'वेद' सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है।

'वेद' सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है।



      जिस महापुरुष ने यह उद्घोष किया था क्या उसके समक्ष कम आपदाएं आईं। पर सत्य और वेद को किसने दबाया । युग-युगान्तरो से गूंजती प्रभु की वाणी स्वयं प्रेरक और कल्याणी है।


       सुनो ! ध्यान से सुनो ! यह भवन, यह मंदिर, यह तुम्हारा संस्थावाद ऋषि का लक्ष्य नहीं था। लक्ष्य था 'वेद, वैदिक विचारधारा का साम्राज्य ! - सत्यज्ञान धर्म का प्रचार-और हमारा प्रश्न है-इनके लिए तुम क्या करते हो! क्या किया तुमने युग को बदलने के लिए। तुम्हारे नगर में हजारों-लाखों व्यक्ति रहते है.........क्या उन तक तुमने अपनी 'वेद' की बात पहुंचायी ?


       मुझे ज्ञात है कि मेरे प्रश्नों का उत्तर देने का साहस तुम खो चुके हो ! तुमने अपनी हत्या स्वयं कर ली है। तुम जिस राह पर चले थे, उस राह पर तो एक पग भी नहीं चल सके...... और भूलकर भ्रान्त दिशा में बढ़ गए! 


       आज....केवल आज........जागरण का मंत्र सुन लो और लौट आओ फिर अपनी सच्ची राह पर ! उठा लो 'ओ३म' पताका-कुछ करो-कुछ बढो, फिर देखो, तुम क्या कर सकते हो, मानो या न मानो मैं पुकारती रहंगीतम्हें 'वेद' वीणा बजाने के लिए बुलाती रहूंगीतुम आर्य हो तो बहन कीबात कभी तो सुनोगे!


बाधाएं आएं आने दो, दानवीय होने दो वार !


सब कुछ सौंप बढ़ो तुम आगे! विजय वरण का लक्ष्य विचार !


       युग बदलना है, धर्म.....सत्य.....मानवता और ज्ञान की पुनः प्रतिष्ठा करनी है। भेद की दीवार गिरानी है, नई धरती पर नया सूरज चमकाना है--


      निमन्त्रण स्वीकार कर साथ आओ ! और अपने-अपने क्षेत्र में काम आरम्भ कर दो !


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