यहोवा का भूला बिसरा ज्ञान – ऊट पटांग विरोधी बातो से भरी बाइबिल





           लगता है बाइबिल का लेखक नशे में टुन्न था। या फिर मदहोशी में बाइबिल लिखी गयी। क्योंकि ईश्वर भूत भविष्य और वर्तमान सब जानता है।इसलिए वो अतीत की बातो का भी पूर्ण ज्ञान रखता है।


          पर क्या बाइबिल का यहोवा इसी प्रकार का ज्ञान रखता है ? यदि हाँ तो “यहोवा” सब कुछ जानने वाला “सर्वज्ञ” है  नहीं तो वो ईश्वर नहीं  मात्र एक मनुष्य ही कहलायेगा जिसे अपनी ही बनाई अतीत का पता तक नहीं ।


          एक नजर बाइबिल में वर्णित इतिहास की बातो पर ।


         1. पशु आदि सभी जीवो की उत्पत्ति के बाद मनुष्य को बनाया।


तब परमेश्वर ने कहा “पृथ्वी हर एक जाती के जीव जंतु उत्पन्न करे बहुत से भिन्न जाती के जानवर हो  यही सब हुआ ।


        तो, परमेश्वर ने हर जाती के जानवरो को बनाया। परमेश्वर ने जंगली जानवर, पालतू जानवर और सभी छोटे रेंगने वाले जीव  परमेश्वर ने देखा की यह अच्छा है। 


         तब, परमेश्वर ने कहा, “अब हम मनुष्य बनाये। हम मनुष्य को अपने जैसा बनाएंगे। मनुष्य हमारी तरह होगा  जीवो पर राज करेगा।”


          तो यहोवा द्वारा उत्पत्ति (gen) के पहले अध्याय में यह बताया जाना की पशु आदि सभी जीवो की उत्पत्ति के बाद मनुष्य को उत्पन्न किया सिद्ध होता है ।


         चलिए अब दूसरे अध्याय में देखते हैं क्या वहां भी यहोवा यही बात कहता है । कहीं ऐसा तो नहीं यहोवा भूल गया और कुछ का कुछ बोल दिया ।


          आइये देखिये –


          तब यहोवा परमेश्वर ने कहा, “में समझता हु कि मनुष्य का अकेला रहना ठीक नहीं है। में उसके (मनुष्य) के लिए एक सहायक बनाऊंगा जो उसके लिए उपयुक्त होगा।” 


          यहोवा ने पृथ्वी के हर एक जानवर और आकाश की हर एक पक्षी को भूमि की मिटटी से बनाया। यहोवा इन सभी जीवो को मनुष्य के सामने लाया और मनुष्य ने हर एक का नाम रखा।


         मनुष्य ने पालतू जानवरो, आकाश के सभी पक्षियों और जंगल के सभी जानवरो का नाम रखा। मनुष्य ने अनेक जानवर और पक्षी देखे लेकिन मनुष्य कोई ऐसा सहायक नहीं पा सका जो उसके योग्य हो। 


         अब देखिये कितनी विचित्र बात है – यहोवा ने पहले अध्याय में बोला की पशु आदि सभी जीवो की उत्पत्ति के बाद मनुष्य को बनाया –


 और दूसरे अध्याय में बता दिया की मनुष्य के लिए कोई सहायक होना चाहिए जिससे मनुष्य का अकेलापन दूर हो इसलिए मनुष्य उत्पन्न करने के बाद पशु आदि जीव उत्पन्न किये।


         अब इनमे से कौन सी बात सही माने ? कोई ईसाई भाई जरा शंका समाधान कर देवे।


         नोट : एक विशेष बात नोट कीजिये  केवल यही विरोध नहीं है।  दूसरा मसला है की जब यहोवा कुछ बनाता है उसके बाद ही उसे ज्ञात होता है की ये तो अच्छा है।
        मतलब की पहले से नहीं पता होता की जो यहोवा बना रहा है। वो अच्छा ही बनेगा  कोई श्योरटी नहीं पता नहीं कब बुरा बन जायेगा ।


         दूसरी बात जो ये पशु आदि जीव मनुष्य का अकेलापन दूर करने हेतु बनाये।उससे मनुष्य का अकेलापन दूर नहीं हुआ – और पशु आदि जीव उत्पन्न करने का कुछ प्रयोजन भी सफल नहीं हुआ क्योंकि मनुष्य का एकाकीपन इन पशुओ से दूर न हो सका क्या यही यहोवा का ज्ञान है जो ये भी न जान सका की एक मनुष्य नहीं उसे भी जोड़े से ही उत्पन्न करना था जैसे की सभी पशु पक्षियों को जोड़ियों से उत्पन्न किया।


         शायद इसलिए आगे की आयत में एक अति विज्ञानं की बात यहोवा ने कर दी – मनुष्य को गहरी नींद में सुलाने के बहाने उसकी पसली चोरी की और हव्वा को बना दिया।


         वाह क्या करामात है ! हैरत अंगेज – ये काम तो मनुष्य भी बुरा ही मानते हैं। किसी को सुला के या बेहोश कर उसकी किडनी आदि निकाल लेते बताओ क्या ये ईश्वर के काम होंगे ।


        ईश्वर होता तो जैसे मनुष्य और पशु आदि जीवो को मिटटी से बनाया  वैसे हव्वा को बनाने का विज्ञानं क्या यहोवा भूल गया था । या हव्वा मिटटी से नहीं बन सकती थी। और यदि मिटटी से ही बना दिया – तो जो शरीर है उसमे पानी अग्नि वायु आदि अवयव का करामात किसी और यहोवा ने किया ? यानी यहोवा का भी यहोवा ।


कुछ तो गड़बड़ जरूर रही होगी क्यों ईसाई मित्रो ?


क्या ये ईश्वर के कथन और गुण सिद्ध होते हैं ?


यहोवा तो शायद खुद कंफ्यूज है की पहले क्या बनाया ?


किसी ईसाई भाई को पता हो तो बताये – पहले किसकी उत्पत्ति हुई?


मनुष्य की अथवा पशु आदि जीवो की?





 


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