वैराग्य और कठोरता में भेद
वैराग्य और कठोरता में भेद
१- जो ईश्वरभक्त परिवार अथवा संसार के दुःखों की परवाह नहीं करता और जानकर बेपरवाह रहता है-इस विचार से कि उसे मोह नहीं, या वैराग्य हो जाएगा, वह ईश्वरभक्त नहीं बन सकता, उसकी भक्ति सफल नहीं होती। यह वैराग्य नहीं कठोरता है।
२- ईश्वर को रिझाने से पहले उसके (बन्दोंबन्धुओं को रिझानो-यहां तक कि पशु-पक्षी और हिंसकप्राणी भी रीझ जाएं। जिससे अपने ही नहीं रीझतेवह प्रभु को कैसे रिझाएगा?