स्वामी श्रद्धानन्द और उनका दर्द


प्यारे भाइयो बहिनो
23 दिसम्बर स्वामी श्रद्धानंद बलिदान दिवस है
आइये उनके चिंतन, उनके व्यक्तित्व, कृतित्व- सेवा कार्यों का स्मरण कर हम सब उनको अत्यंत श्रद्धापूर्वक अर्थात् उनके शुद्धि कार्यक्रम को हाथ में ले श्रद्धा सुमन भेंट करें
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स्वामी श्रद्धानंद ने जब अपनी बेटी अमृतकला को स्कूल से लौटते हुए "ईसा  ईसा बोल तेरा क्या लगेगा मोल।"
"ईसा मेरा राम रमैया ईसा मेरा कृष्ण कन्हैया" सुना अर्थात्
जब यह शब्द स्वामी श्रद्धानंद के कानों में पड़े तो स्वामीजी भौंचक्के रह गए और उन शब्दों की तह तक जाने का मन ही मन संकल्प बना लिया, उन्होंने पाया कि हम कितना ही राष्ट्र- धर्म का जागरण कर लें, जब तक ईसाई मिशनरियों व तबली के जमात के चंगुल से आजादी नहीं मिलेगी भारत का कल्याण व प्रगति असम्भव है। उन्होंने पाया कि एक ओर ईसाई मिशनरियाँ चर्च के माध्यम से विदेशी पैसों के बल पर  बड़े पैमाने पर अपनी शिक्षण संस्थाएं व अपने कथित सेवा कार्यों का विस्तार कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर अरब के शेखों के पेट्रो डॉलर के बल पर तबली के जमात के लोग मस्जिदों व मदरसों के विस्तार के माध्यम से भारत के भोले भाले व सीधे सादे जनमानस व उनकी मासूम संतानों को मूलधर्म से विमुख करने का षड्यंत्र रच रहे हैं। जब तक इन विधर्मी शक्तियों के चंगुल से जनता को मुक्ति नहीं मिलेगी, हमारा कृण्वन्तोविश्वमार्यम का सपना किसी भी स्थिति में सफल नहीं हो पायेगा।
उन्होंने अनुभव किया कि आर्यजगत को इनके चंगुल से मुक्त करना है तो हमें दो कार्य आवश्यक रूप से व अविलम्ब प्रारम्भ करने होंगे। तथा वैदिक शिक्षा व निस्वार्थ सेवा का विस्तार करना होगा।
क्योंकि इन विदेशी साम्प्रदायिक शक्तियों ने यह जान लिया है कि यदि भारत को तोड़कर इस पर राज्य करना है तो इनकी मान्यताओं श्रद्धाकेन्द्रों गौरवशाली इतिहास व वैदिक संस्कृति को शिक्षा और सेवा के माध्यम से समाप्त किया जा सकता है। इसलिए स्वामीजी ने संकल्प किया कि अब मेरा प्रमुख कार्य गुरुकुलों के माध्यम से वैदिक शिक्षा का विस्तार तथा स्थान स्थान पर अभावग्रस्त व रोग त्रस्त भारतवासियों की सेवा करना और कराना रहेगा तभी हम वेद, यज्ञ, योग, आयुर्वेद व समस्त ज्ञान विज्ञान को प्रत्येक व्यक्ति के अंतर्मन तक  पहुंचा पाएंगे। स्वामीजी ने स्वयं घर घर जाकर भिक्षा मांगकर तत्कालीन कठिन परिस्थितियों में भी 40000 रुपये एकत्र कर गंगा जी के किनारे एक गुरुकुल की स्थापना की और उसमें सबसे पहले ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित स्कूलों में पढ़ने वाले अपने बच्चों को वहां से निकाल भर्ती किया और उसके बाद कारवां बढ़ता चला गया जो आज गुरुकुल कांगड़ी के रूप में विश्व विख्यात है। उनकी ही प्रेरणा का परिणाम है कि आज हजारों गुरूकुलों में लाखों विद्यार्थी वैदिक शिक्षा ग्रहण कर देश धर्म के कार्यों में तल्लीनता से लगे हैं।
वास्तव में ऐसे महान बलिदानी संतों-स्वामी श्रद्धानंद जैसे सरीखे विद्वान देश भक्तों का हम सम्मान करें उनके पदचिन्हों पर चल श्रद्धा सुमन अर्पित करें स्वामी श्रद्धानंद के देश में सैंटाक्लोज के गुणगान का क्या काम? विचारणीय और करणीय बिंदु है।
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बच्चों को क्रिश्चियन नहीं कृष्ण ही बनाइये।
सांटाक्लॉज क्लोज कर, श्रद्धानंद पुकारिये।
25 दिसम्बर बलिदान दिवस,
टॉफी चॉकलेट नहीं श्रद्धा सुमन बंटाइये।
नजर घुमाइए, नजर उठाइये,
ईसाइयत के चक्र फंस न घर को उजाडिए।
मंदिरों में घण्टी बजा प्रेम से गले लगा,
अपने भाई बहिनों को,
वापिस घर लाइए।
श्रद्धानंद जय हो तभी
घरों को बचाइये।
घरों को बचाइए।
यूँ श्रद्धानंद बलिदान
दिवस
जय जय कर मनाइए,
जय जय कर मनाइए।।
-आचार्या विमलेश बंसल आर्या
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