श्रीराम का बाली को मारना🌷*

कुछ आलोचक श्रीराम द्वारा बाली को छिपकर मारने को राम जीवन का एक कलंक बताते हैं,परन्तु श्रीराम ने जो कुछ किया राजनीतिक दृष्टिकोण से वह सर्वथा उचित ही था।बालि-वध श्रीराम की एक बहुत बड़ी राजनीतिक विजय थी।

बालि और रावण परस्पर मित्र थे।वे दोनों अग्नि को साक्षी कर सन्धि सूत्र में आबद्ध हुए थे।दोनों ने परस्पर यह प्रतिज्ञा की थी कि यदि कोई व्यक्ति किष्किन्धा की और से रावण पर आक्रमण करेगा तो बाली उसे रोकेगा और यदि कोई शत्रु लंका की और से बाली पर आक्रमण करेगा तो रावण उसकी सहायता करेगा।

यदि श्रीराम रावण पर आक्रमण करते तो निश्चित रुप से बाली श्रीराम से युद्ध करता।ऐसी अवस्था में रावण से लोहा लेने से पूर्व बाली से ही युद्ध छिड़ जाता।अतः
श्रीराम ने सुग्रीव से मैत्री करके पहले बाली को समाप्त करना ही उचित समझा।
बाली को छिपकर मारना भी श्रीराम की दूरदर्शिता का परिचायक है।यदि श्रीराम
बाली के साथ घोषणापूर्वक युद्ध करते तो जिस सेना से उन्हें रावण के साथ युद्ध करना था उसका एक भाग तो यहीं समाप्त हो जाता।अतः श्रीराम ने घोषणापूर्वक युद्ध न करके केवल बाली का ही वध किया।

सीता को शीघ्र ही खोजना आवश्यक था।बाली से युद्ध होने पर पता नहीं कितना समय लग जाता और साथ ही साथ युद्ध में जय और जीत किसकी होगी यह भी निश्चित रुप से नहीं कहा जा सकता था।

इन्हीं सब कारणों से श्रीराम ने बिना व्यर्थ के रक्तपात के केवल बाली को मारकर अपना मार्ग साफ कर लिया।यह श्रीराम की युद्धचातुरी का ज्वलत उदाहरण है।
श्रीराम ने बाली को पहली बार नहीं मारा।उसे सोचने-समझने और सुग्रीव से मेल करने का अवसर दिया।परन्तु वह नहीं माना।दूसरी बार अपना चिन्ह देकर सावधान किया कि सुग्रीव मेरे आश्रित हो चुका है परन्तु फिर भी बाली नहीं माना और सुग्रीव के प्राण लेने पर उतारु हो गया।तब श्रीराम ने अपने मित्र को मृत्युपाश से बचाने के लिए बाली का वध किया।अतः बाली को छिपकर मारने में श्रीराम पर कोई दोष नहीं आता।

आजकल भी खाई आदि में छिपकर युद्ध होता है।यदि आजकल खाई में छिपकर छल,कपट और धोखे से शत्रु को मारना उचित है तो श्रीराम द्वारा बाली-वध को अनुचित कैसे कहा जा सकता है?

एक बात और।बाली आततायी था।'वशिष्ठ-स्मृति' के अनुसार आततायी का लक्षण निम्नलिखित है―

*अग्निदो गरदश्चैव शस्त्रपाणिर्धनापहः ।*
*क्षेत्रदारहरश्चैव षडेते आततायिनः ।।-(वशिष्ठ-स्मृति ३/१९)*

आग लगाने वाला,विष देने वाला,हाथ में शस्त्र लेकर निरपराधों की हत्या करने वाला,दूसरों का धन छीनने वाला,पराया-खेत छीनने वाला,पर-स्त्री का हरण करने वाला-ये छह आततायी हैं।

ऐसे आततायी के वध के लिए मनुजी का आदेश है―

*गुरुं वा बालवृद्धौ वा ब्राह्मणं वा बहुश्रुतम् ।*
*आततायिनमायान्तं हन्यादेवाविचारयन् ।।--(मनु० ८/३५०)*

आततायी को चाहे वह गुरु हो या बालक,वृद्ध हो या बहुश्रुत-ब्राह्मण, बिना सोचे शीघ्र मार देना चाहिये।

बाली ने सुग्रीव की स्त्री का अपहरण किया था,अतः वह आततायी था और राम द्वारा उसका वध सर्वथा उचित था।

कुछ लोगों का विचार ऐसा है कि जो व्यक्ति बाली के सम्मुख होकर युद्ध करता था उसकी आधी शक्ति बाली में चली जाती थी,अतः बाली सम्मुख होकर युद्ध करने वाले व्यक्तियों को परास्त कर दिया करता था।श्रीराम इस बात को जानते थे,अतः उन्होंने बाली को छीपकर मारा।यह विचार बिल्कुल अशुद्ध है।बाल्मीकि रामायण में इसका समर्थन नहीं होता।

भूपेश आर्य


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