Arya samaj

प्रचार-प्रसार

आर्य समाज महासम्मेलन, मथुरा


स्वामी जी ने अपने उपदेशों का प्रचार आगरा से प्रारम्भ किया तथा झूठे धर्मों का खण्डन करने के लिए ‘पाखण्ड खण्डनी पताका’ लहराई। इन्होंने अपने उपदेशों में मूर्तिपूजा, बहुदेववाद, अवतारवाद, पशुबलि, श्राद्ध, जंत्र, तंत्र-मंत्र, झूठे कर्मकाण्ड आदि की आलोचना की। स्वामी दयानंद जी ने वेदों को ईश्वरीय ज्ञान मानते हुए ‘पुनः वेदों की ओर चलो का नारा दिया।’ सामाजिक सुधार के क्षेत्र में इन्होंने छुआछूत एवं जन्म के आधार पर जाति प्रथा की आलोचना की। वे शूद्रों एवं स्त्रियों के वेदों की शिक्षा ग्रहण करने के अधिकारों के हिमायती थे। स्वामी जी के विचारों का संकलन इनकी कृति ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में मिलता है, जिसकी रचना स्वामी जी ने हिन्दी में की थी। राजनीति के क्षेत्र में स्वामी जी का मानना था कि बुरे से बुरा देशी राज्य अच्छे से अच्छे विदेशी राज्य से बेहतर होता है। वे स्वदेशी एवं देशभक्ति के प्रबल समर्थक थे। वैलेन्टाइन शिरोल ने सच ही स्वामी जी के आर्य समाज को ‘भारतीय अशांति का जन्मदाता’ कहा है। स्वामी जी ने गोधन की रक्षा के लिए ‘गोरक्षणी सभा’ की स्थापना की तथा ‘गौकरुणानिधि’ नामक पुस्तक की रचना की। आर्य समाज के महत्त्वपूर्ण समर्थक एवं उत्कृष्ण कार्यकर्ता थे - महात्मा हंसराज, पण्डित गुरुदत्त, लाला लाजपत रायस्वामी श्रद्धानंद आदि। इस संस्था का प्रसार महाराष्ट्र के अलावा उत्तर प्रदेशपंजाबराजस्थान एवं बिहार में भी हुआ। आर्य समाज का प्रचार-प्रसार पंजाब में अधिक सफल रहा।



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