वाणी का बल

वाणी का बल



      जिस मनुष्य की वाणी में बल है-जो बल से बोलता है-उसके सामने पाप और पापी दोनों डरते हैं। मनुष्य को प्रत्येक शुभ कार्य में बलपूर्वक काम लेना चाहिए। प्रार्थना, संध्या, यज्ञ, मन्त्र पाठ, स्तुति आदि में बलपूर्वक उच्चारण होना चाहिए जिसे सब सुन सकें । बल में ही एकाग्रता है। बल से बोलनेवाला अपनी आवाज में एकाग्र होकर रस लेता है तथा दूसरों को भी इससे रस मिलता है।  


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