स्वामी दयानंद और मेक्समुलर के वेद भाष्यों का तुल्नात्मक अध्ययन

वेद शब्द का वर्णन होते ही आज के नौजवान या तो विदेशी विद्वानों जैसे मेक्समुलर, ग्रिफ्फिथ आदि को वेद आदि धर्म शास्त्रों को उनके योगदान के लिए प्रशंसित करते पाते हैं अथवा वैदिक धर्म के दूषित रूप आधुनिक पौराणिक मत को आँखों के सामने रखकर हमारे बहुत से अंग्रेजी शिक्षित युवक वेद मन्त्रों से घृणा करने लग जाते हैं. इसमें उन युवाओं का कसूर केवल यह हैं की उन्होंने स्वयं वेदों का स्वाध्याय अथवा वेदों के अधिकारी विद्वानों से उनके वास्तविक सत्य का ग्रहण नहीं किया हैं अपितु पश्चिमी विद्वानों ने जो कुछ भी लिख दिया हैं उसका अँधादुंध अनुसरण किया हैं . वेद विषय पर आज प्राय: सभी विश्व विद्यालयों में पश्चिमी विद्वानों के द्वारा किये गए कार्य पर ही शोध होता देखा जाता हैं. कहीं कहीं राजा रमेश चन्द्र दत (RC Dutt) अथवा राजेन्दर लाल मित्र (Rajender Lal Mitra) जैसे भारतीय विद्वानों का वर्णन आता हैं जो पश्चिमी विद्वानों का ही अनुसरण करते हुए दिखाई देते हैं. आधुनिक काल में वेद भाष्य विषय में सबसे क्रांतिकारी कदम स्वामी दयानंद द्वारा प्राचीन ऋषियों द्वारा जिस पद्यति से वेद भाष्य किया जाता था उसी पद्यति का अनुसरण करते हुए नवीन भाष्य संस्कृत और हिंदी में किया गया जिससे सामान्य जन वेद के मूलअर्थ को समझ सके.स्वामी दयानंद द्वारा वेद भाष्य करते हुए न केवल सायण महीधर के भाष्य का अवलोकन किया बल्कि मेक्समुलर आदि के भाष्य का भी अवलोकन किया. स्वामी दयानंद के अनुसार वेदों पर भाष्य करने के लिए सत्य प्रमाण, सुतर्क, वेदों के शब्दों का पूर्वापर प्रकरणों, व्याकरण आदि वेदांगों, शतपथ आदि ब्राह्मणों, पूर्वमीमांसा आदि शास्त्रों और शास्त्रन्तरों का यथावत बोध न हो और परमेश्वर का अनुग्रह, उत्तम विद्वानों की शिक्षा,उनके संग से पक्षपात छोड़ के आत्मा की शुद्धि न हो तथा मह्रिषी लोगों के किये गए व्याख्यानों को न देखें हो तब तक वेदों के अर्थ का यथावत प्रकाश मनुष्य के ह्रदय में नहीं होता. अपने कठिन अनुसन्धान से स्वामी दयानंद ने मेक्स मुलर आदि पश्चिमी विद्वानों के विषय में एक ही वाक्य में की जिन देशों में कुछ भी नहीं उगता वहां अरंडी को भी फसल के रूप में गिना जाता हैं से उनके ज्ञान की उचित परीक्षा कर दी थी.पश्चमी देशों के विद्वान भी उसी प्रकार अविद्वानों के बीच में कम ज्ञान होते हुए भी श्रेष्ठ विद्वान गिने जाने लगे. सबसे बड़ी विडम्बना हमारे यहाँ के विद्वानों को नकार कर पश्चिमी विद्वानों का अँधा अनुसरण करने से न केवल वेद के ज्ञान का उचित प्रकाश होने से रह गया अपितु उसके स्थान पर अनेक भ्रांतियां पहला दी गयी जो पश्चिमी विद्वानों की ही देन थी. उदहारण स्वरुप मेक्स मुलर के अनुसार आर्य लोगों को बहुत काल के पीछे ईश्वर का ज्ञान हुआ था और वेदों के प्राचीन होने का एक भी प्रमाण नहीं मिलता किन्तु इसके नवीन होने के अनेक प्रमाण मिलते हैं.