यज्ञ किसे कहते हैं


 यज्ञ किसे कहते हैं?


 संसार में जितने भी सतकर्म हैं जिन करके हम  जीवों को सुख पहुँचा सकते हैं सभी यज्ञ कहलाते हैं, हमारे ऋषि -मुनियों ने अनेक प्रकार के यज्ञों को पांच भागों में विभाजित किया है, ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, अतिथियज्ञ, और बलिवैश्वदेव यज्ञ, इन पांचों का मनुष्य जीवन में एक समान महत्व होना जरूरी है, जिस मनुष्य ने इनके समान महत्व को जान इन्हे जीवन में शिरोधार्य किया वे देवता कहलाने के पात्र है, देवता का अर्थ होता है जो अपने गुण, कर्म, स्वभाव द्वारा किसी को भी सुख पहुँचाये और सबसे विशेष बात ये कि किसी को भी बिना कष्ट पहुँचाये, 
ब्रह्मयज्ञ का जीवन में ग्रहण करना अतिआवश्यक है, क्योंकि प्रकृति ब्रह्ममुहूर्त में अपने पूर्ण सौंदर्य परहोकर  अमृतरूपी जलवायु लुटाती हैं, इसीलिए इस समय को अमृतबेला का नाम दिया गया है जो सौभाग्यशाली हैं वे नींद को त्यागकर जीवन का भरपूर आनंद प्राप्त करते हैं, इसी प्रकार हमें प्रत्येक यज्ञ को समान रुप से जीवन में ग्रहण करना चाहिए, एक कवि ने क्या सुन्दर लिखा है इस विषय में केवल दो लाइन लिखकर ही पोस्ट को समाप्त करुँगी,, 


बेला अमृत गया, आलसी सो रहा बन अभागा, 
साथी सारे जगे तू ना जागा, 


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