ईश्वर के वैदिक नाम विज्ञानस्वरूप हैं

ईश्वर के वैदिक नाम विज्ञानस्वरूप हैं


महर्षि दयानन्द सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास में ईश्वर के सौ वैदिक नामों की व्याख्या की है। यदि उन नामों की वैज्ञानिकता पर विचार किए जाएतो उसके सारे नाम विज्ञान की कसौटी पर खरे सिद्ध होंगे


प्रथम 'विराट्' शब्द को लें। इस शब्द को महर्षि ने अनेक प्रकार से जगत् को प्रकाशित करने वाला लिखा है। हम सभी जानते हैं कि आकाशस्थ लोक लोकान्तरों की संख्या अनगिनत है। उनकी गणना नहीं की जा सकती । सौरमंडल, आकाशगंगा, पुच्छल तारे, आकाशगंगाओं, की संख्या भी अनगिनत, उसमें असंख्य तारे- इन सब को परमात्मा प्रकाशित करता है। कोई पूछे, सूर्य स्वयं प्रकाशवान है-उसमें प्रकाश कहां से आता है ? तो इसका उत्तर होगा- उसमें प्रकाश का कारण ईश्वर है। क्या इस बात को कोई झुठला सकता है कि सूर्य में प्रकाश नहीं है ? यह वैज्ञानिक सत्य है। सूर्य, अजस्र ऊर्जा का स्रोत है। वह ऊर्जा अक्षुण्ण है। ऐसे समस्त लोगों में एक ही परमात्मा का प्रकाश है इसी से उसका नाम 'विराट् है जो 'वि' उपसर्ग पूर्वक 'राज' धातु से बनी है। राजु धातु दीप्ति अर्थात् प्रकाश अर्थ में प्रयुक्त होता है। संभवतः आने वाले समय में सारे यंत्र सौर ऊर्जा से संचालित हों। ऊर्जा क्या है? प्रकाश ही तो है। प्रकाश क्या है ? परमात्मा का ही तो तेज है।


___ 'अग्नि' भी परमात्मा का नाम है। स्वामी जी लिखते हैं-स्वप्रकाश होने से परमेश्वर का नाम 'अग्नि' है। 'अग्नि' नाम के पीछे विज्ञान ‘अग्नि' भी ऊर्जा है। इसका उच्चारण करते ही ऊष्मा आभास होने लगता है। एक लकड़ी को दूसरी लकड़ी से रगड़ने पर अग्नि पैदा हो जाती है। पत्थर को टकराने से अग्नि पैदा हो जाती है। समुद्र में बड़वानल क्या है ? अग्नि ही तो है। इन सब में प्रकाश है। इस प्रकाश का कारण अणु-अणु में व्याप्त परमात्मा ही है जिसकी प्रकाश के रूप में अनुभव कर सकते है। अतएव परमातमा का अग्नि नाम सर्वथा सार्थक सिद्ध होता है। 'अग्नि' आज का विज्ञान तो पूर्णतः अग्नि पर ही अवलंबित है। बिना विद्युत (अग्नि) के सारे विज्ञान के साधन पंगु सिद्ध हो जायेंगे अग्नि शब्द को स्वामी जी ने इणू गत्यर्थक धातु से निष्पन्न बताया है। इसका तात्पर्य है अग्नि गतिमय है। गति किस प्रकार ? जब तक हमारे शरीर में अग्नि है तब तक शरीर चलेगा। इसके समाप्त होते ही जीवनलीला समाप्त । जब तक सूर्य में अग्नि है तब तक वह प्रतिदिन उदय और अस्त होगा। उसके समाप्त होते ही प्रलय की स्थिति होगी। जब तक बिजली रहती है यंत्र चलते हैं। बिजली चली जाने से सारे यंत्र ठप्प हो जाते हैं। इस प्रखार अग्नि गति प्रदान करती है। यही गति चेतन के लिए जीवन है और सृष्टि के लिये संचालिका।


महर्षि दयानन्द सरस्वती जी लिखते हैं - परमात्मा का एक नाम 'विश्व' है। यह 'विश्' धातु से प्रवेश अर्थ में प्रयुक्त होता है। सारा भौतिक जगत् परमात्मा में प्रविष्ट हो रहा है। इस नाम के पीछे क्या विज्ञान है ? विज्ञान नहीं बहुत बड़ा विज्ञान छिपा है। यदि रात में आकाश में दृष्टि डाली जाए तो पता चलेगा कि दिखनेवाला समस्त पिंड मनुष्य की चिंतनशक्ति से परे हैं। उनकी कोई निश्चित सीमा नहीं है। इस असीमित आकाश में अनन्त लोक-लोकान्तर है। उनकी सही-सही गणना व ज्ञान प्राप्त करना असंभव है। ये सारे लोक एक नियम में बद्ध होकर गति कर रहे है। किसी भी स्थिति में उसमें निमय का उल्लंघन नहीं होता है। परमात्मा भी अनन्त है। सृष्टि भी अनन्त है। सारे भूमंडल परमात्मा में प्रविष्ट है। उसी में प्रविष्ट होकर गति कर रहे हैं। परमात्मा से कोई भी स्थान खाली नहीं है। वह सर्वव्यापक है। विश्व व्याप्य है। परमात्मा में सब प्रविष्ट हो रहे हैं। इसी प्रवेश के कारण उसका एक नाम 'विश्व' है। आज के वैज्ञानिक भी इस तथ्य को स्वीकार कर रहे हैं कि सृष्टि अनंत है। उसका पता पाना संभव नहीं है। 'विश्व' नाम परमात्मा की व्यापकता पर प्रकाश डालता हे 


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