मेक्स मूलर के अनुसार ऋग्वेद के मन्त्रों को केवल भजनों का संग्रह मानते हैं जो की जंगली वैदिक ऋषियों ने अग्नि, वायु, जल, मेघ आदि की स्तुति में बनाये थे और जिन्हें गाकर वे जंगलियों की भांति नाचा भी करते थे.सत्य यह हैं की ईश्वर द्वारा वेद ज्ञान के माध्यम से प्राचीन काल में ही अपना ज्ञान मनुष्य जाति को करवा दिया था. इसी प्रकार एक अन्य भ्रान्ति यह हैं की प्राचीन आर्य लोग अनेक देवताओं और भूतों की पूजा करते थे जबकि सत्य यह हैं की अग्नि,वायु, इन्द्र आदि नामों से उपासना के लिए एक ही परमेश्वर का ही ग्रहण किया गया हैं. मेक्स मुलर आदि पश्चिमी विद्वानों के अंग्रेजी में वेदों पर कार्य करने से विश्वभर के गंवेष्कों का ध्यान वेदों की और आकर्षित तो हुआ पर इससे वेदों का हित होने के स्थान अहित हुआ क्यूंकि इससे वेद में वर्णित सत्य , विज्ञान, ईश्वर का स्वरुप, मानव समाज के कर्तव्य आदि पर परिश्रम करने की बजाय वेदों में कोन-कोन सी व्यर्थ और निरर्थक बाते हैं (जिनका अस्तित्व ही नहीं हैं) इस पर पूरा ध्यान लगा दिया गया.वेदों को सचमुच बालकों की बुलबुलाहट तथा असभ्यों की घुरघुराहट ही समझ लिया गया. आलोचना का बाज़ार गरम हो गया.एक तरफ हमारे देश में वेदों के सम्बन्ध में निरर्थक व मिथ्या प्रचार हो गया, ईसाई समाज की संकीर्णता व पूर्वाग्रह भरी निति सफल होने को थी, आर्यावर्त का दर्शन और ब्रह्मा विद्या के साहित्य लुप्त होने के कगार पर थी ,लाखों भारतीय वेदों पर अश्रद्धा उत्पन्न होने से नास्तिक अथवा ईसाई बन्ने को तत्पर हो उठे थे ईश कृपा से यास्क, पाणिनि, पतंजलि और व्यास जैसे ऋषियों की तपोभूमि पर वेद रुपी भंवर में फँसी हुई नौका को निकलने के लिए एक माँझी ने प्रतिज्ञा कर अपना वेद भाष्य करने का प्रण किया उस माँझी का नाम स्वामी दयानंद था.
आईये मेक्समूलर महाशय द्वारा किये गए ऋग्वेद के भाष्य की तुलना अब हम स्वामी दयानंद द्वारा किये गए भाष्य से करते हैं जिससे पक्षपात रहित होकर सत्य का ग्रहण किया जा सके.
ऋग्वेद मंडल एक सूक्त ६ मंत्र १
मेक्स मूलर- वे जो की उसके चारों ओर खड़े हैं जब की वह करता हैं. प्रकाशमान लाल घोड़े को कसते हैं, आसमान में ज्योति चमकती हैं.
स्वामी दयानंद- जो मनुष्य की उस महान परमेश्वर को , जो की हिंसा रहित, सुख देने वाला, सब जगत को जानने वाला तथा सब चराचर जगत में भरपूर हो रहा हैं, उपासना, योग द्वारा प्राप्त होते हैं. वे उस प्रकाश स्वरुप परमात्मा में ज्ञान से प्रकाशित होकर (आनंद धाम में) प्रकाशित होते हैं.
