वेद ही ईश्वरकृत क्यों हैं

वेद ही ईश्वर कृत क्यों ?
 -डा मुमक्षु आर्य


1.वेद हर सृष्टि के आदि में चार ऋषियों के मन में स्वयं ईश्वर द्वारा प्रगट किये जाते हैं ।


2.वेद सब मनुष्यों के लिए हैं, सब वर्गो के लिये हैं 


3.वेद संस्कृत भाषा में हैं जिसे सिखने के लिए सबको एक जैसा परिश्रम करना पडता है ।
 
4.वेद में सब प्रकार का ज्ञान विज्ञान सूत्र रुप में है।


5.वेद में सब बातें ईश्वर के गुण कर्म स्वभाव अनुसार हैं।


6.वेद में सब बातें सृष्टि नियमों के अनुसार हैं ।


7.वेद में राजा महाराजाओं वा काल्पनिक देवी देवता का इतिहास व किस्से कहानियां नहीं ।


8.वेद ही ईश्वरीय वाणी है- इसका साक्ष्य स्वयं ईश्वर ने वेदों में किया है।


9.वेद सब प्रकार के अन्धविश्वास पाखंड पशुबलि पाषाण पूजा, मांसाहार, भूतप्रेत, जादूटोना आदि का समर्थक नहीं है ।


10.वेद में शारिरिक आत्मिक व सामाजिक उन्नति के उपाय बताए गए हैं।


11.वेद में कोई परिवर्तन नहीं-  वेद शाश्वत एकरस हैं।


12. वेद में ईश्वर जीव प्रकृति व सृष्टि का यथार्थ ज्ञान है।


13. वेद सब सत्य विद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं उनका आदि मूल है ।


14. वेद पूरी मानव जाति का संविधान है । वेद का पढना पढाना सुनना सुनाना व तदनुसार आचरण करना सब मनुष्यों का परम धर्म है ।


15. वेद मनुर्भव, वसुधैवकुटुम्बकम्, कृण्वन्तोविश्वार्यम्, प्रेम, सदाचार, परोपकार,यज्ञ व योग का संदेश देता है ।
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वेद चार हैं - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद। वेद को सभी विद्वान  एकमत से सबसे प्राचीन मानते हैं। दुनिया में जितने भी पुराण कुराण बाईबल आदि धर्म ग्रन्थ माने जाते हैं वे सभी चार हजार वर्ष से पुराने नहीं है लेकिन वेद हर सृष्टि के आदि में ईश्वर द्वारा प्रगट किये जाते हैं । वर्तमान सृष्टि में वेद लगभग 1,96,08,53121 वर्ष पूर्व प्रगट हुये । वेदों में सम्पूर्ण ज्ञान है- गणित विद्या, विमान विद्या, खगोल विद्या, आध्यात्मिक विद्या, संगीत विद्या, चिकित्सा विज्ञान, पारिवारिक, सामाजिक, वैश्विक व्यवहार का ज्ञान, मनुष्य के सम्पूर्ण कर्तव्य - अकर्तव्य का ज्ञान,  सम्पूर्ण पदार्थ विद्या, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान आदि। सभी विषयों का सम्पूर्ण ज्ञान अल्पज्ञ मनुष्य को नहीं हो सकता । ज्ञान विज्ञान से ओतप्रोत वेदमंत्रो की अद्भुत रचना सर्वज्ञ ईश्वर ही कर सकता है । 


सृष्टि के प्रारंभ में सबसे पुण्यशाली आत्माओं अग्नि, वायु, आदित्य, अंगिरा.नामक मनुष्यों को ईश्वर ने अपनी प्रेरणा शक्ति के माध्यम से उनके हृदयों में  वेदों का ज्ञान दिया। जैसे चींटी को मीठा और नमकीन को पहचानने का ज्ञान, चिड़िया को घोंसला  बनाने का ज्ञान, गाय के नवजात बछड़े को तैरने का ज्ञान, पक्षीयों को उड़ने का ज्ञान, सभी पशु-पक्षी को ईश्वर ने प्रेरणा शक्ति से स्वाभाविक ज्ञान दिया हुआ है वैसे ही ईश्वर ने चार ऋषियों को वेदों का ज्ञान दिया। उन चारों ने दूसरों को सुनाया, और ऐसे सुनते-सुनाते ज्ञान आज लिपिबद्ध हो गया है।  वेद ईश्वर कृत है इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि दुनियां में जितना भी विज्ञान सम्मत अच्छा व सच्चा ज्ञान है वह सभी वेद से ही लिया गया है । अतः यह निर्विवाद रुप से सत्य है कि सृष्टि के आदि में सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक ज्ञानस्वरूप परमेश्वर ने अपने शाश्वत ज्ञान- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद को क्रमश: अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा के हृदयों में जनकल्याण हेतू प्रकाशित किया । सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर आज तक आर्य लोग दिन दिन गिनते और प्रसिद्ध करते चले आ रहे हैं और हर याज्ञिक कार्य में संकल्प कथन करते लिखते लिखाते रहे हैं जो बही खाते की तरह मान्य है । वेदों की उत्पत्ति परमेश्वर द्वारा ही होना वेदों में भी उल्लखित है :-


तस्माद यज्ञात सर्वहुतः ऋचः सामानि जज्ञिरे। छन्दांसि जज्ञिरे तस्माद यज्ञुस्तस्मादजायत।। (यजुर्वेद 31.7) अर्थात उस सच्चिदानंद, सब स्थानों में परिपूर्ण, जो सब मनुष्यों द्वारा उपास्य और सब सामर्थ्य से युक्त है, उस परब्रह्म से ऋग्वेद, यजुर्वेद सामवेद और छन्दांसि/अथर्ववेद ये चारों वेद उत्पन्न हुए।


यस्मादृचो अपातक्षन् यजुर्यस्मादपकशन।
सामानि यस्य लोमानी अथर्वांगिरसो मुखं।
स्कम्भं तं ब्रूहि कतमःस्विदेव सः।।
(अथर्व० 10.4.20) अर्थात जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर है, उसी से (ऋचः) ऋग्वेद (यजुः) यजुर्वेद (सामानि) सामवेद (अंगिरसः) अथर्ववेद, ये चारों उत्पन्न हुए है ।


यथेमां वाचं कल्याणीमावदानि जनेभ्यः ।
ब्रह्मराजन्याभ्या शूद्राय चार्याय च स्वाय चारणाय ।। (यजुर्वेद 26.2 ) अर्थात परमेश्वर स्वयं कहता है कि मैने ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र,अपने भृत्य वा स्त्रियादि के लिये भी वेदों का प्रकाश किया है; सब मनुष्य वेदों को पढ़ पढ़ा और सुन सुनाकर विज्ञान को बढ़ा के अच्छी बातों का ग्रहण और बुरी बातों का त्याग करके दुःखों से छूट कर आनन्द को प्राप्त हों।


वेद की शिक्षाओं को सरल सरस भाषा व सार रुप में जानने के लिए महर्षि दयानंद कृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका व सत्यार्थप्रकाश बहुत सहायक है ।


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