चुनाव का घोषणा- पत्र

सभी प्रजातान्त्रिक देशों में समय समय पर चुनाव होते रहते हैं।


यीशु ने अपनी सेवकाई का आरम्भ भी अपने चुनाव का घोषणा-पत्र पढते हुए किया था जिसे बर्षों पहले यशायाह ने मसौदा किया था।


उन्होंने पढना आरम्भ किया, “परम प्रभु का आत्मा मेरे ऊपर है, क्योंकि...”


इसके बाद यीशु अपनी नीतियों को एक एक कर बताने लगे:



  • अर्थ-व्यवस्था: “उसने कंगालों को सुसमाचार सुनाने के लिये मेरा अभिषेक किया है”।

  • कारागार सेवा: “मुझे इसलिये भेजा है, कि बँधुओं को छुटकारे का प्रचार करूँ”।

  • स्वास्थ्य सेवा: “अन्धों को दृष्टि पाने का सुसमाचार प्रचार करूं”।

  • अन्य सामाजिक सेवायें: “कुचले हुओं को छुड़ाऊं”।


यह एक ऐसे चुनाव का घोषणा-पत्र था जिसमें बहुत भिन्नतायें थीं।



  1. पिता के द्वारा उनका चुनाव बहुत पहले ही, वास्तव में पृथ्वी की नींव से पहले, हो चुका था, लेकिन सर्व साधारण को इसकी जानकारी हाल ही में दी गयी थी। आधिकारिक पत्र में कहा गया था, “तुम मेरे प्रिय पुत्र हो, जिसे मैं प्रेम करता हूँ, तुझसे मैं अति प्रसन्न हूँ”। अभी हाल ही में मरूभूमि में चालिस दिनों तक उनकी परीक्षा ली गयी थी। उन्होंने अपने आप को पूर्ण रूप से सक्षम और शासन करने योग्य प्रमाणित किया था। अत्यन्त विकट अवस्था में भी उन्होंने पूर्ण आत्म- नियन्त्रण का प्रदर्शन किया और अपने कर्तव्य को – पिता की इच्छा- अपनी उन्नति या अपने जीवन से भी महत्वपूर्ण समझा।

  2. उन्होंने अपनी सभी प्रतिग्यायें पूरी कीं। उन्होंने वास्तव में कङ्गालों को सुसमाचार सुनाया, और बँधुओं को छुटकारा दिया और अन्धों को दृष्टी दी, और ऐसे ही बहुत से अन्य काम किये। उनके आस पास विरोधी दल के लोग भी थे, जो हमेशा यीशु के किये गये कामों में त्रुटि ढूढते रहते थे। लेकिन कभी भी कोई त्रुटि उन्हें मिला नहीं। द्वेष रहित अवलोकन कर्ता इस बात से सहमत थे कि यीशु के द्वारा किये गये सभी काम अच्छे थे।

  3. घोषणा-पत्र में उल्लेखित शब्दों निहीत अर्थ से भी बहुत अधिक काम यीशु ने किये, क्योंकि उन्होंने समस्याओं के जड अर्थात् आत्मिक कङ्गाली, कैद, अन्धापन और कुचलापन से लोगों को छुडाया। उन्होंने हजारों को भोजन देकर क्षणिक रूप से आर्थिक अभाव से लोगोंको राहत दी, लेकिन उनके प्रेम, बुद्धिमता और शक्ति से ओतप्रोत शब्दों ने लोगों के मन की गहिराई में अवस्थित आत्मिक कङ्गाली से छुटकारा दिलाये जो इन समस्याओं का जड था। अन्धों को उनकी दृष्टी मिलने पर आनन्दित होते थे, परन्तु आत्मिक अन्धेपन से चङ्गाई ने इससे भी बडा और स्थायी लाभ प्राप्त हुआ। हम ऐसा नहीं पाते कि किसी भी व्यक्ति को यीशु ने कारागार से छुडाया हो पर उन्हों ने ईंट पत्थर से बने कारागारों से भी बहुत ही बुरे कैद से लोगों को छुडाया। पौलुस के शब्दों में यीशु ने, “उनमें क्रियाशील शक्ति के अनुसार हमारे माँगने या कल्पना करने से भी अधिक काम किया”। विश्व के राजनितिग्यों के विपरीत, यीशु ने अपनी प्रतिग्या की गयी बातों से बहुत ही अधिक काम किया।


ये सभी बातें अब इतिहास बन चुकी हैं। यीशु ने ये सारे काम और इनसे भी बहुत अधिक किया। लेकिन यह सब भविष्यवाणी भी है। परमेश्वर ने और भी पुत्रों (और पुत्रियों) का चुनाव किया है, और उनकी योजना है कि वे सब पहिलौठे पुत्र के समान् बनें। (आप इनके विषय में रोमियों ८ में पढ सकते हैं।) इनके चुनाव घोषणा- पत्र भी अपने बडे भाई के घोषणा-पत्र के सदृश ही होगा, “कंगालों को सुसमाचार सुनाने के लिये मेरा अभिषेक किया है, और मुझे इसलिये भेजा है, कि बँधुओं को छुटकारे का और अन्धों को दृष्टि पाने का सुसमाचार प्रचार करूं और कुचले हुओं को छुड़ाऊं”। बडे भाई के समान, लेकिन साधारण राजनीतिग्यों के विपरीत ये अपनी प्रतिग्यायें या वास्तव में अपने पिता की प्रतिग्यायें पूरी करेंगे ।


किसी विशेष देश की बात नहीं, परन्तु सारा सृष्टी इनके प्रकट होने की राह देख रहा है, ताकि सभी को वह महिमीत छुटकारा मिल सके।


इस लिये राजनीति की बातें भूल जायें। अपने मत उसी जगह उपयोग करें जहाँ इसका महत्व है और अपने सम्पूर्ण मन और हृदय से अपने प्रधान-मन्त्री और सांसद के बदले यीशु और उनके असंख्य भाइयों और बहनों के लिये मतदान करें, जो यीशु के साथ ही उनके सिंहासन के सहभागी बनेंगे और उनके साथ साथ राज्य करेंगे।


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

वर-वधू को आशीर्वाद (गीत)