ऋग्वेद मंडल एक सूक्त ६ मंत्र २
मेक्स मूलर – वे जंगी रथ को जोड़ते हैं. दोनों ओर उसके (इन्द्र के) दोनों मन को भानेवाले घोड़े भूरा व वीर
स्वामी दयानंद – जो विद्वान सूर्य ओर अग्नि के सबके इच्छा करने योग्य अपने अपने वर्ण के प्रकाश करनेहारे वा गमन के हेतु दृद विविध कला ओर जल के चक्र घुमने वाले पंखरूप यंत्रों से युक्त अच्छी प्रकार सवारियों में जुड़े हुए मनुष्य आदि को देश देशांतर में पहुँचाने वाले आकर्षण और वेग तथा शुकल पक्ष और कृष्ण पक्ष रूप दो घोड़े जिनसे सबका हरण किया जाता हैं, इत्यादि श्रेष्ठ गुणों को पृथ्वी, जल और आकाश में जाने- आने के लिए अपने रथों में जोड़े.
ऋग्वेद मंडल एक सूक्त ६ मंत्र ३
मेक्स मूलर – तू जो प्रकाश करता हैं जहाँ पर की प्रकाश न था और रूप और मनुष्यों ! जहाँ की कोई रूप न था. उषाओं के साथ उत्पन्न हुआ हैं.
स्वामी दयानंद – हे मनुष्य लोगों! जो परमात्मा अज्ञानरुपी अंधकार के विनाश के लिए उत्तम ज्ञान तथा निर्धनता, दारिद्र्य तथा कुरूपता- विनाश के लिए सुवर्ण आदि धन और श्रेष्ठ रूप को उत्पन्न करता हैं, उसको तथा सब विद्याओं को जो ईश्वर की आज्ञा के अनुकूल वरतने वाले हैं उनसे मिल मिल कर जान के प्रसिद्द कीजिये. तथा हे जानने की इच्छा रखने वाले मनुष्य! तू भी उस परमेश्वर के समागम से इस विद्या को अवश्य प्राप्त हो.
ऋग्वेद मंडल एक सूक्त ६ मंत्र ४
मेक्स मूलर- उसके पश्चात उन्होंने (मरुतों के) स्वाभाव के अनुसार स्वयं पुन: नवजात शिशुयों का रूप धारण किया अपना पवित्र नाम लेते हुए.
स्वामी दयानंद- जो जल सूर्य व अग्नि के संयोग से चोर छोटा हो जाता हैं, उसको धारण कर मेघ के आकार का बनके वायु ही उसे फिर फिर वर्षाता हैं, उसी से सबका पालन औए सबको सुख होता हैं.
ऋग्वेद मंडल एक सूक्त ६ मंत्र ५
मेक्स मूलर- तूने हे इन्द्र, शीघ्र चलने वाले मरुतों के, जो की गढ़ को तोड़कर भी निकल जाते हैं, उनके छुपने के स्थान में भी चमकीली गउओं को पाया हैं
स्वामी दयानंद- जैसे बलवान पवन अपने वेग से भारी भारी दृद वृक्षों को तोड़- फोड़ डालते हैं और उनको ऊपर-नीचे गिराते रहते हैं, वैसे ही सूर्य भी अपनी किरणों से उनका छेदन करता रहता हैं, इससे वे ऊपर नीचे गिरते रहते हैं. इसी प्रकार ईश्वर के नियम से सब पदार्थ उत्पत्ति और विनाश को भी प्राप्त होते रहते हैं.
इन ५ मन्त्रों का हिंदी भाष्य यहाँ प्रस्तुत किया गया हैं जिनसे पाठक यह निष्कर्ष आसानी से निकाल सकते हैं की मेक्स मूलर महोदय का भाष्य शुष्क, निरर्थक, शुद्ध अर्थ का बोध न करने वाला हैं अपितु भ्रामक भी हैं.
