तीन एषणाएं आवश्यक और वजित भी

तीन एषणाएं आवश्यक और वजित भी



      ब्रह्मचर्य-आश्रम में कोई भी एषणा नहीं होती। गृहस्थाश्रम में सब प्रकार की एषणा-पुत्रैषणा, वित्तषणा और लोकषणा आवश्यक बन जाती है। नहीं तो गृहस्थी कोई भी कार्य संसार का न कर सके-एवं किसी का उपकार और सेवा भी न कर सके यदि उसे वित्तै षणा न हो। कोई भी यश का काम न कर पावे-यदि लोकैषणा न हो। और यदि ब्रह्मचारी कोई एषण। पैदा कर लेवे-तो ब्रह्मचर्य तुरन्त भङ्ग हो जाता है। इसलिए उसे तो प्रभु ने कोई एषणा नहीं दी। वान प्रस्थी पुत्र और वित्तएषणाओं का त्याग करता है परन्तु लोकैषणा रह जाती है और संन्यास-आश्रम में उसका भी त्याग हो जाता है। यदि इन आश्रमों में कोई एषणा रह जाए-तो गृहस्थी और विरक्त में अन्तर नहीं रहता।


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