वेदो का विज्ञानं मानवमात्र के लिए





।। ओ३म ।।


अयं त इध्म आत्मा जातवेदः।


“हे अग्ने ! तेरे लिए सबसे पहला ईंधन “अयं आत्मा” – अर्थात यह यजमान – स्वयं है।”



      वेदो का विज्ञानं मानवमात्र के लिए :


      क्षयरोग (TB – Tuberculosis) से बचाव और उपचार करता है यज्ञ।


     सूर्य का प्रकाश मनुष्य के लिए वैसे भी लाभदायक है। इससे शरीर में विटामिन डी बनता है, जिससे हड्डियां पुष्ट होती हैं। उदय और अस्त होने वाले सूर्य की किरणे तो और भी अधिक गुणकारी होती हैं।


उद्यन्नादित्यः क्रिमिहन्तु निम्रोचन्हन्तु रश्मिभिः।
ये अन्तः क्रिमयो गवि।।


(अथर्ववेद २।३२।१)


         “उदय होता हुआ और अस्त होने वाला सूर्य अपनी किरणों से भूमि और शरीर में रहने वाले रोगजनक कीटो का नाश करता है।”


         सूर्य का प्रकाश कृमिनाशक है। रोबर्ट काउच ने सन १८९० में अनेको प्रयोगो द्वारा यह सिद्ध किया की क्षयरोग (फेफड़ो के क्षयरोग को छोड़कर) के कीटाणु इस प्रकाश में दस मिनट से अधिक समय तक जीवित जीवित नहीं रह सकते। इसलिए क्षयरोग से ग्रस्त व्यक्ति को धुप सेकनी चाहिए।


        संभवतः जनसाधारण में इसको यह कहकर मान्यता प्रदान की जाती है की अँधेरे में क्षयरोग फूलता फलता है तथा प्रकाश में यह दम दबाकर भाग जाता है।


      अतः यज्ञ के लिए सूर्योदय के पश्चात तथा सूर्यास्त से पूर्व का समय ही ठीक है।


      आधुनिक विज्ञानं के अनुसार सूर्य की धुप क्षयरोग के लिए बचाव और उपचार दोनों है


      अब इस समय पर यज्ञ करना लाभदायक ही होगा क्योंकि यज्ञ में प्रयुक्त होने वाली सामग्री में मुख्य रूप से गौघृत, खांड अथवा शक्कर, मुनक्का, किशमिश आदि सूखे फल जिनमे शक्कर अधिक होती है, चावल, केसर और कपूर आदि के संतुलित मिश्रण से बनी होती है।


         अब इस विषय पर कुछ वैज्ञानिको के विचार :


      १. फ्रांस के विज्ञानवेत्ता ट्रिलवर्ट कहते हैं : जलती हुई शक्कर में वायु – शुद्ध करने की बहुत बड़ी शक्ति होती है। इससे क्षय, चेचक, हैजा आदि रोग तुरंत नष्ट हो जाते हैं।


      २. डॉक्टर एम टैल्ट्र ने मुनक्का, किशमिश आदि सूखे फलो को जलाकर देखा है। वे इस निर्णय पर पहुंचे हैं की इनके धुंए में टायफाइड ज्वर के रोगकीट केवल तीस मिनट तथा दूसरी व्याधियों के रोगाणु घंटे – दो घंटे में मर जाते हैं।


       ३. प्लेग के दिनों में अब भी गंधक जलाई जाती है, क्योंकि इसमें रोगकीट नष्ट होते हैं। अंग्रेजी शासनकाल में डाकटर करनल किंग, आई एम एस, मद्रास के सेनेटरी कमिश्नर थे। उनके समय में वहां प्लेग फ़ैल गया। तब १५ मार्च १८९८ को मद्रास विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के समक्ष भाषण देते हुए उन्होंने कहा था – “घी और चावल में केसर मिलकर अग्नि में जलाने से प्लेग से बचा जा सकता है।” इस भाषण का सार श्री हैफकिन ने “ब्यूबॉनिक प्लेग” नामक पुस्तक मे देते हुए लिखा है, “हवन करना लाभदायक और बुद्धिमत्ता की बात है।”


        महर्षि दयानंद ने अपने ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में लिखा है :


       “जब तक इस होम करने का प्रचार रहा ये तब तक ये आर्यवर्त देश रोगो से रहित और सुखो से पूरित था अब भी प्रचार हो तो वैसा ही हो जाए।”


      (स. प्र. तृतीय समुल्लास)


     यहाँ ऋषि इसी विज्ञानं को समझाने की कोशिश कर रहे हैं जो आज का आधुनिक विज्ञानं मानता है।




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