सुख और दुख


       जैसे नदी के दो किनारे होते हैं, ऐसे ही जीवन रूपी नदी के भी सुख तथा दुख, ये दो किनारे हैं। नदी का पानी कभी इस किनारे को छूता है, कभी उस किनारे को। 
      इसी तरह से जीवन का प्रवाह भी कभी सुख रूपी किनारे को छूता है, और कभी दुख रूपी किनारे को।
      जब जीवन में सुख आता है, कुछ संपत्तियाँ  प्राप्त होती हैं, तो प्रायः लोग अभिमान में आ जाते हैं, सुख प्राप्त होने पर अभिमानी हो जाते हैं, तो समझ लीजिए, वे अपनी जीवन परीक्षा में फेल हो गए।
      जो लोग सुख आने पर अभिमान नहीं करते, नम्रता सभ्यता सेवा परोपकार दान आदि गुणों को अपने अंदर बनाए रखते हैं, और न्याय पूर्वक जीवन को जीते हैं, वे इस परीक्षा में सफल हो जाते हैं।,
      इसी प्रकार से दुख आने पर भी एक परीक्षा होती है। जब व्यक्ति के जीवन में दुख आता है, तो वह अपना धैर्य सहनशीलता आदि उत्तम गुणों को खो देता है। तब भी समझना चाहिए, कि वह इस जीवन परीक्षा में फेल हो गया।
      जो लोग दुख आने पर घबराते नहीं, धैर्य सहनशीलता नम्रता आदि गुणों को तब भी बनाए रखते हैं, तो समझना चाहिए वे निश्चित रूप से अपनी जीवन परीक्षा में पास हो गए।  इसलिए दोनों प्रकार की तैयारी करें। सुख आए, तो अभिमान से बचें। और दुख आए, तो घबराएँ नहीं, धैर्य बनाए रखें। आपको दोनों परीक्षाओं में पास होना है।


- स्वामी विवेकानंद परिव्राजक


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