सुखी जीवन के सूत्र

सुखी जीवन के सूत्र


★ याद रखिये यदि आपका पैर फिसल जाये तो आप संभल सकते है, परन्तु जुबान फिसल जाये तो यह गहरा घाव कर देती है।


★ समय से पहले और समय पर कार्य करने वालों को समय का कभी अभाव नहीं रहता।


★ जब समय होता है सोचते नहीं, जब सोचते हैं समय  निकल चुका होता है।


★उन्नति उसी की होती है, जो प्रयत्नशील है।


★ जो बीत गई - उसे याद न कर। आने वाली का ख्याला  न कर। वर्तमान को बरबाद न कर।


★क्रोध एक अग्नि है जो दूसरों से पहले हमें स्वयं को - जला देती है।


★ पाप हो, ऐसा कमाओ नहीं, क्लेश हो, ऐसा बोलो नहीं, रोग हो, ऐसा खाओ नहीं।


★ गृहस्थाश्रम भक्ति में बाधक नहीं, साधक है।


★ईश्वर की चक्की धीरे चलती है लेकिन बारीक पीसती है।


★ दुर्लभ कुछ नहीं, केवल दृढ संकल्प चाहिए।


★ दुनिया में रहो लेकिन दुनिया को अपने में न रहने दो।


★ तीखे और कड़वे शब्द कमजोर पक्ष की निशानी है।


★ हृदय मंदिर है उसे जलाना नहीं।


★ बड़ों के अनुभव से लाभ उठाना ही उनका सम्मान करना हैनियम ।


★ व्यक्ति अभाव से नहीं, अपितु दूसरों के प्रभाव से दु:खी है।


★ बदले की भावना है एक दिन की खुशी, माफ करने की भावना है हमेशा का आनन्द, हर पल की प्रसन्नता।


★ वेद पढ़ो, यज्ञ करो। साफ कहो-सुखी रहो।


★ अपने भाईयों से नहीं अपनी बुराईयों से नफरत कीजिये।


★ प्रात:काल जो नियम से, जाये घूमने रोजा बल-बुद्धि दोनों बढ़े, मिटे कब्ज का रोग।


★ जो व्यक्ति दूसरों की बातें आपसे कहता है तो आप निश्चय जानो वह आपकी बात भी दूसरों से कहता होगा किसी से अपने दिल की बात न बताओ।


★ ज्ञानी सज्जन ही आत्मा अथवा परमात्मा के दर्शन करते है।


★ हमने सीखा है पक्षियों की तरह आकाश में उड़ना, हमने सीखा है मछलियों की तरह पानी में तैरना। अब आवश्यकता है कि हम सीख लें मानव की तरह धरती पर चलना।


 ★ जब तुझसे न सुलझे तेरे उलझे हुए धन्धे। भगवान के हाथों में उन्हें सौप दें बन्दे। वो खुद ही तेरी मुश्किलें आसां करेगा। जो तू न कर पाया वो भगवान करेगा।


★ विचार करके काम करना बुद्धिमानी है काम करके विचार करना नादानी है।


★ ईर्ष्या रहती है जहाँ, भक्ति नहीं है वहाँ।


★ अरे कम्प्यूटर बनाने वालों और चलाने वालों खुद अपने भीतर तो देखो तुम्हारे मनरूपी कम्प्यूटर को कौन बनाता है कौन चलाता है, किसने इसको फीट किया? किसने इसको रीड किया।


★ इच्छाओं को वश में करना देवताओं का गुण है और इच्छाओं के वश में हो जाना पशुपन है।


★प्रभु की ओर से जो विपत्ति हम पर आती है वह हमारे कल्याण के लिए ही आती है। विपत्ति से घबरा जाना सबसे बड़ी विपत्ति है।


★हे मानव! यदि तू उसकी भक्ति नहीं करना चाहता तो उसकी बनाई वस्तुओं का प्रयोग तथा उपभोग भी न कर ।


★ पशु अपने मालिक को पहचानता है किन्तु आश्चर्य है इन्सान अपने मालिक को नहीं पहचानता।


★ परमात्मा उसका भला करे जो मेरे दोषों का ज्ञान कराता है।


★ जो वस्तु सन्तान के लिए बाजार से घर लाओ, पहले लड़की को दो पुनः लड़के को।


★ जो नम्रता से शून्य है वे नेकी से भी शून्य है। * जो पाप की कमाई खाता है वह अन्त में दुःख पाता है


★ जर (धन), जोरू (स्त्री), जमीन (धरती), जबान (वाणी), जोर (शक्ति) पाँच विवाद के कारण है।


★ आलस्य को, आराम को, गुस्से को परदेश में छोड़ देवें।


★ ऋण लेकर न लौटाने वाले, गुणी जनों को दोष लगाने वाले , माता-पिता-गुरू की सेवा न करने वाले और बिना बात क्रोध करने वाले चाण्डाल होते है।


★ विचार कर काम करने से, विचार कर बोलने से सदा संतोष से, सुख मिलता है।


★ सत्य, सेवा, सादगी, संतोष, सदाचार, स्वाध्याय एवं समानता के सप्त सुमन पूर्ण सुख तथा शान्ति देने वाले है।


★जिस प्रकार समुद में बहकर आते हुए दो लकड़ी के टुकड़े कभी आपस में मिल जाते है तो कभी बिछुड़ जाते हैं। इसी प्रकार संसार सागर में अनायास सब प्राणियों का मिलना और बिछुड़ना होता है।


★ कोयल काको देत है, कागा काको लेत तुलसी मीठे वचन से, जग अपना कर लेत।


★ रहिमन जिह्वा बावरी कह गई सरग पाताल। आपहु तो कह भीतर रही जूती खात कपाल।।


★ ज्यों तिरिया पीहर बसे, सुर रखे पिय माहि। ऐसे ही जग में रहें, हरि को कभी भूले नाहि।।     


 


 


 


 


 


 


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