कार्यप्रणाली

आर्य समाज दूसरे प्रचारवादी धर्मों के समान भाषण, शिक्षा, समाचार, पत्र आदि की सहायता से अपना मत-प्रचार करता है। दो प्रकार के शिक्षक है-



  • प्रथम वेतनभोगी और

  • द्वितीय, अवैतनिक।


अवैतनिक में स्थानीय वकील, अध्यापक, व्यापारी, डाक्टर आदि लोग होते हैं। जबकि वेतनभोगी सम्पूर्ण समय देने वाले शास्त्रज्ञ और विद्वान् प्रचारक होते हैं। पहला दल शिक्षा पर ज़ोर देता है; दूसरा दल उपदेश और संस्कार पर बल देता है। आर्य समाज का प्रत्येक संगठन कुछ हाईस्कूल, गुरुकुल, अनाथालय आदि की व्यवस्था करता है। यह मुख्यत: उत्तर भारतीय धार्मिक आन्दोलन है यद्यपि इसके कुछ केन्द्र दक्षिण भारत में भी हैं। बर्मा तथा पूर्वी अफ्रीका, मॉरीशस, फीजी आदि में भी इसकी शाखाएँ है जो वहाँ बसे हुए भारतीयों के बीच कार्य करती हैं। आर्य समाज का केन्द्र एवं धार्मिक राजधानी लाहौर में थी, यद्यपि अजमेर में स्वामी दयानन्द की निर्वाणस्थली एवं वैदिक-यन्त्रालय (प्रेस) होने से वह लाहौर का प्रतिद्वन्द्वी था। लाहौर के पाकिस्तान में चले जाने के पश्चात् आर्य समाज का मुख्य केन्द्र आजकल दिल्ली है।


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