विवाहित को संयम का व्रत

विवाहित को संयम का व्रत



      वैदिक विवाह-संस्कार की समाप्ति पर वर-वधू को आदेश दिया जाता है कि वे तीन रात्रि भूमि पर शयन करें, और ब्रह्मचर्य व्रत पालन करें । वर और वधू पच्चीस और सोलह वर्ष से लगातार ब्रह्मचारी होते हैं। अब विवाह करने पर भी उनको तीन दिन के लिए फिर ब्रह्मचर्य का आदेश क्यों होता है ? अभी इसका कारण ज्ञात हुआ कि--(१) पहला ब्रह्मचर्य तो उनका अबोध अवस्था से स्वभावतः आरम्भ हुआ था-वह ज्ञान विद्याभ्यास के लिए था । और अब बोध की अवस्था में संकल्प से व्रत करना है।


      (२) जैसे मधु-पर्क क्रिया और संस्कार आदि का नमूना गृहस्थी बनने के लिए पहले सिखाया जाता हैऐसे यह व्रत भी नमूना है कि गृहस्थ में रहते हुए भी तुमने ब्रह्मचर्य का अधिक ध्यान रखना है।


      (३) कन्या और वर इससे पहले अपने-अपने स्थान पर अकेले थे, उनका ब्रह्मचर्य का पालन करना कोई कठिन काम न था। परन्तु अब इन्द्रियों की और मन की परीक्षा है कि क्या वे अब आग और कपास पासपास होते हुए भी अपने आपको सुरक्षित रख सकते हैं ? आज का संयम उनको ढारस दे सकेगा कि वे इस व्रत को आगे भी पाल सकते हैं।


      (४)) जैसे बाहर (दूर) से यात्रा कर आया हुआ मनुष्य जब आता है और उसे तीव्र प्यास लगी हुई होती है तो उसके किसी पानी के स्थान प्याऊ या गृहस्थी के पास पहुंचने पर जब वह पानी मांगता है--तो उसे तनिक दम लेकर ठण्डा होने पर पानी दिया जाता है। जिससे कि जल उसे हानि न करे। वैद्यक शास्त्रानुसार यदि ऐसा पथिक जिसने लम्बा मार्ग तय किया है--धूप में (गर्मी में) आया है-अविलम्ब शीतल जल पी लेवे-तो उसे रोग हो जाता है। ऐसे ही जिन युवक-युवती ने इतने वर्षों तक ब्रह्मचर्य रखा है--यदि अब एकदम वे गृहस्थ कर लेवेंगे-तो उनकी जो सन्तान पैदा होगीवह अधीर होगी, संयमी नहीं होगी।


       विवाह की समाप्ति पर दम्पती को आदेश दिया जाता है कि वे तीन रात्रि भूमि पर शयन करें और ब्रह्मचर्य का व्रत करें, गृहस्थ न करें। यदि पहली ही रात्रि स्त्री पुरुष गृहस्थ कर लेवें और गर्भ स्थित होजावे तो सन्तान अधीर और असंयमी पैदा होगी। उसका कारण यह है कि स्त्री और पुरुष में जो प्रेम होना चाहिये--वह चमड़े का प्रेम न हो, और विषय कामना की पूर्ति के अधीन प्रेम न हो--अपितु गुण और कर्तव्य एवं सम्बन्ध का प्रेम होना चाहिए। और ऐसा प्रेम जब तक एक दूसरे का परिचय न हो-पैदा नहीं हो सकता। इसलिए जो बिना परिचय के गृहस्थ हो जाएगा तो वह पशु-संतान पैदा करनेवाला होगा। एवं न उस उत्पन्न सन्तान का कोई विशेष उद्देश्य सम्मुख होगा। न एक दूसरे का परामर्श स्थिर करके होगा-केवल काम-आतुरता का प्रेम होगा, जो कामातुर सन्तान पैदा करेगा तथा वह सन्तान अपने आपको पहचाननेवाली न होगी। इसलिए तीन रात्रि प्रेम की भूमि को परिपक्व करने के लिए संयम दमन बल से एक दूसरे के गुण-कर्म-स्वभाव का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए तब प्रेम परिपक्व हो जाएगा। एक दूसरे का सच्चा मान और उद्देश्य, एकवाणी, एक हृदय, एक विचार, हो सकेंगे।


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