वेदों का पूर्वाग्रह एवं अज्ञानता के कारण अशुद्ध भाष्य करने के बावजूद भी मेक्स मुलर की आत्मा में वेदों में वर्णित सत्य विद्या का कुछ कुछ प्रकाश अपने जीवन के अंतिम वर्षों में हुआ था जिसका उदहारण उन्ही के द्वारा लिखे गए कुछ प्रसंग हैं-
१. “नहीं, प्रत्युत मुझे यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं हैं की उपनिषदों तथा प्राचीन वेदांत दर्शन में प्रकाश की कुछ ऐसे किरणें विद्यमान हैं जो की उन अनेक विषयों पर प्रकाश डालेंगी जो की हमारे ह्रदय के अत्यंत निकट हैं “- सन्दर्भ- Chips from a German Workshop- vol 1 page 55
२. “जिस प्रकार वर्तमान काल का इतिहास अधुरा हैं मध्य युग के इतिहास बिना, मध्यकालीन इतिहास अधुरा हैं बिना रोम के इतिहास के , अथवा रोमे का इतिहास अधुरा हैं बिना यूनान के इतिहास के, इसी प्रकार हम पता करते हैं की इतिहास अधुरा समझा जावेगा बिना आर्य मानवता के उस प्रथम अध्याय (ऋग्वेद) के, जो की हमारे लिए वैदिक साहित्य में सुरक्षित किया गया हैं”- सन्दर्भ- The origin of Religion- page 149
३. भारत के प्राचीन साहित्य की बात कुछ और ही प्रकार हैं…वह साहित्य हमारे लिए मनुष्य जाति की शिक्षा का अध्याय खोल देता हैं जिसका उदहारण हमें कहीं अन्यत्र नहीं मिलता. जो व्यक्ति की अपनी भाषा अर्थात विचारों की उन्नति का सम्मान करता हैं, जो व्यक्ति की धर्म तथा मानवों की सर्वप्रथम वैचारिक अभिव्यक्ति को मान देता हैं, जो व्यक्ति की इन विद्यायों की प्रथम नींव को जानने का प्रथम इच्छुक हैं, जिन्हें की अर्वाचीन काल में ज्योतिष विद्या,चंद, व्याकरण व धातु के नाम से पुकारते हैं, जो व्यक्ति के दार्शनिक विचारों की आरंभिक अभिव्यक्ति को जानना चाहता हैं और साथ ही गृहस्थ, ग्रामीण तथा राजनैतिक जीवन आदि को, धार्मिक रीतियों, पुराण (ब्राह्मण ग्रन्थ) तथा समय के अनुसार चलने के आरंभिक प्रयत्नों को ज्ञात करना चाहता हैं, उसे भविष्य के लिए वैदिक कल के साहित्य पर वही ध्यान केन्द्रित करना चाहिए जो की यूनान, रोम तथा जर्मनी के साहित्य पर किया जाता हैं.सन्दर्भ- India what it can teach us- Max Muller Page 79-80
४. धर्म के सम्बन्ध में भाषा की भांति कहा जा सकता हैं की इसमें प्रत्येक नई बात पुरानी तथा प्रत्येक पुरानी बात नई हैं और की सृष्टि के आदि से कोई भी धर्म सर्वथा नया नहीं निकला- सन्दर्भ- chips from a german workshop-preface page 4
५. आधुनिक युग के लिए केवल एक ही कुंजी हैं अर्थात अतीत काल -सन्दर्भ- chips from a german workshop-page 211
६. संसार का सच्चा इतिहास सदा कुछ व्यक्तियों का ही इतिहास हुआ करता हैं और जिस प्रकार हम हिमालय की ऊंचाई का अनुमान गौरीशंकर पर्वत (everest) से लगाते हैं, उसी प्रकार हमें इंडिया का सच्चा अनुमान वेदवक्ता कवियों, उपनिषदों के ऋषियों, वेदांत व सांख्य दर्शन के रचयिताओं तथा प्राचीन धर्म शास्त्रकारों से लेना चाहिए, न की उन करोरों व्यक्तियों से जो की अपने ग्राम में ही जन्म लेकर मर जाते हैं तथा जो की एक पल के लिए भी अपने ऊँघने से, जीवन के स्वप्न से कभी जागृत ही नहीं हुए- India what it can teach us- Max Muller पेज ७६.
आज संसार में भोग वाद का बोलबाला हो गया हैं , चारों तरफ अशांति,मत मतान्तर के झगडे, आतंकवाद, गरीबी, भूखमरी आदि फैल रहे हैं. इस अशांत मानव जाती को प्रभु के सत्य ज्ञान अर्थात वेद का सहारा मिल जाये तो समस्त मानव जाती का कल्याण हो जायेगा.

डॉ विवेक आर्य


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