श्री कृष्ण के विषय में अन्य विचार

योगिराज धर्म संस्थापक श्रीकृष्ण के जीवन चरित्र में कहीं भी कलंक नहीं है। वे संदीपनी ऋषि के आश्रम में शिक्षा दीक्षा लिए तो रास लीला रचाने गोपियो और राधा के बीच कब आ गए ?। श्री कृष्ण जी वेदों और योग के ज्ञाता थे।


श्री कृष्ण जी सम्पूर्ण ऐश्वर्य के स्वामी थे, दयालु थे, योगी थे, वेदांग के ज्ञाता थे। वेद ज्ञाता न होते तो विश्वप्रसिद्ध "गीता का उपदेश " न देते।
जो श्री कृष्ण जी मात्र एक विवाह रुक्मिणी से किये और विवाह पश्चात् भी 12 वर्षों तक ब्रह्मचर्य का पालन किया । तत्पश्चात प्रद्युम्न नाम का पुत्र रत्न प्राप्त हुआ। ऐसे योगी महापुरुष को रास लीला रचाने वाले छलिया चूड़ी बेचने वाला 16 हजार शादिया करने वाला आदि लांछन लगाते शर्म आनी चाहिए।


योगेश्वर कृष्ण की एकमात्र पत्नी का नाम माता रूकमणी और एक मात्र पुत्र का नाम प्रद्युमन था। राधा का नाम केवल पुराणों में आता है। सम्पूर्ण महाभारत में केवल कर्ण का पालन करने वाली माँ राधा को छोड़कर इस काल्पनिक राधा का नाम कही नहीं है, भागवत् पुराण में श्रीकृष्ण की बहुत सी लीलाओं का वर्णन है, पर यह राधा वहाँ भी नहीं है । राधा का वर्णन मुख्य रूप से ब्रह्मवैवर्त पुराण में आया है । यह पुराण वास्तव में कामशास्त्र है, जिसमें श्रीकृष्ण राधा आदि की आड़ में लेखक ने अपनी काम पिपासा को शांत किया है, पर यहाँ भी मुख्य बात यह है कि इस एक ही ग्रंथ में श्रीकृष्ण के राधा के साथ भिन्न-भिन्न सम्बन्ध दर्शाये हैं, जो स्वतः ही राधा को काल्पनिक सिद्ध करते हैं ।


देखिये- ब्रह्मवैवर्त पुराण ब्रह्मखंड के पाँचवें अध्याय में श्लोक 25, 26 के अनुसार राधा को कृष्ण की पुत्री सिद्ध किया है । क्योंकि वह श्रीकृष्ण के वामपार्श्व से उत्पन्न हुई बताया है ।


ब्रह्मवैवर्त पुराण प्रकृति खण्ड अध्याय 48 के अनुसार राधा कृष्ण की पत्नी (विवाहिता) थी, जिनका विवाह ब्रह्मा ने करवाया ।


इसी पुराण के प्रकृति खण्ड अध्याय 49 श्लोक 35, 36, 37, 40, 47 के अनुसार राधा श्रीकृष्ण की मामी थी । क्योंकि उसका विवाह कृष्ण की माता यशोदा के भाई रायण के साथ हुआ था । गोलोक में रायण श्रीकृष्ण का अंशभूत गोप था । अतः गोलोक के रिश्ते से राधा श्रीकृष्ण की पुत्रवधु हुई ।


क्या ऐसे ग्रंथ और ऐसे व्यक्ति को प्रमाण माना जा सकता है?


हिन्दी के कवियों ने भी इन्हीं पुराणों को आधार बनाकर भक्ति के नाम पर शृंगारिक रचनाएँ लिखी हैं । ये लोग महाभारत के कृष्ण तक पहुँच ही नहीं पाए । जो पराई स्त्री से तो दूर, अपनी स्त्री से भी बारह साल की तपस्या के बाद केवल संतान प्राप्ति हेतु समागम करता है, जिसके हाथ में मुरली नहीं, अपितु दुष्टों का विनाश करने के लिए सुदर्शन चक्र था, जिसे गीता में योगेश्वर कहा गया है । जिसे दुर्योधन ने भी *पूज्यतमों लोके* (संसार में सबसे अधिक पूज्य) कहा है, जो आधा पहर रात्रि शेष रहने पर उठकर ईश्वर की उपासना करता था, युद्ध और यात्रा में भी जो निश्चित रूप से संध्या करता था । जिसके गुण, कर्म, स्वभाव और चरित्र को ऋषि दयानन्द ने आप्तपुरुषों के सदृश बताया, बंकिम बाबू ने जिसे सर्वगुणान्ति और सर्वपाप रहित आदर्श चरित्र लिखा, जो धर्मात्मा की रक्षा के लिए धर्म और सत्य की परिभाषा भी बदल देता था ।


