसों से वहाँ के हिंदू अपने देवी-देवता मानते थे, तुड़वा डाली गई हैं। मंदिर की सारी धन-संपदा, जड़ाऊ सोने की मूर्तियाें के टुकड़े बहुत बड़ी संख्या में खजाने में दाखिल कराए गए हैं। माबर दो रायों के मातहत है। दोनों रायों के सारे हाथी और खजाने कब्ज़े में आ चुके हैं। माबर पर फतह की खुश-खबर भी दिल्ली भेज दी गई है।“


     जब दक्षिण के दो राज्यों को लूटकर मलिक काफूर की फौजें दिल्ली लौटकर आती हैं तो दिल्ली शहर में चर्चा का विषय यही था कि दक्षिण से कितना माल मिला? बरनी ने आम लोगों की राय भी जुटाई है। वह बता रहा है-


     “देहली के सभी तजुर्बेकार उम्रदराज लोग इस बात से राजी हुए कि इतना और इस प्रकार की लूट का सामान, इतने हाथी और सोना माबर और घोर समुद्र पर हमले के बाद हासिल हुआ है कि इससे पहले किसी कालखंड में इतना माल दिल्ली नहीं आया था। न तो ऐसा किसी की याददाश्त में है और न ही किसी दस्तावेज में ऐसा दर्ज है कि इतना सोना और इतने हाथी दिल्ली आए हों।”


     खिलजी का सितारा किस कदर बुलंद था! जब लूट की दौलत दिल्ली वालों की चर्चा का खास विषय थी तभी एक ही साल पहले लूटकर कब्जाए गए तेलंगाना से राजा रुद्रदेव की ओर से 20 हाथी और तय धन-संपत्ति की पहली खेप दिल्ली पहुँचती है। 13वीं सदी में बरनी के अलावा एसामी की आँखों से भी दक्षिण की यह लूट बची नहीं है। उसने लूट के माल के साथ आई खबरों को दर्ज किया है। वह लिख रहा है-


    “माबर में हिंदुओं का एक प्रसिद्ध मंदिर था, जो विशुद्ध सोने से बना हुआ था। उसमें मोती, लाल और जवाहरात जड़े हुए थे। मलिक नायब को हुक्म था कि वह सबसे पहले मंदिर का सोना प्राप्त कर ले। उसके बाद ही इलाके की धन-संपदा पर कब्ज़ा करे।


     40 दिन के भीतर देवगिरि पार करके बल्लाल की सीमा पर पहुँच गया। बल्लाल को खबर मिली तो वह हाथी, घोड़े और संपत्ति भेजकर समझौते पर राजी हो गया। एक हफ्ते में ही मलिक नायब ने बल्लाल से ही माबर का रास्ता बताने को कहा, जिसे बल्लाल ने स्वीकार कर लिया। छह महीने बाद वे दिल्ली पहुँचे। बल्लाल को भी मलिक नायब अपने साथ ले आया था। उसे इज्ज़त दी गई। 10 लाख तनके देकर उसे उसके राज्य की ओर लौटा दिया गया।”


      पहली, हमने देखा कि अलाउद्दीन खिलजी ने विदिशा पर हमला किया और विदिशा वालों ने उसे देवगिरि का पता बताया। देवगिरि पर हमले और लूट के बाद राजा रामदेव के कंधे पर सवार होकर वह तेलंगाना को लूटता है। तेलंगाना के बाद कर्नाटक में द्वार समुद्र को लूटा जाता है और यहाँ के बल्लाल देव की मदद माबर को लूटने में ली जाती है।


     तेलंगाना में रुद्र देव और कर्नाटक में बल्लाल देव देवगिरि के रामदेव के समकालीन हैं और इनकी सीमाएँ एक-दूसरे से सटी भी थीं। 1296 में जब देवगिरि पहली बार लुटा तब वारंगल और द्वार समुद्र या माबर तक भी खिलजी के खौफनाक हमले की खबरें पहुँची ही होंगी। मुमकिन है अपनी सीमाओं को लेकर आपस में लड़ते रहने वाले दोनों पड़ोसी संपन्न हिंदू राज्यों ने देवगिरि की बरबादी पर राहत की साँस ली होगी। शायद वे नहीं जानते थे कि अगले सिर्फ छह सालों के भीतर उनकी भी वही दशा होने वाली थी! मौत ने घर देख लिया था।


     दूसरी अहम बात, लूट के माल से दिल्ली के सूफियों को भी आधा-आधा और एक-एक मन सोने की खैरात बांटी जा रही है। हम देख चुके हैं कि निजामुद्दीन औलिया उस समय दिल्ली में सबसे इज्जतदार सूफी शख्स थे। उन्हें अच्छी तरह से यह पता था कि सोने की यह खैरात आ कहाँ से रही है।


     लेकिन वे सूफी हिंदू राज्यों की इस लूट के हिस्से को खुशी से हासिल कर रहे थे और सुलतान को अगली फतहों की दुआएँ दे रहे थे कि इस्लामी फौजें इसी तरह कामयाबी हासिल करती रहें। सूफियों का यह सच भी आइने की तरह साफ है कि उनके पास किसी इंसानियत का कोई पैगाम नहीं था।


     वे उसी इस्लाम के पैरोकार थे, जिसे हाथों में तलवार थमाकर दिल्ली से चारों तरफ लूटमार के लिए खुला छोड़ दिया गया था। क्या किसी भी धर्म के भिक्षु, आचार्य, मुनि, महर्षि कभी ऐसा सोच भी सकते हैं-कब्जा, लूटमार, कत्ले-आम, खूनखराबा? ये किस ढंग के रूहानी लोग थे? इनकी रूह किसके लिए धड़क रही थी? ये रूह कैसी थी? विचित्र है!


