'ब्रह्मचर्य
आओ आज हम सब मिलकर चौथे 'यम' 'ब्रह्मचर्य' के विषय में चर्चा करते हैं।
ब्रह्म नाम ईश्वर का है। ब्रह्म नाम वेद का है। ब्रह्म नाम ज्ञान का है। और ब्रह्म नाम वीर्य का है। ईश्वर प्राप्ति, वेद अध्ययन, ज्ञान प्राप्ति और वीर्य रक्षण करना ब्रह्मचर्य कहलाता है।
ब्रह्म - ईश्वर -- चर्य - चिन्तन = ईश्वर चिन्तन
ब्रह्म - वेद -- चर्य - अध्ययन =वेद अध्ययन
ब्रह्म - ज्ञान -- चर्य - उपार्जन = ज्ञानोपार्जन
ब्रह्म - वीर्य -- चर्य - रक्षण = वीर्य रक्षण
जो मनुष्य ईश्वर प्राप्ति, विद्या प्राप्ति, ज्ञान प्राप्ति, और वीर्य की रक्षा करता है वह ब्रह्मचारी कहलाता है।
ब्रह्मचर्य के लाभ
"ब्रह्मचर्यप्रतिष्ठायां वीर्यलाभ :"
(योग २/३८)
अर्थात् - मन, वचन और शरीर से ब्रह्मचर्य का पालन करने से बौद्धिक और शारीरिक बल की प्राप्ति होती है।
"ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमपाघ्नत"( अथर्व० ११/५/१९)
अर्थात् - ब्रह्मचर्य के तपसे देव मृत्यु को जीत लेते हैं।
महाभारत में भीष्म जी युधिष्ठिर को ब्रह्मचर्य की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि -
"आजन्ममरणाद्यस्तु ब्रह्मचारी भवेदिह।
न तस्य किंचिदप्राप्यमिति विद्धि नराधिप।।" ( महभारत )
अर्थात् - जो व्यक्ति जन्म से मृत्यु पर्यंत ब्रह्मचारी रहता है उसको कोई भी शुभ गुण अप्राप्य नहीं रहता।
ब्रह्मचर्य का प्रथम भाग ईश्वर उपासना है। जो व्यक्ति ईश्वर की उपासना करता है उसकी सभी कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। वह असीम आनंद को प्राप्त करता है। अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर अपने कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर लेता है। ईश्वर उपासक को विद्या की प्राप्ति और अविद्या का नाश होता है। विद्या प्राप्ति ईश्वर के सानिध्य से ही संभव है। जब मनुष्य विद्या प्राप्त कर लेता है, ज्ञान प्राप्त कर लेता है, तो है सत्य असत्य का निर्णय कर, सत्य मार्ग पर बढ़ जाता है।
ब्रह्मचर्य का दूसरा भाग वेद अध्ययन है। वेदों के अध्ययन से व्यक्ति संसार के तीनों प्रमुख पदार्थों ईश्वर, जीव, और प्रकृति का यथार्थ जान ज्ञान प्राप्त कर लेता है। वेद का अध्ययन करने से कर्म और उपासना अर्थात योगाभ्यास के स्वरूप का ज्ञान होता है। वेद के अध्ययन से गौण और मुख्य पदार्थों का ज्ञान होता है। वेद के अध्ययन से मनुष्य को साध्य, साधक और साधन का ठीक-ठीक परिज्ञान हो जाता है। वेद के अध्ययन से मनुष्य इस जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है और जन्म मरण के बंधनों से छूट जाता है।
"तमेव विदित्वाति मृत्युमेति नान्य: पन्था विद्यतेSयनाय।"( यजु० ३१/१८)
अर्थात् - उस ईश्वर को जानकर ही मनुष्य मृत्यु आदि सभी दुखों से छूटता है इसके अतिरिक्त और कोई मुक्ति का मार्ग नहीं है।
ब्रह्मचर्य का तीसरा भाग वीर्य की रक्षा करना है।
आयुर्वेद के अनुसार शरीर की ७ धातुओं में से वीर्य एक धातु है। वीर्य की रक्षा करना ब्रह्मचर्य कहलाता है। वीर्य की रक्षा करने से मनुष्य को शारीरिक और बौद्धिक बल की प्राप्ति होती है। वेद कहता है कि -
"ब्रह्मचर्येण तपसा राजा राष्ट्रम् विराक्षति"
अर्थात् - ब्रह्मचर्य के तप से ही राजा राष्ट्र की रक्षा करता है।
वीर्य के रक्षण से शारीरिक शक्ति प्राप्त होती है। और शारीरिक शक्ति से ही लौकिक कार्यों के करने में सफलता मिलती है। शारीरिक बल के कारण मनुष्य सदा स्वस्थ रहता है। और बल का अभाव होने पर रोगी हो जाता है। मनुष्य जीवन के चार प्रयोजन धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष स्वस्थ शरीर के द्वारा ही संभव हैं।
ब्रह्मचर्य के साधन
ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए जिन जिन साधनों की आवश्यकता होती है उनका ज्ञान होना अति आवश्यक है। आइए कुछ साधनों पर विचार करते हैं।
१ - भोजन - भोजन का प्रभाव शरीर और मन इन दोनों पर पड़ता है। यदि मनुष्य सात्विक भोजन खाता है तो ब्रह्मचर्य की रक्षा करने में सरलता होती है। राजसिक और तामसिक भोजन ब्रह्मचर्य पालन करने में बाधा उत्पन्न करते हैं।
२ - व्यायाम - ब्रह्मचर्य की रक्षा और वृद्धि शारीरिक व्यायाम से होती है। शरीर में जो वीर्य उत्पन्न होता है, यह व्यायाम करने से शरीर का अंग बन जाता है। बिना व्यायाम के ब्रह्मचर्य की रक्षा करना कठिन है।
३ - उत्तम विचार - मनुष्य के जीवन निर्माण में उत्तम विचार बहुत बड़ा साधन है। यदि मनुष्य अपने विचारों को शुद्ध बना लेता है तो ब्रह्मचर्य के पालन करने में अत्यंत सरलता हो जाती है। अशुद्ध विचारों से ब्रह्मचर्य का नाश होता है।
४ - ईश्वर भक्ति - ईश्वर भक्ति का अभिप्राय है ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना, और उपासना। जब मनुष्य ईश्वर की भक्ति करता है तो इंद्रियों के विषय भोगों में रुचि नहीं रहती। विषय भोगों की रुचि ब्रह्मचर्य पालन में अत्यंत बाधक है। ईश्वर की उपासना द्वारा नित्यानंद को मनुष्य प्राप्त करता है बिना ईश्वर की भक्ति के इंद्रियों को पूर्णरूपेण वश में करना संभव नहीं।
५ - अध्ययन - उत्तम ग्रंथों के अध्ययन से ब्रह्मचर्य के पालन में सहायता मिलती है। जो ऋषियों के लिखे ग्रंथ हैं, और जिनमें ब्रह्मचर्य का वर्णन है उनके अध्ययन करने से व्यक्ति के मन में ब्रह्मचर्य के प्रति श्रद्धा उत्पन्न होती है। और उसके विचार ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले महापुरुष हो जैसे बन जाते हैं।
ब्रह्मचर्य सभी आश्रमों में उपयोगी है। अतः हम सभी को यथाशक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। यही आनन्द का मार्ग है। यही ईश्वर प्राप्ति का मार्ग है। यही हम सबके कल्याण का मार्ग है।
ओ३म्
आर्य कृष्ण 'निवाडी'
अध्यक्ष
राष्ट्रीय आर्य निर्मात्री सभा
जनपद गाजियाबाद