तुम और मैं ।
तुम और मैं
आग और पानी का मेल सम्भव नहीं है। झूठ और सच एक साथ नहीं रह सकते। काम और सम्मान में कभी ताल मेल नहीं हो सकता।
जो परिवर्तन सुधार चाहते हैं उन्हें मालाएँ नहीं, गालियां और गोलियां मिलती हैं। जो सेवा करते हैं वे ठोकर खाते हैं और संसार उनके जीवन में उनकी कभी सराहना नहीं करता।
धर्म और अधर्म, पाप और पुण्य, प्यार और युद्ध एक दूसरे के पूरक नहीं, विरोधी हैंजीवन और मृत्यु का साथ धरती पर किसने देखा है?
मैं और तुम भी इसी तरह दो दिशाओं के यात्री है। तुम्हें प्रदर्शन प्रिय है और मुझे काम। तुम योजनाएँ बनाते हो, सबको बहकाते हो और मैं कुछ करने के बाद काम की सूचना प्रसारित करती हूँ।
मैं एक बूंद हूँ जो धरती में मिल जाने की इच्छुक हूँ और तुम हो इठलाती सरिता, जो सभी को बहा ले जाने में जीवन की सफलता मान रही हो।
तुम शृंगार को अभिसार मानती हो और मैं बलिदान का अर्ध्य सजाती हूँ। मेरे गीत निर्माण की गंगा बहाते हैं और तुम संहार में सृजन के स्वप्न संजोती हो।
युग-युग तक मैं और तुम साथ नहीं रह सके और इसीलिए आज भी मैं अकेली हूँनितान्त एकाकी.....
शून्य से निर्माण के स्वर बजाने का अभ्यास कर रही हूँ। तुम और मैं, मैं और तुम कभी साथ नहीं रहे और रहेंगे भी नहीं; इसी में जीवन का सार है।