      खिलजी के खूनी कारनामे इतने हैं कि सुलतान बनने के बाद बीता एक भी साल ऐसा नहीं है, जब किसी न किसी इलाके में लूटमार न हुई हो और हज़ारों की तादाद में कत्ल न हुए हों। द्वार समुद्र और माबर की इस लूट से जुड़ा ऐसा ही एक प्रसंग है।


     मलिक नायब की इस लुटेरी फौज के कुछ महत्वपूर्ण नाम फिरिश्ता की डायरी में मिले हैं। ये हैं-बहराम कबरा, कुतला निहंग, महमूद सरबत्ता और अबाजी मुगल। ये पाँच आदमी इस नाते खास थे कि हर दिन इनमें से एक सरदार लुटेरी फौज के आगे-आगे जाया करता था ताकि आगे के इलाकों की खबर जुटाई जा सके। सूचना संकलन!


      एक दिन अबाजी के दिमाग में आया कि क्यों न वह माबर के राय के पास ही चला जाए और तुर्कों की इस हमलावर सेना की जानकारी उन्हें दे दी जाए। उसने अपने किसी ज्यादा फायदे के लालच में ऐसा सोचा। वह एक दिन निकल गया। लेकिन बदकिस्मती से हिंदुओं की एक सेना से उसका मुकाबला हो गया। उसके साथ का कोई दुभाषिया इस टक्कर में मारा गया। अबाजी के साथ की टुकड़ी हार गई।


      तीसरे दिन वह मलिक नायब के पास लौटा। उस मुगल को बंदी बना लिया गया। अब उसके बंदी हालत में ही मलिक नायब ने द्वार समुद्र की ओर से माबर का रुख किया। जब इस बंदी मुगल और दोनों राज्यों की लूट का माल दिल्ली पहुँचा तो फरिश्ता बता रहा है-


     “अलाउद्दीन खिलजी ने अबाजी को मारने का हुक्म दिया। उस समय देहली में 10,000 से ज्यादा मुगल थे। वे लोग खुद को बहुत ताकतवर बनाने के लिए हर समय साजिश किया करते थे। सुलतान ने हर जगह के मुक्तों को हुक्म जारी किया कि एक दिन निश्चित समय पर इन मुगलों का कत्ल कर डालें।”


      दूर दक्षिण की इस दूसरी लूट का आखिरी अहम ब्यौरा लेने हम एक बार फिर दिल्ली में अमीर खुसरो के पास चलते हैं। हम पहले ही देख चुके हैं कि शेख निज़ामुद्दीन औलिया का यह खास चेला कितनी बारीकी से तारीखवार चीजों को दर्ज करता है। ऐसा हमारे किसी गाइड ने नहीं किया है।


     माबर पर हमले के लिए दिल्ली से फौजों की रवानगी की तारीख उसने 10 नवंबर 1310 लिखी है। 3 फरवरी 1311 को वे देवगिरि पहुँचते हैं। देवगिरि से ढेर सारी मदद और रसद लेकर चार दिन में ही ये फौजें द्वार समुद्र का रुख करती हैं। 25 फरवरी 1311 को द्वार समुद्र घेर लिया गया। 10 मार्च 1311 को इस पूरे इलाके को लूटने के बाद वे माबर की तरफ कूच करते हैं।


     पूरा मार्च और अप्रैल यहाँ चारों तरफ लूटमार और अफरातफरी के हैं। 24 अप्रैल 1311 को लूट में हासिल सारे हाथी और खजाने के संदूक दिल्ली रवाना किए जाते हैं। 18 अक्टूबर 1311 को दिल्ली में सुलतान के सामने दरबार के जश्न भरे माहौल में लूट के माल की नुमाइश होती है।


     पूरा एक साल तक खिलजी की फौजें दिल्ली से देवगिरि, देवगिरि से द्वार समुद्र, द्वार समुद्र से माबर और माबर से फिर दिल्ली कूच करती हैं। इस तरह आज के हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडू होकर फिर महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान और हरियाणा होकर दिल्ली लौटती हैं।


     आप कल्पना कीजिए। हज़ारों की संख्या में लुटेरे-हमलावर लगातार एक साल तक इतने बड़े इलाके से गुजरे होंगे। मकसद एक ही था- हर जगह लूटमार, मारकाट। अमीर खुसरो द्वार समुद्र और माबर की इस लूट से बहुत खुश नज़र आ रहा है। वह बड़ी-बड़ी उपमाएँ देते हुए लिखता है–


    “यदि हाथियों की पीठ पर वज़न न होता तो वे सुलतान के दरबार की रौनक देखकर भाग ही जाते। दक्षिण पर हमले में शामिल सरदार अपने मलिकों के साथ पेश हुए। बिस्मिल्लाह की आवाज इतनी ऊँची सुनाई दी कि लगा कि अल्लाह की मेहरबानी आसमान से उतरने ही वाली है। सबसे बाद में लूट का माल नुमाइश के लिए लाया गया। हाथी और जवाहरात पेश किए गए। अलाउद्दीन खिलजी ने अल्लाह का शुक्रिया अदा किया!”


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