जैन धर्म और सिंधु घाटी के लोग

जैन धर्म और सिंधु घाटी के लोग : कुछ लोग सिंधु घाटी की मूर्तियों में बैल की आकृतियों वाली मूर्ति को भगवान ऋषभनाथ जोड़कर इसलिए देखते हैं क्योंकि बैल ऋषभदेव का चिह्‍न है। यहां से प्राप्त ग्रेनाइट पत्थर की एक नग्न मूर्ति भी जैन धर्म से संबंधित मानी जाती है। मोहन जोदड़ो और हड़प्पा से प्राप्त मोहरों में जो मुद्रा अंकित है, वह मथुरा की ऋषभदेव की मूर्ति के समान है व मुद्रा के नीचे ऋषभदेव का सूचक बैल का चिह्न भी मिलता है।


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सिंधु घाटी से प्राप्त एक मुद्रा के चित्रण को चक्रवर्ती सम्राट भरत से जोड़कर देखा जाता है। इसमें दांई ओर नग्न कायोत्सर्ग मुद्रा में भगवान ऋषभदेव हैं जिनके शिरोभाग पर एक त्रिशूल है जो त्रि-रत्नत्रय जीवन का प्रतीक है। निकट ही शीश झुकाए उनके ज्येष्ठ पुत्र चक्रवर्ती भरत हैं जो उष्णीब धारण किए हुए राजसी ठाठ में हैं। भरत के पीछे एक बैल हैं जो ऋषभनाथ का चिन्ह है। अधोभाग में सात प्रधान अमात्य हैं। हालांकि हिन्दू मान्यता अनुसार इस मुद्रा में राजा दक्ष का सिर भगवान शंकर के सामने रखा है और उस सिर के पास वीरभद्र शीश झुकाए बैठे हैं। यह सती के यज्ञ में दाह होने के बाद का चित्रण है।


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