शिवाजी-भारतवर्षीय सिकन्दर




       बहुत से पाठक इस लेख के शीर्षक को देखकर अशर्चार्यन्वित होंगे जैसा कि शिवाजी को भारत वर्षीया सिकंदर कहने की अतिशयोक्ति में यह कुछ कम नहीं सुनाई पड़ता | बहुत से लोग उसके विषय में कहते है कि वह डाकू लुटेरा, पहाड़ी चूहा, पहाड़ी बन्दर झूठा, विश्वासघाती व निर्दयी था जिसने मानविक व ईश्वर प्रदत नियमों को भंग किया | उसके शत्रुओ ने, जिसको उसने लुटा उसको शैतान का अवतार कहने तक में सकोच न किया | इतिहास ने इन निर्णयों ( दोषारोपणों ) को सिद्ध किया है परन्तु उसको एक महान व्यक्ति कि पदवी से विभूषित किया है |


अद्वितिय सेनापति


        निसंदेह वह संसार के महारथी सेनापतियो में से एक था- जैसे आरमी की सम्मति से सब समझ सकते है :-


       व्यक्तिगत गुणों के विचार से संसार के महारथियों में जिनका कि अबतक कुछ प्रमाण है वह सब से श्रेष्ठ निकला | क्यों कि किसी भी सेनापति ने कभी भी सेना के अग्रमुख होकर उतनी लड़ाई तै नहीं कि जितनी उसने | उसने प्रतेयक आपति का चाहे वह आकस्मिक हो अथवा पूर्व परिचित, बड़े अमोघ साहस व तात्कालिक बुद्धिमानी से सामना किया | उसके सर्व श्रेष्ठ सेनापति ने उसकी महतवपूर्ण योग्यता को अंगीकर किया | एक सैनिक की हैसियत से वह हाथ में तलवार लिए हुए शेखी का रूप धारण किये हुए दिखता था |


       अदम्य विजयी


      हमारे इतिहास की पाठ्य-पुस्तक में शिवाजी के युद्ध की विशेषता नहीं दिखाई गयी है | अर्थात जैसे की कर्नाटक में | यह वह युद्ध था जो शिवाजी महाराज की संसार के प्रमुख विजयियो में स्थापना कराता है, मुग़ल सम्राट और औरंगजेब व बीजापुर के सेनापति जैसे दो शक्ति संपन्न जानी दुश्मनों के बिच व अस्थिर विश्वासी गोलकुंडा के राजा जैसे उभयपक्षी मित्र के होने पर भी शिवाजी ने विजय के उत्साह में रूढ़ी को छोडते हुए रण-दुदुंभी बजाई | उसने सयांदरी पर्वत से तन्ज्जोर तक जो दक्षिण का उपवन कहलाता है सफलता पूर्वक भ्रमण किया और फिर कारों मंडल होता हुआ मलवार से लौटा जैसा कि Kincaid कैनकैड में भली प्रकार समझाया हुआ है :-


       “१८ मास के अंदर अंदर उसने प्राचीन राज्य की तरह अपने ही आधार पर ७०० मील लंबे राज्य को जित लिया | जब उसे कभी प्राणघातक आपत्ति प्राप्त होती तो वह उसे साधारण बात समझ कर पार कर जाता | एक विजय के के बाद दूसरी विजय प्राप्त हुई और एक शहर के बाद दूसरे शहर को उसने अपने आधीन किया | जब वह आगे बढता तो विजित प्रान्तों को अपने राज्य में मिलाता और जब वह रायगढ़ को लौटा, जैसा कि उसने अब किया, उसका राज्य समुद्र की एक सीमा से दूसरी सीमा तक सुरक्षितता से विस्तृत था जो दृढ़ किलो में सुसज्जित तथा स्वामी भक्त सेनाओ से रक्षित था |” [ Kincaid Vol I P 260 ]


        यह उसकी विजय थी जो उस की प्रति वर्ष २० लाख होनस ( रुपयों की ) आमदनी और सकैडो किलों की प्राप्ति कराती थी | सारा कर्नाटक वज्राघात की तरह उसके लूट खसोट से सर्वनाश हो गया था |


        Mr. H. Gary बम्बई के डिपुटी गवर्नर ने इंग्लैंड में ईस्ट इण्डिया कंपनी को एक पत्र लिखा जिस में उसने कर्नाटक के युद्ध का वर्णन दिखाया | यह पत्र हमको महानुभावी अंग्रेज महाशय की समकालिक सम्मति को प्रगट करता है | ३१ अक्तूबर १६७७ का पत्र एक अत्यावश्यक घटना को याद दिलाता है जिसने मुसलमान सेना के हृदयों को हिला दिया और उन्होंने भागने ही में रक्षा समझी |


       “ शिवाजी ने इस साल उत्तर कर्नाटक में पूर्ण सफलता प्राप्त करके विजय वंश के दो घरानों को जो कि वंहा के गवर्नर थे, अपने अधिकार में कर लिया है जहां से कि उसने पर्याप्त धन भी प्राप्त किया है और भी छोटे-छोटे राजा जो कि उसके अधीन हो चुके है वह उनसे कर भी लेता है, और उनको धमकियां देता है जो कर देने से इनकार करते है मुसलमान लोग उसके आने की गलत फैमि को सुनकर अपने किले गडो को छोड़ रहे है इस प्रकार उसकी सेना पूर्ण फलीभूत हो रही है | संभवत: यह विश्वास किया जाता है की वह अपने राज्य को सूरत के सिमापर्वती देशो से कामोरिन तक बिना किसी रुकावट के बढ़ावेंगा, आप का एजेंट तथा काउन्सिल यह सलाह देते है की इनकी सेनाये सेंट जोर्ज की तरफ चक्कर लगा रही है और तुरंत ही हम लोगो पर उसका आक्रमण होनेवाला है लेकिन आशा करता हूँ कि परमात्मा दया कि दृष्टी हमारे राज्य के उप्पर रक्खेंगा जिसकी रक्षा के लिए हम परमात्मा से प्रार्थना करते है “ ( सूरत चिट्ठी ३१ अक्तूबर १६७७ लंडन को )