दुर्योधन - यह मैं अच्छी प्रकार जानता हूं कि तीनों लोकों में इस समय यदि कोई सर्वाधिक पूज्य व्यक्ति है तो वह विशाल-लोचन श्रीकृष्ण हैं।-(महाभारत उद्योगपर्व ८८/५)


धृतराष्ट्र - श्रीकृष्ण अपने यौवन में कभी पराजित नहीं हुए । उनमें इतने विशिष्ट गुण हैं कि उनकी परिगणना करना सम्भव नहीं है।-(महा० द्रोणपर्व १८)


भीष्म पितामह - श्रीकृष्ण द्विजातीयों में ज्ञानवृद्ध तथा क्षत्रियों में सर्वाधिक बलशाली हैं। पूजा के ये दो ही मुख्य कारण होते हैं जो दोनों श्रीकृष्ण में विद्यमान हैं। वे वेद-वेदांग के अद्वितीय पण्डित तथा बल में सबसे अधिक हैं दान,दया,बुद्धि, शूरता,शालीनता, चतुराई,नम्रता,तेजस्विता,धैर्य,सन्तोष-इन गुणों में केशव से अधिक और कौन है ?-(महा० सभा० ३८/१८-२०)


वेदव्यास - श्रीकृष्ण इस समय मनुष्यों में सबसे बड़े धर्मात्मा,धैर्यवान् तथा विद्वान् हैं।-(महा० उद्योग० अध्याय ८३)


अर्जुन- हे मधुसूदन ! आप गुणों के कारण 'दाशार्ह' हैं।आपके स्वभाव में क्रोध,मात्सर्य,झूठ,निर्दयता एवं कठोरतादि दोषों का अभाव है।-(महा० वनपर्व० १२/३६)


युधिष्ठिर - हे यदुवंशियों में सिंहतुल्य पराक्रमी श्रीकृष्ण ! हमें जो यह पैतृक राज्य फिर प्राप्त हो गया है यह सब आपकी कृपा,अद्भुत राजनीति,अतुलनीय बल,लोकोत्तर बुद्धि-कौशल तथा पराक्रम का फल है। इसलिए हे शत्रुओं का दमन करने वाले कमलनेत्र श्रीकृष्ण ! आपको हम बार-बार नमस्कार करते हैं।-(महा० शान्तिपर्व ४३)


बंकिमचन्द्र - उनके(श्रीकृष्ण)-जैसा सर्वगुणान्वित और सर्वपापरहित आदर्श चरित्र और कहीं नहीं है,न किसी देश के इतिहास में और न किसी काल में।-(कृष्णचरित्र)


चमूपति- हमारा अर्घ्य उस श्रीकृष्ण को है,जिसने युधिष्ठिर के अश्वमेध में अर्घ्य स्वीकार नहीं किया। साम्राज्य की स्थापना फिर से कर दी,परन्तु उससे निर्लेप,निस्संग रहा है। यही वस्तुतः योगेश्वर श्रीकृष्ण का योग है। -(योगेश्वर कृष्ण,पृष्ठ ३५२)


स्वामी दयानन्द - देखो ! श्रीकृष्णजी का इतिहास महाभारत में अत्युत्तम है।उनका गुण-कर्म-स्वभाव और चरित्र आप्त पुरुषों के सदृश है,जिसमें कोई अधर्म का आचरण श्रीकृष्ण जी ने जन्म से लेकर मरण-पर्यन्त बुरा काम कुछ भी किया हो,ऐसा नहीं लिखा।


