व्यवहार में धन का स्थान

व्यवहार में धन का स्थान



       रोगी के शरीर से जब रक्त निकल जाता है तो उसकी सब इन्द्रियां शिथिल हो जाती हैं तथा उसका सहयोग नहीं देना चाहतीं। जीभ फीकी रहती हैपानी पिये तो फीका लगता है। कोई वस्तु खाए तो फीकी लगती है । शरीर में रक्त ऐसा है-जैसे व्यवहार में धन । जब व्यापारी का धन निकल जाए-तब उसके सेवकभृत्य उसका साथ नहीं देते । उसकी वाणी में, बोल में फीकापन आजाता है। किसी को उसका बोल मधुरप्यारा नहीं लगता और भक्त में भी यदि जप-तप-सत न रहे-तब उसकी भक्ति में फीकापन आ जाता है । उसकी वाणी में रस स्वाद और प्रभाव नहीं रहता| वाणी असत्य से मैली प्रतीत होती है-वाणी का बोल (भाषण) फोकारस देता है।


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