वसुधा नव गैरिक वेष सजी , छवि सुन्दर रूप निहार जरा !

 


||दुर्मिल सवैया ||



 


वसुधा नव गैरिक वेष सजी , छवि सुन्दर रूप निहार जरा !
चिर संचित चाह असीम जगी , तन चेतन उर्वर जोश भरा !
चहकी शुभ मंगल में दुनियाँ, नव चंचल चित्र निहाल धरा !
नभ नैन उठा गुरु ध्यान लगा , पल प्रीत प्रभात विराट झरा !!


छगन लाल गर्ग "विज्ञ"!


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