धर्म के ठेकेदारों से बचो-

धर्म के ठेकेदारों से बचो-


       "यदि धर्म का सम्यक् अर्थात् यथार्थ ज्ञान न हो तो, अर्थ काम और मोक्ष को कभी प्राप्त नहीं किया जा सकता है ! चूंकि , यतोऽभ्युदय निःश्रेयस सिद्धि स धर्मः अर्थात् धर्म वह है जो इस लोक और परलोक के सुखों को सिद्ध करे! अतः वैदिक सन्ध्या में यही प्रार्थना की जाती है कि-


हे ईश्वर दयानिधे ! भवत्कृपयाऽनेन जपोपासनादिकर्मणा धर्मार्थ काममोक्षाणां सद्यः सिद्धिर्भवेन्नः ।


       अर्थात् हे ईश्वर दयानिधे ! आपकी कृपा से हमारे यह जप और उपासना आदि कर्म धर्म अर्थ काम और मोक्ष की सिद्धि को शीघ्र ही प्राप्त होवें ! चूंकि ,इन चारों को ही मानव जीवन के पुरुषार्थ चतुष्टय कहा जाता है! इनकी ही प्राप्ति से मानव जीवन सफल और सार्थक होता है! वेदमाता भी कहती हैं कि  आयुर्यज्ञेन कल्पन्ताम् अर्थात् हमारा यह जीवन यज्ञानुष्ठानों से धर्मादि कर्मों के लिए समर्थ तथा सार्थक हो! अतः हम धर्म की पराकाष्ठा को समझें और धर्म का सम्यक् ज्ञान प्राप्त करें ! आज जितने भी धर्म के ठेकेदार बैठें हैं ,वह सभी अपनी-अपनी मान्यताओं को लिए बैठें हैं और लोगों को धर्म के नाम पर ठग रहे हैं ! यह उनके मत-पन्थ हैं ,कोई धर्म नहीं है ! चूंकि ,धर्म तो मनुष्य बनने की उत्कृष्ट प्रेरणा है न कि हिन्दू मुस्लिम ईशाई सिक्ख बौद्ध आदि!


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