लाला लाजपत राय ने अपने श्रीकृष्णचरित में श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में एक बड़ी विचारणीय बात लिखी है - "संसार में महापुरुषों पर उनके विरोधियों ने अत्याचार किये,परन्तु श्रीकृष्ण एक ऐसे महापुरुष हैं जिन पर उनके भक्तों ने ही बड़े लांछन लगाये हैं। श्रीकृष्णजी भक्तों के अत्याचार के शिकार हुए हैं व हो रहे हैं। "आज श्रीकृष्ण के नाम पर 'बालयोगेश्वर' 'हरे कृष्ण हरे राम' सम्प्रदाय,राधावल्लभ मत और न जाने कितने-कितने अवतारों और सम्प्रदायों का जाल बिछा है,जिसमें श्रीकृष्ण को भागवत के आधार पर 'चौरजार-शिखामणि' और न जाने कितने ही 'विभूषणों' से अलंकृत करके उनके पावन-चरित्र को दूषित करने का प्रयत्न किया है। कहाँ महाभारत में शिशुपाल-जैसा उनका प्रबल विरोधी,परन्तु वह भी उनके चरित्र के सम्बन्ध में एक भी दोष नहीं लगा सका और कहाँ आज के कृष्णभक्त जिन्होंने कोई भी ऐसा दोष नहीं छोड़ा जिसे कृष्ण के मत्थे न मढ़ा हो! क्या ऐसे 'दोषपूर्ण' कृष्ण किसी भी जाति,समाज या राष्ट्र के आदर्श हो सकते हैं?
श्री कृष्ण जी के विषय में चोर, गोपिओं का जार (रमण करने वाला), कुब्जा से सम्भोग करने वाला, रणछोड़ आदि प्रसिद्द करना उनका अपमान नहीं तो क्या हैं ?


श्री कृष्ण जी के चरित्र के विषय में ऐसे मिथ्या आरोप का आधर क्या हैं?


ईन गंदे आरोपों का आधार हैं पुराण !


आनंदमठ एवं वन्दे मातरम के रचियता बंकिम चन्द्र चटर्जी जिन्होंने ३६ वर्ष तक महाभारत पर अनुसन्धान कर श्री कृष्ण जी महाराज पर उत्तम ग्रन्थ लिखा ने कहाँ हैं की महाभारत के अनुसार श्री कृष्ण जी की केवल एक ही पत्नी थी जो की रुक्मणी थी, उनकी २ या ३ या १६००० पत्नियाँ होने का सवाल ही पैदा नहीं होता । रुक्मणी से विवाह के पश्चात श्री कृष्ण रुक्मणी के साथ बदरिक आश्रम चले गए और १२ वर्ष तक तप एवं ब्रहमचर्य का पालन करने के पश्चात उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम प्रदुमन था । यह श्री कृष्ण के चरित्र के साथ अन्याय हैं की उनका नाम १६००० गोपियों के साथ जोड़ा जाता हैं । महाभारत के श्री कृष्ण जैसा अलोकिक पुरुष , जिसे कोई पाप नहीं किया और जिस जैसा इस पूरी पृथ्वी पर कभी-कभी जन्म लेता हैं । स्वामी दयानद जी सत्यार्थ प्रकाश में वहीँ कथन लिखते हैं जैसा बंकिम चन्द्र चटर्जी ने कहाँ हैं । पांड्वो द्वारा जब राजसूर्य यज्ञ किया गया तो श्री कृष्ण जी महाराज को यज्ञ का सर्वप्रथम अर्घ प्रदान करने के लिए सबसे ज्यादा उपर्युक्त समझा गया जबकि वहां पर अनेक ऋषि मुनि , साधू महात्मा आदि उपस्थित थे । वहीँ श्री कृष्ण जी महाराज की श्रेष्ठता समझे की उन्होंने सभी आगंतुक अतिथियो के धुल भरे पैर धोने का कार्य भार लिया ।


श्री कृष्ण जी महाराज को सबसे बड़ा कूटनितिज्ञ भी इसीलिए कहा जाता हैं क्यूंकि उन्होंने बिना हथियार उठाये न केवल दुष्ट कौरव सेना का नाश कर दिया बल्कि धर्म की राह पर चल रहे पांडवो को विजय भी दिलवाई ।


ऐसे महान व्यक्तित्व पर चोर, लम्पट, रणछोर, व्यभिचारी, चरित्रहीन , कुब्जा से समागम करने वाला आदि कहना अन्याय नहीं तो और क्या हैं ? और इस सभी मिथ्या बातों का श्रेय पुराणों को जाता हैं !
इसलिए महान कृष्ण जी महाराज पर कोई व्यर्थ का आक्षेप न लगाये एवं साधारण जनों को श्री कृष्ण जी महाराज के असली व्यक्तित्व को प्रस्तुत करने के लिए पुराणों का बहिष्कार आवश्यक हैं और वेदों का प्रचार आती आवश्यक हैं !
और फिर भी अगर कोई न माने तो उन पर यह लोकोक्ति लागु होती हैं-
जब उल्लू को दिन में न दिखे तो उसमें सूर्य का क्या दोष हैं?
*लेखक   -  महर्षि दयानन्द स्वामी।*
*प्रस्तुति  - *वेद वरदान आर्य*


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