सूफियों द्वारा भारत का इस्लामीकरण
सूफियों द्वारा भारत का इस्लामीकरण
प्राय: हिन्दू समाज में यही माना जाता है कि हिंदुस्तान में जितने भी मुस्लमान सूफी, फकीर और पीर आदि हुए हैं, वे सभी उदारवादी थे। हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे। वे भारतीय दर्शन और ध्यान योग की उपज थे। मगर यह एक भ्रान्ति है। भारत देश पर इस्लामिक आकर्मण दो रूपों में हुआ था। प्रथम इस्लामिक आक्रमणकर्ताओं द्वारा एक हाथ में तलवार और एक में क़ुरान लेकर भारत के शरीर और आत्मा पर जख्म पर जख्म बनाते चले गए। दूसरा सूफियों द्वारा मुख में भजन, कीर्तन, चमत्कार के दावे और बगल में क़ुरान दबाये हुए पीड़ित भारतीयों के जख्मों पर मरहम लगाने के बहाने इस्लाम में दीक्षित करना था। सूफियों को इस्लाम में दीक्षित करने वाली संस्था कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस लेख में हम ऐतिहासिक प्रमाणों के माध्यम से यह जानेंगे की सूफियों द्वारा भारत का इस्लामीकरण किस प्रकार किया गया।
सूफियों के कारनामें
हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन कर उन्हें मुसलमान बनाने के लिए सूफियों ने साम-दाम, दंड-भेद की नीति से लेकर तलवार उठाने तक सभी नैतिक और अनैतिक तरीकों का भरपूर प्रयोग किया।
1. शाहजहाँ की मुल्ला मुहीबीब अली सिन्धी नामक सूफी आलिम से अभिन्नता थी। शाहजहाँ ने इस सूफी संत को हिन्दुओं को इस्लाम में दीक्षित करने की आज्ञा दी थी[i]।
2. सूफी कादरिया खानकाह के शेख दाऊद और उनके शिष्य शाह अब्दुल माली के विषय में कहा जाता है कि वे 50 से 100 हिन्दुओं को इस्लाम में दीक्षित करते थे[ii]।
3.सूफी शेख अब्दुल अज़ीज़ द्वारा अनेक हिन्दुओं को इस्लाम में दीक्षित किया गया[iii]।
4. सूफी मीरान भीख के जीवन का एक प्रसंग मिलता है। एक हिन्दू जमींदार बीरबर को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई। उसने सूफी मीरान भीख से सजा मांफी की गुहार लगाई। सूफी ने इस्लाम कबूल करने की शर्त लगाई। हिन्दू बीरबर मुसलमान बन गया। सूफी ने इस्लाम की सेवा में उसे रख लिया[iv]।
5. दारा शिकोह के अनुसार सूफी शेख अब्दुल क़ादिर द्वारा अनेक हिन्दुओं को मुसलमान बनाया गया[v]।
6. मीर सैय्यद अली हमदानी द्वारा कश्मीर का बड़े पैमाने पर इस्लामीकरण किया गया। श्रीनगर के काली मंदिर को तोड़कर उसने अपनी खानकाह स्थापित करी थी। हिन्दू ब्राह्मणों को छलने के लिए हमदानी के शिष्य नूरुद्दीन ने नुंद ऋषि के नाम से अपने को प्रसिद्द कर लिया। नूरुद्दीन ने श्रीनगर की प्रसिद्द हिन्दू उपासक लाल देह के हिन्दू रंग में अपने को पहले रंग लिया। फिर उसके उपासकों को प्रभावित कर इस्लाम में दीक्षित कर दिया। उसके मुख्य शिष्यों के नाम बामुद्दीन, जैनुद्दीन, लतीफुद्दीन आदि रख दिया।ये सभी जन्म से ब्राह्मण थे[vi]।
सूफियों द्वारा इस्लाम की सेवा करने के लिए मुस्लिम शासकों को हिन्दुओं पर अत्याचार करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। जिससे हिन्दू तंग आकर इस्लाम ग्रहण कर ले।
1. अल्तमश द्वारा नियुक्त सुहरावर्दी ख़लीफ़ा सैय्यद नूरुद्दीन मुबारक ने इस्लाम की सेवा के लिए
