श्री राम द्वारा वनवास के दौरान भरत को नीतिगत उपदेश


        जब भरत राम को वन से अयोध्या लौटाने के लिए वन में गए तो श्री राम ने कुशल प्रश्न के बहाने भरत को राजनीति का उपदेश दिया, वह प्रत्येक राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री के लिए सदैव स्मरणीय व अनुकरणीय है। प्रभु राम भरत से पूछते हैं –


1. क्या तुम सहस्रों मूर्खो के बदले एक विद्वान के कथन को अधिक महत्त्व देते हो ?


2. क्या तुम जो व्यक्ति जिस कार्य के योग्य है उससे वही काम लेते हो ?


3. तुम्हारे कर्मचारी बाहर भीतर पवित्र है न ? वे किसी से घूस तो नहीं लेते ?


4. यदि धनी और निर्धन में विवाद हो, और वह विवाद न्यायालय में विचाराधीन हो, तो तुम्हारे मंत्री धन के लोभ में आकर उसमे हस्तक्षेप तो नहीं करते ?


5. तुम्हारे मंत्री और राजदूत अपने ही देश के वासी अर्थात अपने देश में उत्पन्न हुए हैं न ?


6. क्या तुम अपने कर्मचारियों को उनके लिए नियत वेतन व भत्ता समय पर देते हो ? देने में विलम्ब तो नहीं करते ?


7. क्या राज्य की प्रजा कठोर दंड से उद्विग्न होकर तुम्हारे मंत्रियो का अपमान तो नहीं करती ?


8. तुम्हारा व्यय कभी आय से अधिक तो नहीं होता ?


9. कृषि और गौपालन से आजीविका चलाने वाले लोग तुम्हारे प्रीतिपात्र है न ? क्योंकि कृषि और व्यापार में संलग्न रहने पर ही राष्ट्र सुखी रह सकता है।


10. क्या तुम वेदो की आज्ञा के अनुसार काम करने में सफल रहते हो ?


11. मिथ्या अपराध के कारण दण्डित व्यक्तियों के जो आंसू गिरते हैं, वे अपने आनंद के लिए शासन करने वाले राजा के पुत्र और पशुओ का नाश कर डालते हैं। मर्यादा पुरोषत्तम राम दिग्विजयी थे, किन्तु सम्राज्य्वादी नहीं। कालिदास ने रघुवंश में रघुकुल की परंपरा का विवेचन करते हुए लिखा है – “आदानं हि विसर्गाय सतां वारिमुचामिव” अर्थात जिस प्रकार मेघ पृथ्वी से जल लेकर वर्षा द्वारा उसी को लौटा देते हैं, उसी प्रकार सत्पुरुषों का लेना भी देने = लौटाने के लिए होता है। इसी नीति का अनुसरण करते हुए बाली से किष्किन्धा का राज्य जीत कर, अपने राज्य में न मिला कर, उसके भाई सुग्रीव को दे दिया और लंका पर विजय प्राप्त करके उसका राज्य रावण के भाई विभीषण को सौंप दिया। मित्रो इस देश में ऐसे ही महापुरष उत्पन्न होते आये हैं, महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान, रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, वीर शिवाजी आदि अनेक उदहारण अभी हाल के ही हैं, फिर ये अकबर गौरी – जैसे चोर, डाकू, लुटेरे, कैसे इस देश में महान हो गए ?



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