भारत में गुरुकुल परम्परा
गर्भाष्टमेऽब्देकुर्वीत ब्राह्मणस्योपनयनम्।
गर्भादेकादशे राज्ञो गर्भात्तु द्वादशे विशः॥
'गर्भ के आठवें वर्ष ब्राह्मण, ग्यारहवें वर्ष क्षत्रिय और बारहवें वर्ष वैश्य यज्ञोपवीत धारण करे।' यज्ञोपवीत संस्कार के बाद ही गायत्री जप तथा वेदाध्ययन का अधिकार प्राप्त होता था और इसके साथ ही योग्य गुरु के अधिकार में गुरुकुल में जो कि घर से कहीं सुदूर क्षेत्र में होता था, रहकर 25 से 30 वर्ष वेद तथा वेदांग शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, छन्द और ज्योतिष के साथ-साथ अपने वर्णानुसार शिक्षा प्राप्त करते थे। गुरु के आदेशों का पूरी तरह पालन करते हुए श्रद्धा से नतमस्तक रहते थे। जैसे श्रीमद्भागवत में कहा है