- शरिया लागु करना।
-मूर्तिपूजा और बहुदेवतावाद को कुफ्र घोषित करना।
-मूर्तिपूजक हिन्दुओं को प्रताड़ित करना।
-हिन्दुओं विशेष रूप से ब्राह्मणों को दंड देना।
-किसी भी उच्च पद पर किसी भी हिन्दू को न आसीन करना[vii]।
2. बंगाल के सुल्तान गियासुद्दीन आज़म को फिरदवासिया सूफी शेख मुज्जफर ने पत्र लिख कर किसी भी काफिर को किसी भी सरकारी उच्च पद पर रखने से साफ़ मना किया। शेख ने कहा इस्लाम के बन्दों पर कोई काफिर हुकुम जारी न कर सके। ऐसी व्यवस्था करे। इस्लाम, हदीस आदि में ऐसे स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं[viii]।
3. मीर सैय्यद अली हमदानी द्वारा कश्मीर के सुलतान को हिन्दुओं के सम्बन्ध में राजाज्ञा लागु करने का परामर्श दिया गया था। इस परामर्श में हिन्दुओं के साथ कैसा बर्ताव करे। यह बताया गया था।
-हिन्दुओं को नए मंदिर बनाने की कोई इजाजत न हो।
-हिन्दुओं को पुराने मंदिर की मरम्मत की कोई इजाजत न हो।
-मुसलमान यात्रियों को हिन्दू मंदिरों में रुकने की इजाज़त हो।
- मुसलमान यात्रियों को हिन्दू अपने घर में कम से कम तीन दिन रुकवा कर उनकी सेवा करे।
-हिन्दुओं को जासूसी करने और जासूसों को अपने घर में रुकवाने का कोई अधिकार न हो।
-कोई हिन्दू इस्लाम ग्रहण करना चाहे तो उसे कोई रोकटोक न हो।
-हिन्दू मुसलमानों को सम्मान दे एवं अपने विवाह में आने का उन्हें निमंत्रण दे।
-हिन्दुओं को मुसलमानों जैसे वस्त्र पहनने और नाम रखने की इजाजत न हो।
-हिन्दुओं को काठी वाले घोड़े और अस्त्र-शस्त्र रखने की इजाजत न हो।
-हिन्दुओं को रत्न जड़ित अंगूठी पहनने का अधिकार न हो।
-हिन्दुओं को मुस्लिम बस्ती में मकान बनाने की इजाजत न हो।
-हिन्दुओं को मुस्लिम कब्रिस्तान के नजदीक से शव यात्रा लेकर जाने और मुसलमानों के कब्रिस्तान में शव गाड़ने की इजाजत न हो।
-हिन्दुओं को ऊँची आवाज़ में मृत्यु पर विलाप करने की इजाजत न हो।
-हिन्दुओं को मुस्लिम गुलाम खरीदने की इजाजत न हो।
मेरे विचार से इससे आगे कुछ कहने की आवश्यता ही नहीं है[ix]।
4. सूफी शाह वलीउल्लाह द्वारा दिल्ली के सुल्तान अहमद शाह को हिन्दुओं को उनके त्योहार बनाने से मना किया गया। उन्हें होली बनाने और गंगा स्नान करने से रोका जाये। सुन्नी फिरके से सम्बंधित होने के कारण सूफी शाह वलीउल्लाह द्वारा शिया फिरके पर पाबन्दी लगाने की सलाह दी गई। शिया मुसलमानों को ताजिये निकालने और छाती पीटने पर पाबन्दी लगाने की सलाह दी गई[x]।
5. मीर मुहम्मद सूफी और सुहा भट्ट की सलाह पर कश्मीर के सुल्तान सिकंदर ने अनंतनाग,मार्तण्ड, सोपुर और बारामुला के प्राचीन हिन्दुओं के मंदिरों को नष्ट कर दिया। हिन्दुओं पर जज़िया कर लगाया गया। कश्मीरी हिन्दू ब्राह्मणों को सरकारी पदों से हटाकर ईरान से मौलवियों को बुलाकर बैठा दिया गया[xi]।
सूफियों द्वारा हिन्दू मंदिरों का विनाश।
इतिहास में अनेक उदहारण मिलते हैं जब सूफियों ने अनेक हिन्दू मंदिरों का स्वयं विध्वंश किया अथवा मुस्लिम शासकों को ऐसा करने की प्रेरणा दी।
