सुख-शांति का स्थान

सुख-शांति का स्थान



      सुख तो मिलता है दूसरों को प्रसन्न करने से और वह भी या तो अपना व्यवहार अच्छी हो या दूसरे की दया हो। बच्चे को अपने आप सुख कभी नहीं मिल सकता, माता-पिता की दया से मिलता है । शिष्य अपने गुरु से, गृहस्थी अपने गृहस्थ-स्त्री पुरुष से, और पुरुष स्त्री से, और साधारणतः सब लोग एक दूसरे के अच्छे व्यवहार से सुख पाते हैं । सुख अकेले को नहीं, अकेलेपन से नहीं मिल सकता । एवं शांति मिलती है-एकांत से । दूसरों के संसर्ग से शांति नहीं मिला करती। इसलिये शांति का स्थान एकांत है। संसार में विषयों का राज्य है और एकांत में विषयों से पृथक्ता । राग-द्वेष से पृथक्ता का नाम एकान्त है । जंगल में कुटिया या पर्वत एकांत स्थान हैं। वे बाहर का नमूना है और राग-द्वेष विषयों से वास्तविक 'पृथक्ता' ही मन का एकांत स्थान है। आत्मा जब मन के एकांत स्थान में आ ठहरती है तो शांति ही शांति पाती है । जिसका मन एकांत हो जाए, वह चाहे नगर में भी रहे तो भी शांत रहेगा। परन्तु जंगल, कुटिया,पर्वत आदि के एकांत स्थान में प्रकृति बड़ी सहायता करती है। क्योंकि वे स्थान प्रकृति स्वयं बनाती है और नगर मनुष्यों के विचारों और मस्तिष्कों के बने हुए हैं।


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