स्वामी श्रद्धानंद

मुझे किसी से भी 25 दिसम्बर कॊ मैरी क्रिसमस की बधाई लेनी देनी नहीं है क्योंकि मुझे अपने आदर्शों के बलिदान का ये सप्ताह याद है .आप सब भी दिसम्बर के बलिदानिक सप्ताह कॊ ना भूलें...जिसमें गुरू गोविंद सिंह जी के पूरे परिवार का बलिदान रहा है उसी बीच 23 दिसम्बर कॊ स्वामी श्रद्धानंद जी का भी बलिदान हुआ था .जो सबके कल्याण मार्ग का पथिक था ..... स्वामी श्रद्धानन्द: 
जिनकी घर में श्रद्धालु की तरह मिलने आए अब्दुल ने 23 दिसम्बर के दिन गोली मारकर की थी हत्या...
स्वामी श्रद्धानन्द को भारत के प्रसिद्ध महापुरुषों में शुमार किया जाता है। स्वामी जी ऐसे महान राष्ट्रभक्त संन्यासियों में अग्रणी थे, जिन्होंने अपना सारा जीवन वैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दिया था। स्वामी श्रद्धानंद ने देश को अंग्रेज़ों की दासता से छुटकारा दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई। इसके अलावा दलितों को उनका अधिकार दिलाने और पश्चिमी शिक्षा की जगह वैदिक शिक्षा प्रणाली का प्रबंध करने जैसे अनेक महत्वपूर्ण काम भी किए।
स्वामी श्रद्धानन्द के पिता का नाम लाला नानकचन्द था, जो ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा शासित वर्तमान उत्तर प्रदेश में पुलिस अधिकारी के पद पर नियुक्त थे। श्रद्धानन्द जी के बचपन का नाम बृहस्पति था, फिर बाद में वे उन्हें मुंशीराम नाम से भी पुकारा जाने लगा। मुंशीराम जी के पिता का तबादला अलग-अलग स्थानों पर होता रहता था, जिस कारण मुंशीराम की आरम्भिक शिक्षा अच्छी प्रकार से नहीं हो सकी। लाहौर और जालंधर उनके मुख्य कार्यस्थल रहे।
एक बार आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती वैदिक धर्म के प्रचार के लिए बरेली पहुंचे, तो पुलिस अधिकारी नानकचन्द अपने पुत्र मुंशीराम को साथ लेकर स्वामी दयानन्द का प्रवचन सुनने पहुंचे। युवावस्था तक मुंशीराम ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास ही नहीं करते थे, पर स्वामी दयानन्द जी के तर्कों और आशीर्वाद ने मुंशीराम को ईश्वर विश्वासी और वैदिक धर्म का बड़ा भक्त बना दिया।
पढ़ाई पूरी करने के बाद मुंशीराम एक सफल वकील बने। अपनी वकालत से उन्होंने काफ़ी नाम और प्रसिद्धि हासिल की। आर्य समाज में वे बहुत ही एक्टिव रहते थे। उनका विवाह शिवा देवी के साथ हुआ था। मात्र 35 साल के जब मुंशीराम हुए, तो यौवन की इस अवस्था में उनकी पत्नी शिवा देवी स्वर्ग सिधार गईं। उस समय उनके दो पुत्र और दो पुत्रियां थीं। उसके बाद स्वामी जी ने 1917 में संन्यास धारण कर लिया और फिर वहीं से वो स्वामी श्रद्धानन्द के नाम से विश्व विख्यात हुए।
समाज सेवा---
स्वामी श्रद्धानन्द अब दयानन्द सरस्वती के बताए रास्ते पर चल पड़े । अपनी जीवन गाथा में उन्होंने लिखा था- "ऋषिवर! कौन कह सकता है कि तुम्हारे उपदेशों से निकली हुई अग्नि ने संसार में प्रचलित कितने पापों को भस्म कर दिया है। आगे लिख कि अपने विषय में मैं कह सकता हूं कि तुम्हारे सत्संग ने मुझे कैसी गिरी हुई अवस्था से उठाकर सच्चा लाभ करने योग्य बनाया। स्वामी श्रद्धानन्द अपना आदर्श महर्षि दयानंद को ही मानते थे। महर्षि दयानंद के महाप्रयाण के बाद उन्होंने स्वदेश, स्व-संस्कृति, स्व-समाज, स्व-भाषा, स्व-शिक्षा, नारी कल्याण, दलितोत्थान, स्वदेशी प्रचार, वेदोत्थान, पाखंड खंडन, अंधविश्वास उन्मूलन और धर्मोत्थान के कार्यों को आगे बढ़ाने के कार्य किए।
स्वामी श्रद्धानन्द पर जारी डाक टिकट---
स्वामी श्रद्ध


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