मकरसंक्रान्ति

(एकात्मा बढ़ाने का उत्सव है)


हिन्दू समाज के विविध उत्सवों में कुछ ऐसे उत्सव हैंजिनकी न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि ऐतिहासिक एवं सामाजिक दृष्टि से भी विशेष उपयोगिता है। मकर संक्रान्ति भी ऐसा ही उत्सव है। अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का उत्सव-यह उत्सव सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के अवसर पर मनाया जाता है। यह संक्रमण पिछले शताधिक वर्षों से हर बार 14 जनवरी को ही होता हैइसकी वजह यही है कि सौर मास की प्रथम तिथि एवं 14 जनवरी एक दिन ही पड़ती है


इसके साथ ही सर्य दक्षिणायन से उत्तर दिशा की ओर होने लगता है। फलत: दिन के बड़े होने और रात के छोटे होने का क्रम शुरु हो जाता है। धरती पर अंधकार कम होने लगता है और प्रकाश बढने लगता है। इसका प्रभाव यह होता है कि सारे वातावरण चराचर जगत् में सूर्य से अधिक मात्रा में ऊर्जा मिलने के कारण एक आशा, उत्साह, उमंग और जीवन का संचार होने लगता है। एक नवीन जीवन शक्ति का उदय प्रकृति में होने लगता है। अत: यह दिन समाज को अज्ञानरूपी अंधकार से प्रकाश रूपी जान की ओर निराशा से आशा की ओर. और अवगणों का नाश कर सदगणों की ओर जाने की प्रेरणा देता है। इसी दिन समाज को सारे भेदभाव भुलाकर एकात्मता का साक्षात्कार कराने का उदात्त संस्कार दिया जाता है। एकात्मता का संदेश देता है। इस पर्व समाज म एकात्मा एवं दानशीलता बढ़ाने के लिए हमारे पूर्वजों ने इस दिन दान-पुण्य का महात्मय बताया है। इस दिन तिल एवं गुड़ का दान किया जाता है।


इस दिन का प्रतीकात्मक अर्थ अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैतिल में तेल निहित होता है। तेल स्नेहक के रूप में काम आता है। अतः तिल दान का निहितार्थ है स्नेह का दान। ऐसा दान समाज के विभिन्न वर्गों में आपसी टकाराहट खत्म करने और परस्पर स्नेह भाव की अभिवृद्धि की दृष्टि से उचित माना जाता है। इसी तरह गुड़ मधुरता का प्रतीक है। इसके दान का तात्पर्य है जीवन में मधुरता बढ़े। जिस तरह तिल गुड़ से बंधक लड्डू बन जाते हैं, उसी प्रकार समाज के सभी लोग आपसी मधुर व्यवहार से परस्पर एकात्मता महसूस करें। यह भाव जगाने का सदश मकर सक्रान्ति उत्सव दता ह। दान का सामाजिक दृष्टि से भी विशेष महत्त्व हैइससे 1 समाज में धन एवं विविध सामग्रियों के समान वितरण में विशेष मदद मिलती हैलोगों में उदारता आती है वंचित एवं साधनहीन वर्ग को सहारा मिलता है। इससे सामर्थ्यवान (सम्पन्न) एवं असमर्थ वर्ग (वंचित) में आपसी सद्भावना बढ़ती है। इस दिन खिचड़ी का दान होता है तथा उसे बनाकर खाया भी जाता हैखिचड़ी भी समरसता का प्रतीक है। यह स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयोगी और स्वादिष्ट होती है। इस प्रकार खिचड़ी के सामूहिक रूप से सहभोज में सरलता की अभिवृद्धि की कामना भी छिपी है ।


मकर संक्रान्ति के अवसर पर तिल, गुड़, खिचड़ी आदि का खाने-पीने में उपयोग, स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभदायक है। आयुर्वेद के अनसार तिल गड की चीजें शरीर के लिए पुष्टिकारक हैं। इस दिन स्वजनों के साथ, समाज बंधुओं के साथ इनका सेवन अत्यंत उपयोगी हैमहाराष्ट्र में 'तिल गडध्या गोड बोला' कहने की प्रथा इसकी भावना का द्योतक है। मकर संक्रान्ति पर प्रायः सर्वत्र पतंगबाजी के आयोजन होते हैंयह एक प्राचीन क्रीडा है। इससे निरंतर ऊँचाइयों की ओर बढ़ने की प्रेरणा मिलती हैतथा इसी बहाने धप स्नान एवं सर्यदर्शन भी हो जाता है। इन बातों का स्वास्थ्य की दृष्टि से विशेष महत्त्व है। देशभर में मनता है यह पर्व मकर संक्रान्ति देशभर में मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे इसी नाम से, जबकि दक्षिण भारत में इसे पोंगल के नाम स लाग उत्साहपूर्वक मनात हैपजाब में मकर संक्रान्ति की पूर्व रात्रि को लोहड़ी पर्व मनाया जाता है। गुरु गोविन्द सिंह के 40 शिष्यों ने मकर संक्रान्ति के पवित्र दिवस पर मुक्तसर में दशम गुरु को बचाने के लिए अपना बलिदान दिया था। उन शिष्यों की याद में हर साल मुक्तसर में एक मेला आता है। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल गंगासागर में इस दिन लाखों लोग स्नान करते हैं। पूरे देश के श्रद्धालु मकर संक्रान्ति के दिन गंगा-सागर पहुंचते हैंसंघ के छह उत्सवों में से एक राष्ट्रीय स्वयं सेवक ने राष्ट्र जीवन को सामर्थ्यशाली बनाने वाले पर्वो को उत्सवों के रूप में मनाने की परम्परा शुरु की है। मकर संक्रान्ति भी वर्ष में मनाए जाने वाले छह उत्सवों में से एक है। उत्सव के दिन संघ स्थान पर ध्वजा के बाद उपस्थित स्वयंसेवकों को तिल की बनीवस्तुएं, रेवड़ी, गजक आदि वितरिक की जाती हैं। स्वयंसेवक अपने घरों से ये वस्तुएं लाते हैं। सेवा बस्तियों में सामूहिक-खिचड़ी आयोजन जैसे अन्याय कार्य भी इस दिन रखे जाते हैं। 


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