साधक को यम-नियम एवं अस्वाद व्रत पालना आवश्यक

साधक को यम-नियम एवं अस्वाद व्रत पालना आवश्यक



      व्रती को दो बातों की सावधानी आवश्यक है। यमनियम के पालन करने में व्रती कई इन्द्रियों से आचरण रूप से क्रिया नहीं भी करता-चाहे मन के भीतर विकार पैदा हो, परन्तु व्रत या भय के कारण विकार को रोक लेता है। आंख की क्रिया, कान की, नासिका की परन्तु वाणी-मुख का विषय-विकार रोकना कठिन है। एक तो स्वाद और दूसरा क्रोध । व्रती सुन्दर रूप देखकर अपने आप को रोक लिया करता है। कान से भी अश्लील राग-शब्द सुनने से अपने को पृथक् कर लेता है। सुगन्धित पदार्थों से भी मन को रोक लेता है । परन्तु स्वाद नहीं छोड़ता । बोलने में क्रोध भी कर जाता है। बस इसी पर अधिक काबू पाना-व्रती का बड़ा कर्तव्य है। यदि स्वाद में पड़ा रहा-खाने पीने की आदत को न रोका तो लोभ-रोग जहां बढ़ा, वहाँ ब्रह्मचर्य का नाश होगा ही। एवं क्रोध पर नियन्त्रण न पाया-तो सदा द्वेष और घृणा से जलता रहेगा। शान्ति प्राप्त न होगी-व्रत किया व्यर्थ चला जाएगा।


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