ईश्वर
ईश्वर एक है, निराकार है सर्वव्यापी है, ब्रह्मा विष्णु शिव गणेश देव देवी महादेव सब उसी के नाम हैं, इन नामों से अलग अलग देवी देवता बना कर पूजने वालों को तत्व बोध नहीं हो सकता । जो लोग ईश्वर को साकार मानते हैं, उसका अवतार मानते हैं, उसकी मूर्तियां बना कर पूजते हैं, वे अनाडी हैं मूढमति हैं । निरन्तर योगाभ्यास से ही साधक अपनी आत्मा में उस सर्वन्तरामी ईश्वर का साक्षात्कार कर सकता है ।
(प्रश्न) जो ईश्वर अवतार न लेवे तो कंस रावणादि दुष्टों का नाश कैसे हो सके?
(उत्तर) प्रथम तो जो जन्मा है वह अवश्य मृत्यु को प्राप्त होता है। जो ईश्वर अवतार शरीर धारण किये विना जगत् की उत्पत्ति स्थिति, प्रलय करता है उस के सामने कंस और रावणादि एक कीड़ी के समान भी नहीं। वह सर्वव्यापक होने से कंस रावणादि के शरीर में भी परिपूर्ण हो रहा है। जब चाहै उसी समय मर्मच्छेदन कर नाश कर सकता है। भला इस अनन्त गुण, कर्म, स्वभावयुक्त, परमात्मा को एक क्षुद्र जीव के मारने के लिये जन्ममरणयुक्त कहने वाले को मूर्खपन से अन्य कुछ विशेष उपमा मिल सकती है ? और जो कोई कहे कि भक्तजनों के उद्धार करने के लिये जन्म लेता है तो भी सत्य नहीं। क्योंकि जो भक्तजन ईश्वर की आज्ञानुकूल चलते हैं उन के उद्धार करने का पूरा सामर्थ्य ईश्वर में है। क्या ईश्वर के पृथिवी, सूर्य, चन्द्रादि जगत् को बनाने, धारण और प्रलय करने रूप कर्मों से कंस रावणादि का वध और गोवर्धनादि पर्वतों का उठाना बड़े कर्म हैं ? जो कोई इस सृष्टि में परमेश्वर के कर्मों का विचार करे तो ‘न भूतो न भविष्यति’ ईश्वर के सदृश कोई न है, न होगा। और युक्ति से भी ईश्वर का जन्म सिद्ध नहीं होता। जैसे कोई अनन्त आकाश को कहै कि गर्भ में आया वा मूठी में धर लिया, ऐसा कहना कभी सच नहीं हो सकता। क्योंकि आकाश अनन्त और सब में व्यापक है। इस से न आकाश बाहर आता और न भीतर जाता, वैसे ही अनन्त सर्वव्यापक परमात्मा के होने से उस का आना जाना कभी सिद्ध नहीं हो सकता।
जाना वा आना वहां हो सकता है जहां न हो। क्या परमेश्वर गर्भ में व्यापक नहीं था जो कहीं से आया? और बाहर नहीं था जो भीतर से निकला? ऐसा ईश्वर के विषय में कहना और मानना विद्याहीनों के सिवाय कौन कह और मान सकेगा। इसलिये परमेश्वर का जाना आना, जन्म-मरण कभी सिद्ध नहीं हो सकता। इसलिये ‘ईसा’ आदि भी ईश्वर के अवतार नहीं ऐसा समझ लेना। क्योंकि वे राग, द्वेष, क्षुधा, तृषा, भय, शोक, दुःख, सुख, जन्म, मरण आदि गुणयुक्त होने से मनुष्य थे।
साभार- सत्यार्थप्रकाश