योगेश्वर श्रीकृष्ण भजन
योगेश्वर श्रीकृष्ण भजन
हम क्यों न करें बड़ाई , पावन थे कृष्ण कन्हाई।
निष्काम योगमय जीवन , सदा धर्म की विजय कराई।
दहीमाखन ही मनको भाया,स्वस्थ निरोगी तनको बनाया।
श्रद्धा से गाय चराई, हम क्यों न करें बड़ाई ।।
ब्रह्मचर्य से युक्तथा यौवन,धैर्य तपस्या पूर्ण था जीवन;
वेदों की करी पढ़ाई, हम क्यों न करें बड़ाई ।।
राजनीति में बड़े चतुर थे, पर उपकार सदा आतुर थे।
शुभकर्म से प्रीत लगाई, हम क्यों न करें बड़ाई ।।
शस्त्रशास्त्र के नित अभ्यासी,कर्म क्षत्रिय मन सन्यासी।
वर्चस्व की करी कमाई, हम क्यों न करें बड़ाई ।।
ज्ञानविज्ञान से युक्त था चिंतन,संध्या हवन से करते वंदन।
ईश्वर की संगति भायी, हम क्यों न करें बड़ाई ।।
'हित'कारी व सत्य बोलते, शब्द शब्द का मूल्य तोलते।
गीता थी समर में गाई, हम क्यों न करें बड़ाई ।
तर्ज: मेरी बदली जीवन धारा
निज संस्कृति को पहचाना