आर्यन इन्वेजन थ्योरी

आर्यन इन्वेजन थ्योरी : भारत की सरकारी किताबों में आर्यों के आगमन को 'आर्यन इन्वेजन थ्योरी' कहा जाता है। इन किताबों में आर्यों को घुमंतू या कबीलाई बताया जाता है। यह ऐसे खानाबदोश लोग थे जिनके पास वेद थे, रथ थे, खुद की भाषा थी और उस भाषा की लिपि भी थी। मतलब यह कि वे पढ़े-लिखे, सभ्य और सुसंस्कृत खानाबदोश लोग थे। यह दुनिया का सबसे अनोखा उदाहरण है कि खानोबदोश लोग नगर सभ्यता से ज्यादा सभ्य थे।


यह थ्योरी मैक्स मूलर ने जानबूझकर गढ़ी थी या कि उसकी जानकारी अधूरी थी यह कहना मुश्किल है। मैक्स मूलर ने ही भारत में आर्यन इन्वेजन थ्योरी को लागू करने का काम किया था, लेकिन इस थ्योरी को सबसे बड़ी चुनौती 1921 में मिली। अचानक से सिंधु नदी के किनारे एक सभ्यता के निशान मिल गए। कोई एक जगह होती, तो और बात थी। यहां कई सारी जगहों पर सभ्यता के निशान मिलने लगे। इसे सिंधु घाटी सभ्यता कहा जाने लगा।


ऐसे में मैक्स मूलर की 'आर्यन इन्वेजन थ्योरी' समक्ष सवाल यह खड़ा हो गया कि यदि इस सिंधु सभ्यता को आर्य सभ्यता मान लिया जाए तो फिर थ्योरी का क्या होगा? ऐसे में फिर इतिहाकारों ने धीरे धीरे यह प्रचारित करना शुरु किया कि सिंधु लोग द्रविड़ थे और वैदिक लोग आर्य थे। सिंधु सभ्यता आर्यों के आगमन के पहले की है और आर्यों ने आकर इस नष्ट कर दिया।


संभवत: विदेशी और उनके भारतीय अनुसरणकर्ताओं के लिए यह समझना मुश्किल रहा होगा कि सिंधु घाटी की सभ्यता तो विश्वस्तरीय शहरी सभ्यता थी इससे पूर्व तो पश्‍चिमी सभ्यता के पास ऐसे नगर नहीं थे। इस सभ्यता के पास टाउन-प्लानिंग का ज्ञान कहां से आया और उन्होंने स्वीमिंग पूल बनाने की तकनीक कैसे सीखी? वह भी ऐसे समय जबकि ग्रीस, रोम और एथेंस का नामोनिशान भी नहीं था।.. संभवत: यही सोचकर यह प्रचारित किया गया होगा कि यह वैदिक सभ्यता के नगर नहीं है या तो द्रविड़ सभ्यता के नगर है। सिंधु या कहें कि द्रविड़ सभ्यता और वैदिक सभ्यता दोनों अलग अलग सभ्यता है। सिंधु लोग द्रविड़ थे और वैदिक लोग आर्य। आर्य तो बाहर से ही आए थे और उनका काल सिंधु सभ्यता के बाद का काल है। इस थ्‍योरी को भी भारतीयों ने 'आर्यन इन्वेजन थ्योरी' की तरह मान लिया।


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