1. सूफी मियां बयान अजमेर में ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के समीप रहता था। गुजरात से बहादुर शाह जब अजमेर आया तो सूफी मियां उससे मिले। उस समय राजगद्दी को लेकर गुजरात में अनेक मतभेद चल रहे थे। मियां ने बहादुर शाह की खूब आवभगत करी और उसे अजमेर को राजपूत काफिरों से मुक्त करने की गुजारिश करी। बाद में शासक बनने पर बहादुर शाह ने अजमेर पर हमला कर दिया। हिन्दू मंदिरों का सहार कर उसने अपने वायदे को निभाया[xii]।
2. लखनौती बंगाल में रहने वाले सुहरावर्दी शेख जलालुद्दीन ने उत्तरी बंगाल के देवताला (देव महल) में जाकर एक विशाल मंदिर का विध्वंश कर उसे पहले खानकाह में तब्दील किया फिर हज़ारों हिन्दू और बुद्धों को इस्लाम में दीक्षित किया[xiii]।
सूफियों द्वारा हिन्दू राज्यों पर इस्लामिक शासकों द्वारा हमला करने के लिए उकसाना
1. चिश्ती शेख नूर क़ुतुब आलम ने बंगाल के दिनाजपुर के राजा गणेश की बढ़ते शासन से क्षुब्ध होकर जौनपर के इस्लामिक शासक सुल्तान इब्राहिम शाह को हमला करने के लिए न्योता दिया। गणेश राजा ने भय से अपने बेटे को इस्लाम काबुल करा अपनी सत्ता बचाई[xiv]।
2. शेख गौस द्वारा ग्वालियर के किले को जितने में बाबर की सहायता करी गई थी[xv]।
3. शेख अहमद शाहिद द्वारा नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस में हज़ारों अनुयाइयों को नमाज पढ़ने के बाद सिखों के राज को हटाने के लिए इस्लाम के नाम पर रजामंद किया गया[xvi]।
सूफियों का हिन्दुओं के प्रति सौतेला व्यवहार
हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक के नाम से प्रसिद्द सूफियों का हिन्दुओं के प्रति व्यवहार मतान्ध और संकुचित सोच वाला था।
1. सूफी वलीउल्लाह का कहना था की मुसलमानों को हिन्दुओं के घरों से दूर रहना चाहिए जिससे उन्हें उनके घर के चूल्हे न देखने पड़े[xvii]। यही वलीउल्लाह सुल्तान मुहम्मद गजनी को खिलाफत-ए-खास के बाद इस्लाम का सबसे बड़ा शहंशाह मानता था। उसका कहना था की मुहम्मद के इतिहासकारों ने नहीं पहचाना की मुहम्मद गजनी की जन्मपत्री मुहम्मद साहिब से मिलती थी इसीलिए उसे जिहाद में आशातीत सफलता प्राप्त हुई[xviii]। हिन्दुओं पर अथाह अत्याचार करने वाले ग़जनी की प्रसंशा करने वाले को क्या आप हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक मानना चाहेंगे?
2. सूफी सुहरावर्दी शेख जलालुद्दीन द्वारा अल्लाह को हिन्दुओं द्वारा ठाकुर, धनी और करतार जैसे शब्दों का प्रयोग करने से सख्त विरोध था[xix]।
इस लेख के माध्यम से हमने भारत वर्ष के पिछले 1200 वर्षों के इतिहास में से सप्रमाण कुछ उदहारण दिए है जिनसे यह सिद्ध होता हैं सूफियों का मूल उद्देश्य भारत का इस्लामीकरण करना था। अजमेर के ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती, दिल्ली के निजामुद्दीन औलिया, बहराइच के सालार गाज़ी मियां के विषय में कब्र पूजा: मूर्खता अथवा अन्धविश्वास नामक लेख में विस्तार से प्रकाश डाला जायेगा। आशा है इस लेख को पढ़कर पाठकों की इस भ्रान्ति का निवारण हो जायेगा की सूफी संतों का कार्य शांति और भाईचारे का पैगाम देना था।