4. ऐसे धर्म को धिक्कार है, जो हमें सत्यता की ओर जाने से रोके 1

आज धरती पर उपलब्ध सभी सुख सुविधाएं और उसके उपकरण स्वयं मानव ने पैदा किये हैं। किसी देवी देवता का उसमें इंच मात्र का योगदान नहीं है किंत पाखण्डी-मिथ्यावादी अपने स्वार्थ हित में उसका विभिन्न रूपों में गुणगान करते चले आ रहे हैं। कालान्तर में धीरे धीरे इस देवत्व भाव को समान भाव से पशु पक्षियों पर भी आरोपित कर दिया और अंत में यह देवता पत्थरों पर भी उकेरे जाने लगे। पराकाश्ठा की स्थिति तो यहां तक पहुंच गई कि ढेले पर कलावा बांधकर उसे सीधे-सीधे गणेश भगवान बना दिया गया। इस देश में भिखारी से लेकर पुजारी तक मांगकर खाने वालों की फौज खडी होती चली गयी। ऋषि ने 'एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति' का जो उपदेश दिया उसके विपरीत बहुदेवतावाद का अंतहीन सिलसिला खडा हो गया, जो आज भी समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा है। पत्थरों, धातुओं और लकडियों के टकड़ों पर तमाम तरह के देवी-देवताओं की विचित्र-विचित्र शक्लें उतारकर देवालयों, मंदिरों और घरों में खडी कर दी। यह देवी-देवता आज तक किसी को कुछ नहीं दे सके, बल्कि स्वयं इस कमाऊ समाज पर भार बन जाते हैं। हमारे ही पैदा किये हुए देवता, जो हमारी ही दी हुई व्यवस्था पर जीवित हैं, हमें उन्हीं के आगे मंगिता बनाकर बिटा दिया। वैसे सृष्टि नियम के विरूद्ध बातें सभी मतों में हैं, जैसे मुस्लिम भाई कहते हैं कि हमारे पैगम्बर मोहम्मद सहाब ने एक ही उंगली से चांद के दो टुकडे कर दिये। इसी प्रकार हमारे पुराणों में सबसे अधिक चमत्कारिक बाते हैं, जैसे हनुमान ने अपने बचपन में ही सूर्य को गाल में रख लिया, कुंती कर्ण कान से उत्पन्न हुआ, योगेष्वर श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत अपनी उंगली पर उठा लिया, श्रीकृष्ण द्रोपदी का चीर बढ़ा दिया आदि। भूत-प्रेत, गण्डा, डोरी, श्राद्ध-तर्पण, फलित ज्योतिश, गृहों का नाराज होना या खुश होना तथा मूर्तिपूजा व अवतारवाद का मानना अंधविश्वास व पाखण्ड है। क्योंकि यह सब बातें प्रकृति नियम के विरूद्ध हैं। इसलिए इनको न मानकर वैदिक धर्म को मानना ही हर व्यक्ति के लिए श्रेयस्कर व लाभदायक होगा। वैदिक धर्म में ईश्वर के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन करने के लिए संध्या करना (जिसे ब्रह्मयज्ञ कहते हैं), दूषित वातावरण को शुद्ध करने के लिए हवन करना (जिसे देवयज्ञ कहते हैं)। षरीर को स्वस्थ्य रखने के लिए यम-नियमों से समाधि तक पहुंचने के लिए अश्टांग योग करना, दूसरों की भलाई के लिए परोपकार करना, वेदों सहित सभी आर्श ग्रन्थों को पढ़ना और उनके अनुसार जीवन बनाना आदि मुख्य सिद्धांत वैदिक धर्म के हैं। इसलिए हम अपने जीवन को पवित्र स्वस्थ्य रखना चाहते हैं तो हमें अन्य : मतों व पन्थों को छोड़कर वैदिक धर्म अपनाना चाहिए. जिससे हम अपने परिवार, समाज, राष्ट्र व केवल मानव मात्र ही नहीं बल्कि प्राणी मात्र के प्रति अपने कर्तव्य का पालन करते हुए अपने जीवन को सफलता की ऊंचाईयों को छूते हुए मोक्ष के अधिकारी बने। इससे उत्तम अन्य कोई मार्ग नहीं है।


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