      बम्बई २६|२६ सन १६७८ का पत्र इस से अधिक महत्व का है जब कि शिवाजी महाराज कि तुलना प्रसिद्ध रोम विजयी सीजर के साथ कि जाती है जिसने अपनी विजय का प्रसार फ्रांस, जर्मनी तथा ब्रिटेन तक किया | यह भी कहा जाता है कि शिवाजी महाराज सिकंदर से कम निपुण नहीं थे और वह अपने मनुष्यों को पक्षी करके संकेत करते थे | मिस्टर गैरी ने मरहाठो को “ पर वाला मनुष्य “ कहा है |


      “ शिवाजी कि सीजर व सिकंदर के साथ तुलना “


      शिवाजी महाराज ने महान साम्राज्य स्थापित करने कि प्रबल इच्छा से घोषित कोकण प्रान्त के मजबूत किले रैडीको अंतिम जून के दिनों के बाद त्यागा और अपने २००० हजार घोड़े सवार ४० हजार पैदल लेकर के कर्नाटक कि ओर चल दिए जहाँ कि विजयियो के दो बड़े किले जो कि चिन्दावर कहलाते थे ओर जहाँ बहोत से व्यापारिक भी थे | उसने इस प्रकार विजय की जिस प्रकार से सीजर ने स्पेन में उसने देखा ओर जीता ओर बहोत सा सोना, हिरा, मणि-माणिक आदि जवाहिरातो को लुटा ओर केरल प्रान्त को जीतकर बड़ी योग्यतानुसार शारारिक दशा को देखते हुए अपनी सेनाको बढाया ताकि उसकी भविष्य युद्ध की युक्तिया निर्विघ्नता पूर्वक चल सके | वर्तमान समय में में वह वंकाप्पुर में है, दो अन्य दृढ़ किले जो की उसने इतनी शीघ्रता से ले लिए | उसने ३ माह के अंदर ही मुगलों से ले लिया ओर जो उसने अपने उस समय के सेनापति राजा जैसिंह को दिए | विजापुर के राजा के विरुद्ध थे जो की दक्षिण के राजाओ की राजधानी थी, इस प्रकार वहाँ अधिकारी बन कर ये प्रतिज्ञा की कि जब तक दिल्ली ने पहुँच जाऊँगा अपनी तलवार को म्यान में न रखूँगा ओर औरंगजेब को इसी तलवार से वध करूँगा | मोरो पन्त जो कि उस के सेनापतियो में से एक है मुग़ल राज्य को खूब लुट रहा है ओर राज लोश के धन कि वृद्धि कि है |


        शिवाजी-भारतवर्षीय हनीबाल


        दूसरे पत्र में शिवाजी की तुलना ठीक Hani ball से की जो उस की अपूर्व नीति को दर्शाता है जिसे मरहाठो राज्य स्थापक ने अपने अंतिम दिनों में किया | उसने बीजापुर को मुगलों के विरुद्ध साहयता दी और मुग़ल राज्य के ऊपर आक्रमण कर के एक प्रकार से कौतुक किया | केवल उसकी साहयता ने ही शिवाजी को सर १६७८ में मुगलों के आक्रमण से बचाया |


       मुग़ल सेना ८० हजार घोड़े सवार लेकर शिवाजी को जद से मिटाना चाहते थे | परंतु यह बात प्रसिद्ध है की शिवाजी दूसरा सरटोरियश है और हनीबाल से युद्ध कुशलता में किसी प्रकार कम नहीं है |इस समाचार के थोड़ी देर पश्च्यात सेना में यह खबर फैली की गोलकुंडा के राजा शिवाजी और दक्षिणियो ने मुग़ल के विरुद्ध राजद्रोह रचा है और दलितकू को दक्षिण से निकालने की तैयारी में है शिवाजी ने १००० घोड़े सवार लेकर उसके उप्पर आक्रमण किया | वाही एक ऐसा राजनीतिज्ञ था जिसने की दक्षिणियो व कुतबशाह को अपने विरुद्ध से रोका |


        यह बात स्पष्ट है की शिवाजी महाराज संसार के महान सेनापतियो, वीर सिपापियो में से एक थे | अब भी उसे राजनीति, राज-तर्कशास्त्र और राज-प्रभावक गुणों में किसी ने नहीं पाया | छत्रपति शिवाजी केवल मरहटों राज्य के स्थापक ही नहीं थे बल्कि हिंदू राज्य के पुन्ह: स्थापक थे, स्वराज्य के राजछत्र के देने वाले आर्य सभ्यता के रक्षक थे और महराष्ट्र और हिंदू समाज के प्रवर्तक थे |वह उनके महान कार्यों के लिए सिकंदर, हनिबाल, सीजर बा नैपोलियन से तुलना के योग्य है | इस कारण हम शिवाजी महाराज को महान शिवाजी, भारतवर्षीय सिकंदर, भारतवर्षीय हनिबाल,भारतवर्षीय सीजर, व भारतवर्षीय नैपोलियन की पदवी देकर विभूषित करते है |



Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।