भारत में गुरुकुल परम्परा

ब्रह्मचारी गुरुकुले वसन्दान्तो गुरोहितम्।


आचरन्दासवन्नीचो गुरोर्सदृढ़ सौहृदः॥


ऐसे अनुशासित शिष्य को गुरु महाव्याहृतियों के साथ वेदाध्ययन कराता हुआ सदाचार का उपदेश करता था। गुरु दैनिक कृत्संध्या, यज्ञ, श्रमदान, सेवा, परोपकार तथा ईश्वर-चिन्तन के लिए भी अधिक जोर देते थे। गायत्री जप तो सभी विद्यार्थियों के लिए अति आवश्यक था। गुरुकुलवासी छात्र पलाश आदि का दण्ड धारण करता था और भिक्षा मागकर पहले गुरुदेव को सारी भिक्षा सौंपकर फिर गुरु से प्रसाद ग्रहण करके गुरुकुल की परम्परा का निर्वाह करता थाश्रीमद्भागवत के अनुसार.


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